Uncategorized Archives - NITIN BHARAT https://nitinbharat.com/category/uncategorized/ India's Fastest Growing Educational Website Fri, 14 Apr 2023 09:21:28 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.5.2 210562443 डॉ भीमराव अंबेडकर के जयंती पर लोगों ने कह डाली ऐसी बात https://nitinbharat.com/dr-bhimrao-ambedkar-jayanti-special/ https://nitinbharat.com/dr-bhimrao-ambedkar-jayanti-special/#respond Fri, 14 Apr 2023 09:21:28 +0000 https://nitinbharat.com/?p=701 बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने आजीवन समाज के शोषित वंचित और पीड़ित वर्ग की आवाज उठाई उस वर्ग को बाबा भीमराव अंबेडकर ने संवैधानिक अधिकारों से सशक्त...

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बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने आजीवन समाज के शोषित वंचित और पीड़ित वर्ग की आवाज उठाई उस वर्ग को बाबा भीमराव अंबेडकर ने संवैधानिक अधिकारों से सशक्त किया प्रतिनिधित्व का अधिकार दिया और शिक्षा और रोजगार के लिए मार्ग प्रशस्त किया आज जब पूरा देश डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की जयंती (dr bhimrao ambedkar jayanti) मना रहा है तक कुछ ऐसे लोग भी हैं जो भावविभोर होकर अंबेडकर को श्रद्धांजली दे रहे हैं वहीं कई ऐसे लोग भी हैं जो अंबेडकर के बारे में वह सब भी लिख रहे हैं जो उन्हें नहीं लिखना चाहिए।

सोशल मीडिया पर लिखे गए ऐसे ही कुछ रोचक पोस्ट के बारे में हम इस आर्टिकल में पड़ेंगे। इसे पढ़ने से पहले इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि आज अंबेडकर किसी जाति विशेष के प्रतिनिधि या नेता नहीं है या केवल जातिवादी नेता भी नही है। बाबा साहेब आंबेडकर (dr bhimrao ambedkar jayanti) हर शोषित, पीड़ित, वंचितों की आवाज थे। महान राजनीतिज्ञ, अर्थशास्त्री और विचारक थे। संविधान के शिल्पी और विकसित भारत के स्वप्नदृष्टा थे। उनकी सराहना, गांधी, नेहरू, पटेल सभी करते थे।

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उनकी जयंती पर @jainkhabar नामक ट्विटर यूजर लिखते है-

अंबेडकर जी को को पहले जैन धर्म और बौद्ध धर्म ही पसंद आए थे। वे अपने 7,00000 फॉलोवर्स के साथ जैन धर्म अंगीकार करने वाले थे, और इसके लिए वे चारित्र चक्रवर्ती शांति सागर जी महाराज के पास पहुंचे और उनसे कहा कि आप इन्हें दीक्षित कर दीजिए।

लेकिन शांति सागर जी महाराज ने कहा कि पहले वे मांस मदिरा आदि का त्याग करके आधारभूत नियमों का पालन करें तो हम इन्हें दीक्षित करेंगे, लेकिन अंबेडकर चाहते थे कि पहले दीक्षित कर दिया जाए यह सब नियम बाद में अंगीकार होते रहेंगे, बस बात यहीं पर नहीं बन पाई और उन्होंने सात लाख लोगों

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के साथ 1956 में नागपुर में बौद्ध धर्म अंगीकार कर लिया।मानव समुदाय में ऊंच-नीच की भावना भरने वाले हिंदू धर्म के ग्रंथ मनुस्मृति को भीड भरे चौराहे पर जला दिया। उनका कहना था कि प्रत्येक मनुष्य समान है कोई भी ऊंच-नीच नहीं है जाति-भेदभाव से परे उन्होंने संविधान बनाने में सहयोग किया।

Retired IPS RK Vij ने अंबेडकर के सुविचार के साथ उन्हें याद करते हुए लिखते है- “मुझे वह धर्म प्यारा है जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा सिखाता हो।”

संजय चौहान नामक एक ट्विटर यूजर ने लखनऊ से जारी महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के वीडियो संदेश को प्रसारित किया जिसमे उन्होंने कहा है कि ” बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर मेरे लिए भगवान है। मैं आज आपके सामने खड़ी हूं तो यह बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर की वजह से है” इस वीडियो में लिखा गया है कि इतिहास गवाह है महिलाओं को न्याय दिलाने का काम जो बाबा। साहेब ने किया है वह कोई भी नही कर पाया था।

शिमला मीना (@ShimlaMeena9) यूजर द्वारा महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए बाबा साहेब के पहल को याद करते हुए लिखा गया है-

महिलाओं का जीना आसान नहीं होता,

यदि दुनिया में पैदा कोई भीम नहीं होता,

मनुवाद की गुलामी से कोई घूंघट में रोता,

फिर सर उठा कर जीना आसान नहीं होता,

बाबा ने तेरी हाथों की बेंडियो को तोड़ा,

वरना कलम चलाना आसान नहीं होता,

डीएम सीएम पीएम कोई महिला नहीं बनती,

अगर बाबा साहब का लिखा संविधान नहीं होता!!

