छत्तीसगढ़ में आरक्षण विवाद: इतिहास, वर्तमान और भविष्य

32% आरक्षण छीने जाने के बाद से आदिवासी समाज उबल रहा है सत्ता के गलियारों में घमासान मचा हुआ है आरोपों की बौछार हो रही है हर पार्टी इस मुद्दे को भुनाने की कोशिश कर रही है जबरदस्त बैकफुट पर गई कांग्रेस अब आरक्षण पर विधेयक लाने का मूड बना रही है।reservation dispute in chhattisgarh

छत्तीसगढ़ में आरक्षण विवाद

भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने इसके लिए बकायदा 1-2 दिसंबर का दिन निर्धारित किया है सूचना है कि इस दिन कांग्रेस सरकार जनजातीय समेत अन्य पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति तथा आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों के लिए आरक्षण के नए प्रावधान लाने जा रही है। आइए विस्तार से जानने की कोशिश करते है पूरा विवाद और आने वाले दिनों में संभावनाएं और जटिलताएं। reservation dispute in chhattisgarh

छत्तीसगढ़ ने जनसंख्या प्रतिशत के आधार पर आरक्षण:

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि वे जनगणना के हिसाब से छत्तीसगढ़ में जातियों की प्रतिशत के आधार पर आरक्षण देना चाहते हैं इस संदर्भ में कोई पहले भी अन्य पिछड़ा वर्ग को 27% का आरक्षण दे चुके थे लेकिन इंदिरा साहनी वाद को मद्देनजर रखते हुए (जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है नौकरियों में आरक्षण 50% से अधिक कोई भी सरकार नहीं दे सकती) निरस्त घोषित कर दिया था।

हालिया में मराठा आरक्षण को निरस्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपने पांच जज वाले संवैधानिक पीठ के माध्यम से इंदिरा साहनी वाद में दिए गए निर्णय को उचित ठहराया था।

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छत्तीसगढ़ में आरक्षण विवाद की पृष्ठभूमि:

नवगठित छत्तीसगढ़ राज्य 1 नवंबर सन 2000 को मध्य प्रदेश से विभाजित होकर अस्तित्व में आया। जिसके बाद राज्य को अपना पृथक आरक्षण कानून लाना था। साथ ही भारतीयों पर नया रोस्टर भी जारी करना था जो राज्य के जातीय समीकरण सामुदायों की स्थिति परिस्थिति के अनुकूल हो। लेकिन इतने जटिल विषय को छेड़ना कौन चाहेगा। उस समय अजीत जोगी सरकार ने छत्तीसगढ़ में आरक्षण को लेकर कोई भी फैसला ना करते हुए यथावत रखा। reservation dispute in chhattisgarh

2012 के पूर्व राज्य में आरक्षण की स्थिति:

2012 के पूर्व मध्यप्रदेश सरकार ने इंदिरा साहनी वाद के फैसले के मद्देनजर 1994 में आरक्षण विधेयक जारी किया जिसके अनुसार अनुसूचित जाति वर्ग को 16% का आरक्षण, अनुसूचित जनजाति वर्ग को 20% का आरक्षण तथा पिछड़ा वर्ग को 14% आरक्षण दिया जा रहा था।

2008 में आदिवासी बहुल इलाकों में यह वादा किया था कि उन्हें 32% आरक्षण देंगे। इसी के चलते जनसंख्या के नवीन आंकड़ों के 2011 में प्रकाशित होते ही उन्होंने आरक्षण संशोधन विधेयक लाया। और महत्वपूर्ण बदलाव किए।

रमन सिंह सरकार का फैसला:

डॉ रमन सिंह की कैबिनेट में 2012 ने एक विधेयक लाकर जिसे राज्यपाल की विशेष स्वीकृति प्राप्त थी के बाद आरक्षण को 58% तक ले जाया गया जिसमें ओबीसी समुदाय को 14% आरक्षण अनुसूचित जनजाति वर्ग को उनके आबादी के अनुसार 32% आरक्षण जबकि अनुसूचित जनजाति वर्ग को 12% उनकी आबादी के अनुसार आरक्षण दिया गया। reservation dispute in chhattisgarh

यहीं से अर्थात 2012 से ही आरक्षण को लेकर न्यायालय में वाद-विवाद का दौर जारी है। जब तक भाजपा की सरकार रही इसे डिफेंड किया गया। 2018 में कांग्रेस की सरकार बनने के 4 वर्ष बाद इसे उच्च न्यायालय द्वारा असंवैधानिक घोषित कर दिया गया।

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2012 के पूर्व अनुसूचित जाति का आरक्षण:

ज्ञात हो कि अनुसूचित जनजाति जिसका कि आरक्षण संयुक्त मध्यप्रदेश में 16% चले आ रहा था उसे राज्य की रमन सरकार ने घटाकर 12% कर दिया। अनुसूचित जनजाति वर्ग में इसे लेकर गहरा असंतोष व्याप्त हुआ और इस असंतोष का प्रतिनिधित्व किया गुरू घासीदास साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बिलासपुर ने। 12 से 13% आबादी वाला अनुसूचित जाति समुदाय यह बताने में प्रयासरत रही कि क्यों आदिवासियों अनुसूचित जनजातियों को 32% आरक्षण नहीं मिलना चाहिए बजाय इसके कि क्यों उनका आरक्षण 16% किया जाए।

केपी खांडे और आरक्षण विवाद क्या है?

