पंडित जवाहर लाल नेहरू भारत के प्रथम प्रधानमंत्री, भारत के भविष्य के स्वप्नदृष्टा और तत्कालीन महान अंतरराष्ट्रीय नेताओं में से एक थे। वें 1946 से लेकर 1962 तक भारत के प्रधानमंत्री थे। उनकी विदेश नीति के कई मजबूत पक्ष रहे जिसने भारत के अंतरराष्ट्रीय संबंध को नई गति दी, वही कुछ कमजोर पक्ष भी रहे जिसका खामियाजा पूरे देश को भुगतना पड़ा।
नेहरू की विदेश नीति की की प्रमुख विशेषताएं और कमियां जानेंगे लेकिन उससे पहले आइए जानते है, तत्कालीन वैश्विक परिदृश्य के बारे में।
1945 में द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हुआ। अटलांटिक चार्टर और अमेरिकी शर्तो के अनुसार कई देश स्वतंत्र हुए। अमेरिका और सोवियत संघ शक्ति के दो सबसे बड़े केंद्र बनकर उभरे और वर्चस्व की इस लड़ाई ने पूरी दुनिया को शीत युद्ध की चपेट में ले लिया। नवस्वतंत्र राष्ट्र अमेरिकी और सोवियत संघ के दबाव में आकर अपनी स्वतंत्रता को गिरवी रखने लगे।
पूरी दुनिया पूर्व(समाजवादी) और पश्चिम (पूंजीवादी)में विभाजित होने लगी थी तब भारतीय प्रधानमंत्री ने सूझ-बूझ भरी कूटनीति का परिचय देते हुए गुटनिरपेक्षता को चुना। इस नीति को चुनकर वे दोनो पक्षों से समान दूरी बनाकर लाभ अर्जित करना चाहते थे। भारत ने न केवल खुद गुटनिरपेक्षता चुना बल्कि तृतीय विश्व के देशों को संगठित करके उसका नेता बन गया।
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1) आदर्शवादी विदेश नीति: नेहरू ने गांधीवादी और बुद्धिस्ट नजरिए को विदेश नीति में भी आजमाया और विदेश नीति में पंचशील के सिद्धांत को अपनाया और चीन साथ पंचशील समझौता भी किया, हालांकि चीनी धोखे के बाद इस नीति को नेहरू की भूल माना जाता है।
2) गुटनिरपेक्षता: इसका अर्थ अमेरिकी और सोवियत संघ से समान दूरी बनाकर स्वतंत्र विदेश नीति का अनुसरण किया यह एक सफल नीति रही और आरंभ में अमरीकी और सोवियत संघ दोनो से समान रूप से सहायता प्राप्त की अपने राष्ट्रीय हित की पूर्ति की।
3) अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं का सम्मान: पंडित नेहरू एक अंतराष्ट्रीय नेता थे इसीलिए वें स्वतंत्रता के बाद सभी वैश्विक संस्थाओं और संगठनों के सदस्य बने। जैसे संयुक्त राष्ट्र संगठन, विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और गेट। लेकिन कश्मीर मामले को संयुक्त राष्ट्र में ले जाना एक भूल मानी जाती है।
4) पड़ोसियों के साथ सहअस्तित्व की नीति का अनुपालन: भारत की सीमा में कई छोटे-छोटे स्वतंत्र राष्ट्र है जिसकी संप्रभुता और स्वतंत्रता का नेहरू ने सम्मान किया उनकी विपत्ति में उन्हें आर्थिक और सैन्य मदद भी दी। न कि कभी उनपर आक्रमण किया।
5) विश्व शांति का समर्थक: प्रधानमंत्री नेहरू ने हमेशा विश्व शांति का समर्थन किया कोरिया संकट, वियतनाम संकट और इजराइल फिलीस्तीन संकट में शांति स्थापित करने में महत्व पूर्ण भूमिका निभाई। यही नही वे परमाणु हथियारों के दौड़ के विरुद्ध थे।
नेहरू के विदेश नीति से आरंभिक भारत को अपने राष्ट्रीय हितों को पूरा करने में बहुत मदद मिली। अपनी नाजुक हालत के समय भारत ने चतुराई पूर्ण विदेश नीति का अनुपालन करके अमरीका से पूंजी और तकनीक लिया वही सोवियत संघ से संसाधनों को प्राप्त किया। अपनी निष्पक्ष विदेश नीति के चलते ही भारत को दुनियाभर में सम्मान मिला और इसके प्रवासियों को सभी देशों में स्वीकार्यता मिली.
प्रधानमंत्री मोदी आज जिस भी देश में जाते है वहां के प्रवासियों को संबोधित करते है लेकिन इसकी नीव पंडित नेहरू ने ही रखी थी। यह भी सच है कि उनकी कश्मीर नीति, चीन नीति और शरणार्थी नीति उनकी विफल रही थी जिसकी विदेश नीति विशेषज्ञ आज भी आलोचना करते है।