 

रवि सगरमे (@ravisagarme) नामक ट्विटर यूजर ने एक वीडियो संदेश को जारी किया है जिसमे कहा गया है –

“एक महिला कभी मस्जिद की मौलाना नहीं बन सकती, एक महिला कभी मंदिर की मुख्य पुजारी नहीं बन सकी, एक महिला कभी चर्च की मुख्य पादरी नहीं बन सकती, कोई भी महिला कभी भी किसी भी धर्म की विश्वविख्यात गुरु नहीं बन सकी। मगर एक महिला विधायक, सांसद, मुख्यमंत्री, राज्यपाल, राष्ट्रपति, आईएएस, आईपीएस और सचिव सब कुछ बन सकती है। जो अधिकार धर्म नहीं दे पाया वह सब अधिकार डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के संविधान ने महिलाओं को दे दिया। इसलिए भारत की महिलाओं को डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के प्रति ईमानदार होकर उनके दिखाए रास्ते पर चलना चाहिए। मगर आज की महिलाएं धर्म और कर्मकांड के चक्कर में पड़ कर अपना जीवन बर्बाद कर रही है” dr bhimrao ambedkar jayanti

राष्ट्रवादी पत्रकार सुरेश चवनके के लिखते हैं –

“आख़िरी मुसलमान जब तक पाकिस्तान नहीं चला जाता और आख़िरी हिंदू जब तक हिंदुस्थान नहीं आ जाता, तब तक मैं देश के इस विभाजन को नहीं मानूंगा”- भारत रत्न #डॉ_बाबासाहेब_आंबेडकर जी आज उनकी स्मृति को कोटि- कोटि नमन..

इसके साथ ही चावहांके ने बाबा साहेब की तस्वीर भी पोस्ट की जिसपर उन्होंने लाल टीका भी आर्टिफिशियल तरीके से लगा दिया था।

उत्तर प्रदेश के लोकप्रिय मुख्यमंत्री लिखते है -“समाज के हर वंचित, हर पीड़ित, हर दलित की आवाज को धार देने, उनके संघर्ष को आगे बढ़ाने वाले ‘भारत रत्न’ बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर को कोटि-कोटि नमन!”

आईपीएस प्रह्लाद मीना ने एक तस्वीर पोस्ट की जिसमे अंबेडकर के नाम से कहा गया है कि “तुम्हारे पैरों में जूते भले ना हो पर हाथों में किताब अवश्य होना चाहिए”

वही अधिकतर लोगों ने “Be Educated, Be Organised and Be Agitated (शिक्षित बनो , संगठित रहो , संघर्ष करो)” और “हजार तलवारों से ज्यादा ताकत एक कलम में होती है।” प्रेरणादायक सुविचार भी उनके जन्म दिवस के अवसर पर लिखा।

 

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सर्वाधिक बाघ आबादी वाले राज्यों को याद करने की ट्रिक https://nitinbharat.com/top-tiger-population-states-trick/ https://nitinbharat.com/top-tiger-population-states-trick/#respond Sun, 09 Apr 2023 14:09:16 +0000 https://nitinbharat.com/?p=686 ऐतिहासिक रूप से भारत बाघों की राजधानी रही है। यहां हमेशा से ही पूरी दुनिया की तीन चौथाई बाघ की आबादी निवास करती है। बाघ और वनों...