इसी के चलते कई बार दोनों समुदाय के नेताओं के मध्य जुबानी जंग और तनाव साफ दिखती है। एक तथ्य यह भी है कि गुरु घासीदास साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बिलासपुर के प्रमुख केपी खांडे ने उच्च न्यायालय में अनुसूचित जनजातियों को दिए जा रहे 32% आरक्षण के विरुद्ध मुख्य रूप से आवाज उठाई एक मुख्य प्रतिवादी रहे (हालांकि वे संस्था के माध्यम से प्रतिवादी रहे) जिन्हें हाल ही में राज्य अनुसूचित जाति आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया भूपेश बघेल सरकार की इस नीति की आलोचना भारतीय जनता पार्टी ने इस रूप में किया कि “कांग्रेस पार्टी और केपी खांडे दोनों के षडयंत्र से आदिवासियों का आरक्षण छीना।” reservation dispute in chhattisgarh

छत्तीसगढ़ में आरक्षण 85% तक हो जायेगी?

आइए जानने की कोशिश करते हैं यदि कांग्रेस पार्टी आरक्षण पर विधेयक लेकर आती है तो इसके क्या कुछ परिणाम और मुद्दे पुनः उभर कर आ सकते हैं। सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी के अनुसार, कांग्रेस पार्टी अन्य पिछड़ा वर्ग को मंडल आयोग के अनुशंसा के अनुसार प्रदेश में 27% आरक्षण देने का विचार कर रही है साथ ही अनुसूचित जनजाति वर्ग को उनके आबादी के अनुपात में 32% का आरक्षण बहाल करने जा रही है। reservation dispute in chhattisgarh

लेकिन अनुसूचित जाति का आरक्षण जोकि 12% 2012 से चला आ रहा था और न्यायालय निर्णय से 19 सितंबर 2022 सीजी से 16% माना जा रहा था वह घटकर अब 13% हो जाएगा इसके साथ ही आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों के लिए 10% का अतिरिक्त आरक्षण जारी किया जाएगा हालांकि यह आरक्षण क्षितिज आरक्षण है ना कि ऊर्ध्वाधर आरक्षण।

आरक्षण विधेयक के निरस्त होने की संभावना?

मानकर चलते हैं कि यदि अनुसूचित जाति वर्ग को नाराज ना करते हुए भूपेश बघेल सरकार उन्हें 16% का आरक्षण 2012 के पूर्व के अनुसार प्रदान करती है तो राज्य में कुल आरक्षण बढ़कर 85% हो जाएगा जिसे न्यायालय द्वारा निरस्त करने की अथवा अपास्त करने की संभावना अधिक तेज हो जाएगी। राज्य सरकार यह बात भली-भांति जानती है इसलिए इस स्थिति से पल्ला झाड़ने के लिए एक प्रस्ताव अथवा संकल्प पत्र भी जारी करने का निर्णय किया है।

केंद्र के पाले में डालने की नीति?

संकल्प पत्र के अनुसार राज्य सरकार विधेयक में किए गए प्रावधानों को लेकर विधानसभा संकल्पित है ऐसा कथन जारी किया जाएगा साथ ही संकल्प पत्र में केंद्र सरकार से यानी भारतीय संसद से या अनुरोध भी किया जाएगा कि इस विधेयक को वे संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल कर ले ताकि न्यायायिक पुनरावलोकन से संरक्षित किया जा सके (9वी अनुसूची के बारे में आगे चर्चा की गई है) अर्थात पूरी गेंद कांग्रेस अब केंद्र पाले में डालने कि फ़िराक में है। और यही राजनीति है यदि कांग्रेस के जगह भाजपा रहती तो वो भी यही करते। reservation dispute in chhattisgarh

यदि केंद्र सरकार राज्य संघ के संकल्प पत्र को गंभीरता से ना लेते हुए कोई कार्यवाही नहीं करती है तो कांग्रेस के पास यह बोलने का हमेशा रास्ता रहेगा की केंद्र की भाजपा सरकार राज्य के हितों के प्रति गंभीर नहीं है अथवा उसके बाद की परिस्थिति के लिए पूरी तरीके से केंद्र जिम्मेदार है।

संविधान की 9वीं अनुसूची क्या है?

