तीजा पोरा : कब, क्यों और कैसे मनाया जाता है?
बाजारें सज चुकी है, दुकानों में भीड़ है, सड़को में चहल-पहल है और महिलाओं के चेहरे पे रौनक है। ये सब इस बात की ओर इशारा करते है कि छत्तीसगढ़ में “त्योहारों के राजा” कहे जाने वाले तीज़ा पर्व बहुत ही नजदीक है।
तीजा पोरा : कब, क्यों और कैसे मनाया जाता है?
हम सब जानते है, छत्तीसगढ़ प्रदेश अपनी विशिष्ट लोक संस्कृति और तीज-त्योहारों के लिए देशों दुनिया में विख्यात है। यहां अक्ति में मिट्टी की पूजा, हरेली में कृषि उपकरणों की पूजा, देवारी में पशु पूजा जैसे अनगिनत त्योहारों के द्वारा प्रकृति पूजा की संस्कृति को बढ़ावा दिया जाता है। आसान भाषा में कहे तो ये पर्व ये त्योहार छत्तीसगढ़ी जनजीवन का आइना होते है।
तीजा पोरा के तिहार? Teeja pora festival
लेकिन तीजा पर्व (तीजा पोरा)की तो इसकी रौनक बाकी त्योहारों से कहीं ज्यादा होती है। इसे भादो मास के शुक्ल पक्ष, तृतीया को मनाया जाता है। ये त्योहार इसलिए बेहद खास हो जाता है क्योंकि ये माताओं और महिलाओं से जुड़ा हुआ त्योहार है। सोलह श्रृंगार और सुंदरता से जुड़ा हुआ पर्व है। सुहाग और परिवार से जुड़ा हुआ पर्व है।
तीजा पोरा कब है? When is teeja pora festival
बात करें तीजा त्यौहार की तो इसकी तैयारी कई दिन पहले ही शुरू हो जाती है। सुहागन महिलाएं अपने लिए गहने, चूड़ियां, साड़ियां और सभी साजो सामान की शॉपिंग करने के लिए बाजार का रुख करती है। जिससे बाजारों में उमंग देखते ही बनता है। इस त्यौहार की खास बात ये है कि सुहागन महिलाएं इसे अपने घर में न मनाकर, अपने मायके में मनाती है। यह त्योहार पति की लंबी उम्र और सुख समृद्धि के लिए होता है। इस दिन सुहागन महिलाएं सोलह श्रृंगार कर कठोर निर्जला उपवास रखती है। और महादेव और देवी पार्वती की पूजा आराधना कर मनचाहा वरदान मांगती है। तीजा पोरा : कब, क्यों और कैसे मनाया जाता है?
तीजा क्यों मनाया जाता है? Why is teeja pora celebrated
दरअसल, ऐसी पौराणिक मान्यता है कि इस दिन माता पार्वती ने अपने स्वामी देवाधिदेव महादेव को पाने के कठोर तपस्या और उपवास किया था। इस तपस्या से महादेव प्रसन्न हुए और 108 जन्मों के लंबे इंतजार के बाद माता पार्वती को अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया था। तभी से इस दिन को सुहागन महिलाओं के लिए सौभाग्य का दिन माना जाता है। ऐसी दृढ़ पौराणिक मान्यता है कि इस दिन सुहागन स्त्रियां, देवी पार्वती और भगवान शिव से जो भी मांगती है उन्हे उमा-महेश निराश नही करते। तीजा पोरा : कब, क्यों और कैसे मनाया जाता है?
तीजा पोरा के कितने दिन तक मनाया जाता है?
छत्तीसगढ़ में तीजा teeja एक दिन का पर्व नही बल्कि तीन दिनों का उत्सव होता है। पहले दिन महिलाएं करु करेला यानी कड़वे करेले की सब्जी खाकर उपवास प्रारंभ करती है, दूसरे दिन कठोर निर्जला उपवास रखती है। तीसरे दिन 16 श्रृंगार धारण कर अपने पति को स्मरण करते हुए महादेव और पार्वती की पूजा करते है। और तरह-तरह के फल और व्यंजनों को ग्रहण कर अपना व्रत तोड़ती है। इसे फरहर करना कहा जाता है। तीजा पोरा : कब, क्यों और कैसे मनाया जाता है?
गांव में तीजा कैसे मनाते है?
तीजा teeja pora त्योहार की धूम शहरों से ज्यादा गांव में दिखती है। गांव में हर घर मेहमान और पकवानों की खुशबू से माहौल खुशनुमा रहता है। मायके आई बेटियां अपने सखी सहेलियों से मिलती है साथ खेलती और झूले भी झूलती है।
पोरा कब मनाया जाता है? Pora festival
तीजा teeja pora पर्व के ठीक तीन दिन पहले पोला पर्व से ही इसकी धूम शुरू हो जाती है। पोला या पोरा भादो मास की अमावस्या को मनाया जाता है। सामान्यतः छत्तीसगढ़ में हर भाई अपनी सुहागिन बहन को इसी दिन तीजा मनाने के लिए अपने घर ले आता है। तीजा पोरा : कब, क्यों और कैसे मनाया जाता है?
पोरा तिहार क्यों मनाया जाता है? When pora festival is celebrated
पोरा teeja pora तिहार मुख्यत: किसानों का त्योहार है जिसमे वे अपने बैलों की पूजा करते है। उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते है। दरअसल इस दिन किसान अपने खेती का सारा काम संपन्न कर चुके होते है। और अब अपने बैलों को धन्यवाद करने करते है।
पोरा तिहार कैसे मनाया जाता है? How pora festival is celebrated
पोरा के दिन कुम्हार के पास से मिट्टी के पके हुए बैल खरीदे जाते है । मिट्टी के बने चक्के, चूल्हा, कढ़ाई और बर्तन भी खरीदे जाते है। यह खूबसूरत त्योहार जरिया होता है अपनी माटी से जुड़ने का उसके महत्व को समझने का। पोला के ठीक दूसरे दिन नारबोद होता है। और कई गांव में रामसत्ता या रामभजन का आयोजन किया जाता है। और फिर एक दिन बाद तीजा teeja pora पर्व आ जाता है। इस प्रकार पूरा हफ्ता उत्सव मय रंगो से सराबोर होता है।
तीजा पोरा का महत्व? Importance of teeja pora
तीजा पोरा teeja pora के त्योहार का महत्व छत्तीसगढ़ वासियों के लिए ठीक वैसा ही महत्व है जितना की बिहारियों के लिए छठ पूजा का, पंजाबियो के लिए लोहड़ी और दक्षिण भारतीयों के लिए ओनम का। तीजा पोरा : कब, क्यों और कैसे मनाया जाता है?
उत्सव और परब हरेक संस्कृति के वाहक होते है। जिसके जरिए आने वाली पीढ़ी अपनी इतिहास, जड़ और संस्कृति को समझती है। इन्हे सहेजकर रखने का प्रयास करना चाहिए और ऐसे पर्वों से जुड़ी जानकारी नई पीढ़ियों से साझा भी करनी चाहिए।
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