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ऐतिहासिक रूप से भारत बाघों की राजधानी रही है। यहां हमेशा से ही पूरी दुनिया की तीन चौथाई बाघ की आबादी निवास करती है। बाघ और वनों के संरक्षण के बीच समानुपाती संबंध है। अर्थात पूरक संबंध है वे एक दूसरे के अस्तित्व से गहराई से जुड़े हुए हैं। इसी संदर्भ में प्राचीन ग्रंथ महाभारत में भी कहा गया है कि Top tiger population states trick सर्वाधिक बाघ वाले राज्यों को याद करने की ट्रिक

निर्वनो वध्यते व्याघ्रो निर्व्याघ्रं छिद्यते वनम्।
तस्माद्व्याघ्रो वनं रक्षेद्वयं व्याघ्रं च पालयेत् ॥
-महाभारत – उद्योग पर्व : ५.२९.५७

अर्थात वन के बिना बाघ का जीना मुश्किल है और बाघ के बिना वन का संरक्षण असंभव है इसलिए बाघ का जीवन वनों से है वनों की सुरक्षा बाघ से है।

भारत में बाघों की संख्या 2023 में कितनी है? जाने ख़ास बातें नवीन आंकड़ों और रोचक तथ्यों के साथ,

9 अप्रैल 2023 को मैसूर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बालू बाघों की गणना रिपोर्ट प्रकाशित की इसके अनुसार भारत में बाघों की तादाद में अच्छी खासी बढ़ोतरी हुई है वर्तमान में भारत में बाघों की संख्या 3167 है लेकिन परीक्षाओं में अक्सर यह पूछा जाता है कि सर्वाधिक बाघों की संख्या वाले राज्यों को घटते क्रम में जमाइए या बढ़ते क्रम में जमाइए इस समस्या को दूर करने के लिए हमने आज यह ट्रिक आपके लिए बनाई है।

भारत में सर्वाधिक बाघ मध्य प्रदेश में पाए जाते हैं। जिनकी संख्या 525 है तत्पश्चात कर्नाटक में बाघों की संख्या पाई जाती है। तीसरे नंबर पर उत्तराखंड राज्य का नाम आता है जहां सर्वाधिक संख्या में बाघों की आबादी पाई जाती है। आप चीन के प्रसिद्ध प्रदेश मकाउ के नाम पर याद रख सकते हैं अंग्रेजी में मकाउ ( MaKaU) इस प्रकार है। Top tiger population states trick सर्वाधिक बाघ वाले राज्यों को याद करने की ट्रिक

            मकाउ ( MaKaU)

          Ma – मध्यप्रदेश 526
          Ka – कर्नाटक 524
          U – उत्तराखंड 442

नोट: ये नवीनतम आंकड़े चौथे बाघ गणना चक्र की है। नवीनतम आंकड़े 2023 के कुछ महीनों में जारी होने की संभावना है परीक्षार्थी कृपया नजर बनाए रखें।

तो यह थे भारत के 3 सबसे अधिक बाघ आबादी वाले राज्य। यह ट्रिक आपको पसंद आई हो तो बाकी लोगों को भी ज्यादा से ज्यादा शेयर करें इसी तरह के अन्य ट्रिक के लिए हमारे वेबसाइट को जरूर देखें। Top tiger population states trick सर्वाधिक बाघ वाले राज्यों को याद करने की ट्रिक

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क्या आदिवासी हिंदू नही है? Does Tribals Are Not Hindu https://nitinbharat.com/does-tribals-are-hindu/ https://nitinbharat.com/does-tribals-are-hindu/#comments Fri, 31 Mar 2023 18:19:27 +0000 https://nitinbharat.com/?p=641 does tribals are hindu: झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने केंद्र सरकार से विधानसभा में पृथक आदिवासी कोड जारी करने के लिए आग्रह बिल ला चुकी है...

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does tribals are hindu: झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने केंद्र सरकार से विधानसभा में पृथक आदिवासी कोड जारी करने के लिए आग्रह बिल ला चुकी है मध्यप्रदेश और राजस्थान में भी इसी तरीके की मांग की जाती है रही है। जबकि पूर्णोत्तर भारत में यह मांग कई गुना मुखर तरीके से उठती रही है।

हाल ही में छत्तीसगढ़ के कैबिनेट मंत्री कवासी लखमा ने भी यह बयान दिया कि आदिवासी हिंदू नहीं है। एक तरफ जहां कई लोगों, साधु संतो द्वारा भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित करने की मांग की जा रही है वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के आदिवासी बहुल राज्य के मंत्री द्वारा आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड की मांग भारत में हिंदुत्व के बहस को नया मोड़ देने वाला है। आइए समझने की कोशिश करते हैं क्या आदिवासी सच में हिंदू नहीं है?does tribals are hindu