नवीं अनुसूची को तात्कालिक प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू जी द्वारा 1951 में प्रथम संविधान संशोधन के माध्यम से जारी किया था। जिसके अनुसार इसमें उन केंद्रीय और राज्य कानूनों को रखा जाता था जिसे न्यायालय की पुनर्विलोकन प्रक्रिया से दूर रखा जाना चाहिए।

क्या नवीं अनुसूची का न्यायिक समीक्षा हो सकती है?

वर्तमान में इसमें तकरीबन 284 विषय और लगभग 13 कानूनो को 9वीं अनुसूची में शामिल किया गया है लेकिन केशवानंद भारती बनाम भारत संघ मामले में ऐतिहासिक फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट के 13 जजों की संवैधानिक पीठ ने यह स्पष्ट कर दिया था कि उन सभी कानूनों की समीक्षा की जा सकती है जो संविधान के मूल ढांचे का उलंघन करती है। इसलिए 24 अप्रैल 1973 के बाद से शामिल किए गए सभी कानूनों की पुनर्विलोकन की जा सकती है यदि वह मूल अधिकारों और संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करती है।

इस प्रकार यदि 50% आरक्षण को मूल ढांचा मान लिया जाता है और यदि केंद्र सरकार छत्तीसगढ़ राज्य के विधायक को नवीं अनुसूची में शामिल भी कर लेती है तब भी वह निरस्त घोषित हो जाएगा। लेकिन जनता को या आमजन जिन्हें कानून की समझ कम है उन्हें यह लगता है की नवीं अनुसूची में किसी कानून को डाल देने पर उसका न्यायिक पुराना अवलोकन नहीं हो सकता। जोकि असत्य है। reservation dispute in chhattisgarh

बताना होगा विशेष परिस्थिति:

अब प्रश्न यह उठता है की भूपेश बघेल सरकार इसके स्थान पर क्या कर सकती है? संविधान विशेषज्ञों की माने तो इस तरीके के हालात में अथवा 58% की अथवा 50% से ऊपर को किसी राज्य में लागू करने के लिए संदर्भित समुदाय अथवा परिस्थिति का युक्तियुक्त विवरण न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करना होता है परंतु की मंशा और इरादे से यह प्रतीत नहीं होता कि वे 2012 के विधेयक को नाम मात्र की संशोधन के साथ जारी करेगी बल्कि उसमें आमूलचूल परिवर्तन के साथ जारी किए जाने की संभावना है। जिसके बाद आरक्षण 82 से 85% तक हो जायेगा।

युवाओं के लिए कितनी अच्छी खबर?

आरक्षण संशोधन विधेयक पारित होने के बाद राज्य के शासकीय प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते युवाओं को राहत मिलने की संभावना कम ही है इस विधेयक के अपास्त होने की संभावना बहुत अधिक है क्योंकि यह इंदिरा साहनी बाद में दिए गए 50% सीमा का स्पष्ट रूप से उल्लंघन होगा। फाइनल में यदि भर्तियों के रोस्टर जारी करके भर्तियां कर भी भी जाती है तो न्यायालय द्वारा अपास्त होने की स्थिति में सभी नियुक्तियां खतरे में पड़ जाएगी इस प्रकार निकट भविष्य में परीक्षार्थियों के लिए छत्तीसगढ़ में शासकीय नौकरियां बमुश्किल ही नसीब होने वाली है। यदि इस विधेयक में किसी भी समुदाय को उनकी अपेक्षाओं से कम आरक्षण दिया गया तो इसके निरस्त होने की संभावना बहुत अधिक बढ़ जाएगी। reservation dispute in chhattisgarh

छत्तीसगढ़ में आरक्षण विवाद का अंत कब होगा?

आरक्षण विवाद का अंत कब होगा इसके बारे में कुछ भी कहा नहीं जा सकता क्योंकि राज्य के अन्य पिछड़ा वर्ग समुदाय यदि लामबंद होते हैं तो 27% आरक्षण राज्य में ठीक उसी प्रकार का विवाद स्थापित कर देगा जिस प्रकार का केंद्र में 80 के दशक में हुआ था और मंडल कमीशन के बाद शांत हुआ था। राज्य में 10 साल से 32% आरक्षण का आनंद लेते हुए जनजातीय समुदाय कदापि इस बात को स्वीकार नहीं करेगी कि उन्हें 32% से कम आरक्षण दिया जाए। ना हीं लगातार 10 वर्षों तक 32% आरक्षण के विरुद्ध पैरों कार्य करने वाले अनुसूचित जाति समुदाय भी यह कभी बर्दाश्त नहीं करेगी कि उनका आरक्षण 16% से कम किया जाए इस प्रकार निकट भविष्य में यह एक अंतहीन दुष्चक्र साबित होने की संभावना है । राजनीतिक दल वोट बैंक के अनुसार इसे अपने-अपने तरीके से भुनाने की कोशिश करते रहेंगे। reservation dispute in chhattisgarh

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