अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेजी से बढ़ रहे कच्चे तेल के दाम ने आम नागरिकों को चिंता में डाल दिया है। आने वाले समय में डीजल पेट्रोल दामों में बढ़ोतरी की पूरी-पूरी संभावना है।
भारत सरकार के पेट्रोलियम मंत्रालय के तहत आने वाली संस्था ‘पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल’ (PPAC) के अनुसार नवंबर 2021 में जहां कच्चे तेल के दाम 81.5 डॉलर प्रति बैरल था वही आज इसकी कीमत बढ़कर 120 डॉलर प्रति बैरल के पास पहुंच गई है। आने वाले समय में यह कितना बढ़ेगा इसका कोई अनुमान नहीं है। यह कीमत 2012 के बाद से सर्वोच्च है।
एक ओर जहां सरकारें कोरोना महामारी के बाद से सरकारी राजस्व के लिए पेट्रोल-डीजल पर लगने वाली टैक्स पर निर्भर हो गई थी वही अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी आसमान छूती कीमत ने सरकार की नींद उड़ा दी है।
भारत में, भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश समेत 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव चल रहे है। यही कारण है कि सरकारें चाहकर भी कीमत नहीं बढ़ा पा रही है। आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज (ICICI securities) ने अनुमान लगाया है कि चुनाव खत्म होने के बाद क्रमबद्ध रूप से पेट्रोल और डीजल के दाम 12 से 20 रुपए तक महंगे हो सकते है।
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यदि रूस-यूक्रेन संकट शीघ्र ही शांत नहीं हुआ और तेहरान के साथ पश्चिमी देशों का परमाणु समझौता कोई मजबूत रूप नही लेता है तो आने वाला समय बहुत ही कठिन हो सकते है। जब इतनी कीमतों में आग लगी हुई है और कीमतें वही की वही स्थिर है ऐसी स्थिति में प्रश्न ये उठता है कि इतना बढ़ता बोझ कौन उठा रहा है?
इसका उत्तर है ऑयल मार्केटिंग कंपनीज़ (OMCs) जैसे इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम। इन कंपनियों अपने स्टेटमेंट कहा है कि इस नुकसान की भरपाई के लिए एक लीटर में 12 से 16 रुपए प्रति लीटर बढ़ाना होगा। ताकि कम से कम 2.5 रुपए प्रति लीटर कमाई हो सके।
मुख्य विपक्षी दल के नेता ने ट्वीटर पर सरकार तंज कसा है। उन्होंने लिखा है “सरकार का चुनावी ऑफर ख़त्म होने वाला है, जल्दी से अपने टैंक फुल करवा लीजिए।” यहां चुनावी ऑफर से उनका तात्पर्य वर्तमान में चल रहे पांच राज्यों के चुनावों से है जिसके चलते डीजल और पेट्रोल के दाम अभी तक स्थिर रखे गए है।
भारत जैसे विकासशील राष्ट्र के लिए यह चुनौती भरा पल है क्योंकि डीजल पेट्रोल के दामों में बढ़ोत्तरी महंगाई को बढ़ा देगी। इसके चलते परिवहन, माल धुलाई का खर्च बढेगा वही किसानों के ट्रैक्टर और अन्य कृषि मशीन का परिचालन महंगा हो जायेगा। जो कि आने वाले खरीफ सीजन में किसानों का लागत बढ़ा देगा।
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