आदिवासी आदिवासियों को वनवासी, जनजाति और आदिम जाति आदि नामों से जाना जाता है। विदेशी आक्रांता काल में में इन्हे आदिवासी का नाम दिया गया। इसके पीछे की मान्यता थी कि ये भारत के सबसे पुराने लोग है। इतिहासकारों ने आदिवासियों को अनार्य की श्रेणी रखा और कहा कि आर्य भारत के बाहर से आकर बसे वैदिक उत्तर वैदिक धर्म की स्थापना की जो आज हिंदुत्व या हिंदू धर्म के नाम से जाना जाता है (Does tribals are hindu)। इसपर भी अलग अलग इतिहासकारों के अलग अलग मत है।

पहले पक्ष का तर्क:

आदिवासियों को हिंदुओं की श्रेणियों में न मानने वालों का तर्क:

 

1. ये मानते है कि आदिवासियों की पूजा पद्धति, विवाह संस्कार, देवी-देवता, बोली-भाषा हिंदुओ से अलग है।

2. आदिवासी विचारक मानते है हिंदू धर्म की उत्त्पति वैदिक और उत्तरवैदिक काल लगभग (1750 ईसा पूर्व से 1000 ईसा पूर्व) से हजारों वर्ष पुराना है। इसलिए यह हिंदू धर्म से अलग है।

3. आजादी के पूर्व अंग्रेजो द्वारा जनजातीय समाज का पृथक जनसंख्यिकीय आंकड़ा जारी किया जाता था। 1961 में आदिवासियों का पृथक धर्म कोड समाप्त कर दिया गया।

4. आदिवासी स्वयं को ब्राम्हणवादी वर्चस्व के मनुवादी ढांचे और कर्मकांड में विश्वास नहीं करने वाले मानते है।

5. आदिवासियों की पूजन पद्धति प्रकृति आधारित है जैसे साल, सागौन, बरगद वृक्षों की पूजा करना, पशु पूजा, नदी पूजा आदि।

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ज्ञात हो कि भारत में लगभग 705 जनजातीय समूह (Does tribals are hindu) निवासरत हैं। जिनमें लगभग 75 विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTGs) हैं। भारत की 1961 की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार देश में अनुसूचित जनजाति की आबादी करीब 3.1 करोड़ ( कुल जनसंख्या का 6.9 %) थी. 2011 के अनुसार अब देश में अनुसूचित जनजाति की आबादी लगभग 10.45 करोड़ हो चुकी है, जो कुल आबादी का लगभग 8.6% है। भारतीय संविधान में जनजातीय समुदाय के लिए 7.5 प्रतिशत का आरक्षण सरकारी नियुक्तियों और शिक्षण संस्थानों में प्रवेश पर दिया गया है।

दूसरे पक्ष का तर्क (does tribals are hindu?)

आदिवासियों को हिंदू मानने वाले तर्क देते है कि:

 

1. आदिवासी हिंदू धर्म के अभिन्न अंग है और अंग्रेजो द्वारा हिंदू धर्म को बांटने के लिया आर्य और गैर आर्य सिद्धांत प्रतिपादित किया गया था। चूंकि अंग्रेजो को जंगलों के आदिवासियों से कड़ी चुनौती मिलती थी इसलिए वैचारिक तौर पर उन्हें स्वतंत्रता आंदोलन से भटकाने, उन्हे अपने धर्म में जोड़ने के लिए ईसाई मिशनरियों के माध्यम से दुष्प्रचार किया। जिसे राजनीतिक लाभ के लिए आज भी कुछ नेताओं द्वारा छेड़ा जाता है।

2. आदिवासी समाज और धार्मिक रीति रिवाजों में काफी समानता है जैसे आदिवासी समाज भी प्रकृति पूजा करता है। और हिंदू समाज भी प्रकृति पूजा करता है। जैसे नदी कि पूजा, वृक्ष की पूजा, पर्वत की पूजा और पशुओं की पूजा। आदिवासी भी गंगाजी को पवित्र मानकर स्नान करते है। गौ माता की पूजा आदिवासी भी करते है। आदिवासियों की काष्ट कला में गणेश जी की प्रतिमा, शिव जी की प्रतिमा आदिवासी समाज सैकड़ों वर्षों से बनाते आ रहे है। इसके अलावा आदिवासी समाज हिंदू त्योहारों को चाहे वह फसल कटने से लेकर, फसल बोवाई तक के हो या देशव्यापी त्योहार दिवाली, दशहरा, तीज, नवरात्र और होली सभी को समान रूप से मनाते आ रहे हैं। मजेदार बात तो ये है कि आदिवासियों के कई त्योहार हिंदू लोग मानते है।

 

3. तीसरी मुख्य बात जी आदिवासियों और हिंदू धर्म को धार्मिक रूप से एक बताते है वह है आदिवासियों का जन्म संस्कार, विवाह संस्कार, श्राद्ध संस्कार में समानता होना। आदिवासियो को भी मरने के जलाया जाता है। आदिवासी समाज देवी देवताओं के अवतारों में विश्वास करता और अवतारवाद भी हिंदू धर्म का एक प्रमुख लक्षण है।

 

4. चौथी बात जो आदिवासियों को हिंदू धर्म से अलग बताते है उन्हे समझना चाहिए जो देश की अवधारणा पश्चिम है वह भारत में फिट नहीं बैठता। भारत में समुदायों के बीच इतनी विविधता है जिसे अगर पश्चिम विचारकों के चश्मे से देखा जाए तो करीब 1000 से अधिक देश भारत वर्ष में समाहित है। भारत में दक्षिण के हिंदुओ का रंगरूप बोली भाषा उत्तर के हिंदुओ से अलग है। वहीं पश्चिम के हिंदुओ का खानपान पूर्व के हिंदुओ से अलग है। ठीक उसी प्रकार दक्षिण के आदिवासियों से मध्य के आदिवासियों की बोलचाल रंगरूप अलग है। वही कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के आदिवासियों के संस्कृति में और पश्चिम के गुजरात और महाराष्ट्र के आदिवासियों के में पर्याप्त अंतर है। पूर्वोत्तर के आठ राज्यों में आदिवासियो विविधता अपने आप में भिन्न है। यदि प्रत्येक आदिवासी और गैर आदिवासी समाज अपना पृथक धार्मिक कोड मांगने लग गए तो हर 100 किलोमीटर में अलग धर्म देखने मिलेगा। छत्तीसगढ़ में ही बस्तर के देवता और सरगुजा के देवता में बहुत अंतर आ जाता है।

5. पांचवी बार जो आदिवासियों को हिंदू मानते हुए कही जाती है वह है हिंदुत्व का स्वरूप! भारत में 1995 में सुप्रीम कोर्ट ने भी यह माना है कि हिंदुत्व जीवन जीने की शैली है। हिंदुत्व या हिंदू धर्म के मुख्य लक्षण मूर्तिपूजा, अवतारवाद, पुनर्जन्म, बहुदेववाद, वर्ण और जाति व्यवस्था है। जो कि आदिवासियों द्वारा भी अनुसरण किया जाता है।

 

तो ये थे आदिवासियों को हिंदुओ का अभिन्न हिस्सा मानने वालों का तर्क।

 

वर्तमान भारत में हिंदुत्व के पुनरुत्थान का दौर माना जा रहा है। भारत के आधे से अधिक राज्यों में दक्षिणपंथी विचारधारा समर्थक भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। ऐसे में अलग आदिवासी धर्म कोड की मांग और आदिवासियों को हिंदू धर्म से अलग करने की कोशिशें कहां तक दम भर पाती है देखना रोचक होगा।

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शिवमहापुराण में वर्णित पांच चमत्कारिक पंचपुष्प https://nitinbharat.com/panch-pushpa-shiv-mahapuran/ https://nitinbharat.com/panch-pushpa-shiv-mahapuran/#respond Wed, 29 Mar 2023 09:11:31 +0000 https://nitinbharat.com/?p=630 देवों के देव महादेव को प्रसन्न करने के लिए कई चीजें भक्त अपनी श्रद्धा और पूर्ति के अनुसार उन्हें अर्पित करते हैं जैसे बेलपत्र फल पुष्प अनाज...

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देवों के देव महादेव को प्रसन्न करने के लिए कई चीजें भक्त अपनी श्रद्धा और पूर्ति के अनुसार उन्हें अर्पित करते हैं जैसे बेलपत्र फल पुष्प अनाज के दाने आदि लेकिन क्या आप जानते हैं? शिव पुराण में भगवान देवा दी देव महादेव को प्रसन्न करने के लिए पंच पुष्पों का उल्लेख किया गया है इन पंच पुष्पों को किसी ने किसी देवता का स्वरूप माना गया है जिसे आदि अनादि काल से देवाधि देव महादेव पर चढ़ाया जा रहा है। Panch pushpa shiv mahapuran

शिवमहापुराण में वर्णित पांच चमत्कारिक पंचपुष्प:

1. परिजात का पुष्प:

प्राजक्ता एक पुष्प देने वाला वृक्ष है। इसे हरसिंगार, शेफाली, शिउली आदि नामो से भी जाना जाता है। इसका वृक्ष 10 से 15 फीट ऊँचा होता है।[1] इसका वानस्पतिक नाम ‘निक्टेन्थिस आर्बोर्ट्रिस्टिस’ है। पारिजात पर सुन्दर व सुगन्धित फूल लगते हैं। इसके फूल, पत्ते और छाल का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है। यह पूरे भारत में पैदा होता है। यह पश्चिम बंगाल का राजकीय पुष्प है। (साभार: विकिपीडिया) Panch pushpa shiv mahapuran

2. कनेर का पुष्प:

कनेर के पेड़ वन और उपवन में आसानी से मिल जाते है। फूल खासकर गर्मियों के मौसम में ही खिलते हैं। फलियां चपटी, गोलाकार 5 से 6 इंच लंबी होती है जो बहुत ही जहरीली होती हैं। फूलों और जड़ों में भी जहर होता है। कनेर की चार जातियां होती हैं। सफेद, लाल व गुलाबी और पीला। सफेद कनेर औषधि के उपयोग में बहुत आता है। कनेर के पेड़ को कुरेदने या तोड़ने से दूध निकलता है।(साभार: विकिपीडिया)

3. शमी का पुष्प:

शमी या खेजड़ी के वृक्ष की लकड़ी यज्ञ की समिधा के लिए पवित्र मानी जाती है। वसन्त ऋतु में समिधा के लिए शमी की लकड़ी का प्रावधान किया गया है। इसी प्रकार वारों में शनिवार को शमी की समिधा का विशेष महत्त्व है। 1983 में इसे राजस्थान राज्य का राज्य वृक्ष घोषित कर दिया था।(साभार: विकिपीडिया)

4. धतूरे का पुष्प:

धतूरा एक पादप है।। यह लगभग 1 मीटर तक ऊँचा होता है। यह वृक्ष काला-सफेद दो रंग का होता है। और काले का फूल नीली चित्तियों वाला होता है। हिन्दू लोग धतूरे के फल, फूल और पत्ते शंकरजी पर चढ़ाते हैं। आचार्य चरक ने इसे ‘कनक’ और सुश्रुत ने ‘उन्मत्त’ नाम से संबोधित किया है। आयुर्वेद के ग्रथों में इसे विष वर्ग में रखा गया है। अल्प मात्रा में इसके विभिन्न भागों के उपयोग से अनेक रोग ठीक हो जाते हैं।(साभार: विकिपीडिया)

5. आंकड़े का पुष्प:

मदार (वानस्पतिक नाम:Calotropis gigantea) एक औषधीय पादप है। इसको मंदार’, आक, ‘अर्क’ और अकौआ भी कहते हैं। इसका वृक्ष छोटा और छत्तादार होता है। पत्ते बरगद के पत्तों समान मोटे होते हैं। हरे सफेदी लिये पत्ते पकने पर पीले रंग के हो जाते हैं। इसका फूल सफेद छोटा छत्तादार होता है। फूल पर रंगीन चित्तियाँ होती हैं। फल आम के तुल्य होते हैं जिनमें रूई होती है। आक की शाखाओं में दूध निकलता है। वह दूध विष का काम देता है। आक गर्मी के दिनों में रेतिली भूमि पर होता है। चौमासे में पानी बरसने पर सूख जाता है।(साभार: विकिपीडिया)

बम्लेश्वरी मंदिर डोंगरगढ़ के बारे में रोचक तथ्य

शिव महापुराण के अनुसार ये पुष्प बहुत ही चमत्कारिक है इनको सही विधि विधान से शिवलिंग में अर्पित करने से मनचाही इच्छा महादेव पूर्ण करते हैं। इन पुष्पों के बारे में खास बात यह है कि इसमें से एक न एक पुष्प आपको आपके आसपास अवश्य देखने मिल जाएगा चाहे आप किसी भी स्थान में रहते हो किसी भी भौगोलिक परिस्थिति में निवास करते हो इससे इस बात की सिद्धि होती है कि पुराणों में वर्णित ये पुष्प।

पंडित प्रदीप जी मिश्रा के कथा में भी वर्णित

इन पुष्पों का वर्णन भारत के सुप्रसिद्ध शिव कथा व्यास पंडित प्रदीप जी मिश्रा के शिव महापुराण कथा में भी किया जा चुका है 24 से 28 अप्रैल तक मध्य प्रदेश के धार में आयोजित शिव महापुराण कथा में इन पुष्पों का वर्णन किया गया। आपको बता दें कि 5 दिन तक चलें इस कथा में मुख्य केंद्र भगवान शिव को अर्पित किए जाने वाले यह पुष्प ही थे इस कथा का नाम पंचपुष्प शिव महापुराण (Panch pushpa shiv mahapuran) कथा था।

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Public Relation Officer PRO जॉब करियर कोर्स की पूरी जानकारी https://nitinbharat.com/public-relation-officer-pro-job-carrier-and-course-full-details/ https://nitinbharat.com/public-relation-officer-pro-job-carrier-and-course-full-details/#respond Mon, 23 Jan 2023 13:08:28 +0000 https://nitinbharat.com/?p=483 Public Relation Officer PRO क्या काम करता है? Public Relation Officer PRO जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है पब्लिक यानी जनता और रिलेशन यानी जुड़ाव। जो...

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Public Relation Officer PRO क्या काम करता है?

Public Relation Officer PRO जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है पब्लिक यानी जनता और रिलेशन यानी जुड़ाव। जो अधिकारी या व्यक्ति जनता से संबंध को बढ़ाने के लिए प्रयास करता है उसे पब्लिक रिलेशन ऑफिसर कहते है। इसे और अधिक सामान्य शब्द में जनता से जोड़ने वाला व्यक्ति भी कहा जा सकता है।

Public Relation Officer किन किन माध्यमों से जनता को जोड़ता है?

दैनिक जीवन में आप किसी न किसी व्यक्तित्व, ब्रांड और संस्था आदि से सोशल मीडिया, प्रिंट मीडिया या पत्रों के माध्यम से जुड़े होंगे। उन तक जोड़ने में पब्लिक रिलेशन ऑफिसर (Public Relation Officer PRO) की भूमिका निश्चित रूप से रही होगी। पब्लिक रिलेशन ऑफिसर आपको किसी व्यक्ति, संस्था या ब्रांड से से जोड़ने के लिए निम्न माध्यमों का सहारा लेते है।

सोशल मीडिया (फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर, यूट्यूब आदि)
इलेक्ट्रोनिक मीडिया ( विज्ञापन, स्पॉन्सर्ड प्रोग्राम आदि)
प्रिंट मीडिया (विज्ञापन, आलेख और विज्ञप्तियों के माध्यम से)
वेबसाइट्स (लेख, आलेख, विज्ञापन आदि)
आउटडोर गतिविधियों (स्टेज शो, एड पोस्टर्स, लाउडस्पीकर्स आदि)

क्या पब्लिक रिलेशन ऑफिसर सिर्फ प्रचार करता है?

पब्लिक रिलेशन ऑफिसर Public Relation Officer PRO प्रचार मात्र नही करता बल्कि वह प्रचार या जुड़ाव को बढ़ाने की नीति बनाता है। रिलेशन या जुड़ाव को बनाये रखने के लिए कार्य करता है। और लगातार उसे बढ़ाने की युक्ति तलाशते रहता है।

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क्या पब्लिक रिलेशन अच्छा करियर विकल्प बन सकता है?

भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था, दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, खरीद क्षमता शक्ति के आधार पर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी इकोनामी है। यहां दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी निवास करती है इस लिहाज से व्यक्ति, कंपनी और ब्रांड आदि के लिए जनता से जुड़ाव स्थापित करना बहुत ही आवश्यक हो गया है। पब्लिक रिलेशन ऑफिसर (Public Relation Officer PRO) इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। संस्था और प्लेटफार्म के हिसाब से पब्लिक रिलेशन ऑफिसर की कमाई या सैलरी अच्छी खासी हो सकती है। इस क्षेत्र में फ्रीलांस पब्लिक रिलेशन ऑफिसर भी अच्छी खासी सैलरी अर्जित कर सकते हैं।

पब्लिक रिलेशन ऑफिसर कैसे बन सकते है?

अधिकतर मामलों में MBA, BJMC, Sociology और Public Affairs की पढ़ाई करने वाले Public Relatio Officer की भूमिका में होते हैं। लेकिन स्पष्ट शब्दों में यह बात समझना जरूरी है कि PR करने की कला व्यक्ति में अंदरूनी होती है। यह नैसर्गिक प्रतिभा (गॉड गिफ्टेड टैलेंट) हो सकता है या अभ्यास द्वारा अर्जित किया जा सकता है।

Public Relation Officer बनने के लिए क्या क्या योग्यताएं होनी चाहिए?

अच्छा लेखन शैली (writing skills), संप्रेषण शैली (communication skills), विश्लेषण शैली (Analytical Skill) इसके साथ साथ इंटरनेट और कंप्यूटर के जमाने में (Age of computer and internet) अच्छी इंटरनेट और कंप्यूटर की जानकारी सोशल मीडिया का ज्ञान होना आवश्यक है। साथ ही करंट अफेयर्स, इवेंट्स, ट्रेंड्स का भी ज्ञान होना बहुत आवश्यक है।

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क्या PRO की सरकारी नौकरी भी होती है?

राज्य और केंद्र स्तर पर जनसंपर्क अधिकारी नाम से जिला स्तर पर सरकारी पद होते है। जिसके लिए समय समय पर वैकेंसी निकलती है। कई राज्य में जिलाधीश को जनसंपर्क अधिकारी की जिम्मेदारी दे दी जाती है।

 

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महात्मा गांधी vs अंबेडकर: क्या गांधी, अंबेडकर के सबसे बड़े शत्रु थे?

गांधी जयंती पर गोडसे जिंदाबाद सोशल मीडिया पर ट्रेंड करने लगता है। इससे इस बात का पता चलता है कि भारत में अच्छे खासे तादात में उन लोगों की भी संख्या है जो गांधी की नीतियों को नापसंद करते थे। Mahatma gandhi jayanti special

महात्मा गांधी vs अंबेडकर

महात्मा गांधी और अंबेडकर के समीकरण के बारे में भी लोग कई तरह की टिप्पणी करते है। कुछ लोग तो इन दोनो महान विभूतियों को एक दूसरे के शत्रु बताते है। कई लोग गांधी पर ये भी आरोप लगाते है कि गांधी ही वो शख्स है जिनकी वजह से दलित समाज आज तक राजनीतिक रूप से सशक्त नही हो पाया।­

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गांधी और अंबेडकर में मतभेद

1932 में गोलमेज सम्मेलनों के बाद अंग्रेजो द्वारा बांटो और राज करो के उद्देश्य से की गई दलित समाज के लिए पृथक निर्वाचन व्यवस्था का पुरजोर विरोध किया था। यहां तक यरवदा जेल में गांधी जी ने आमरण अनशन भी शुरू कर दिया अंबेडकर इससे काफी नाराज हुए और भारी दबाव में आकर उन्होंने पूना पैक्ट किया। Mahatma gandhi jayanti special

अंबेडकर केवल दलितों के मुद्दे पर गांधी जी की नीतियों की आलोचना करते थे। न कि उनके हरेक नीति की आलोचना। गांधी और अंबेडकर दोनो ही युग पुरुष और महान विचारक थे। दोनो ही विशेष परिस्थितियों में पहले बढ़े इसलिए दोनो में वैचारिक अंतर और मतभेद काफी थे। लेकिन वे एक दूसरे के शत्रु नहीं थे।

गांधी का अंबेडकर के बारे में विचार

गांधी जी से एक बार जब पत्रकार ने पूछा कि अंबेडकर आपके बारे में इतना बुरा भला कहते है आपको बुरा नहीं लगता? गांधी जी ने पत्रकार से कहा बिलकुल नहीं! क्योंकि वो अंबेडकर के शब्द नहीं बल्कि उसके अंदर का प्रताड़ित दलित है। जिसे ऐतिहासिक हिंदू में तिरस्कार और वांचना का सामना करना पड़ा है।

अंबेडकर का गांधी के बारे में विचार

ठीक उसी प्रकार एक वक्तव्य में अंबेडकर जी ने गांधी जी के बारे में कहा था। गांधी जी और मेरा उद्देश एक है। गांधी दलितों का उत्थान सामाजिक बदलाव के और लोगों के हृदय परिवर्तन के माध्यम से करना चाहते है जबकि मैं कानून और विधि के रास्ते से वो काम करना चाहता हूं। Mahatma gandhi jayanti special

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गांधी जी ही वो शख्स थे जिन्होंने देश के विधान को लिखने के लिए अंबेडकर को सबसे उपयुक्त माना। अंबेडकर जो कि विधान के माध्यम से समाज में दलितों का उत्थान करना चाहते थे। संविधान बनने के बाद भी जब दलितों के प्रति अत्याचार के मामले सामने आने तो उन्हें एहसास हुआ कि गांधी जी का रास्ता ज्यादा आवश्यक था।

किसी विचारक ने कहा है गांधी आजादी को सर्वोपरि और दलित उत्थान को आवश्यक मानते थे। जबकि अंबेडकर दलित उत्थान को सर्वोपरि और आजादी को आवश्यक मानते थे।

इसलिए गांधी और अंबेडकर में खाई दिखाने वाले अधूरा तथ्य जानते है।

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