General Article Archives - NITIN BHARAT https://nitinbharat.com/category/general-article/ India's Fastest Growing Educational Website Sat, 27 May 2023 14:51:24 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.1 210562443 भारतीय संसद के बारे में ये तथ्य आप शायद ही जानते होंगे https://nitinbharat.com/key-facts-about-new-parliament-house-of-india/ https://nitinbharat.com/key-facts-about-new-parliament-house-of-india/#respond Sat, 27 May 2023 14:51:24 +0000 https://nitinbharat.com/?p=710 भारतीय संसद में चोल काल के राजसत्ता के प्रतीक सेंगोल को स्थापित किया जाएगा। अधिकतम 1272 सदस्यों की बैठने की व्यवस्था, 30% तक बिजली की बचत, कांस्टीट्यूशनल...

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भारतीय संसद में चोल काल के राजसत्ता के प्रतीक सेंगोल को स्थापित किया जाएगा। अधिकतम 1272 सदस्यों की बैठने की व्यवस्था, 30% तक बिजली की बचत, कांस्टीट्यूशनल हाल और कमल एवं मयूर से प्रभावित नवीन संसद भवन की विशेषताओं के बारे में आइए जानते है। key facts new parliament house

1. त्रिभुजाकर संरचना: पूर्व ब्रिटिश काल निर्मित संसद वृत्ताकार थी। वर्तमान संसद भवन को कम जगह में बनाकर अधिक प्रभावशाली उपयोगी बनाया जा सके इसलिए त्रिभुजाकार बनाया गया है। ज्ञात हो कि पूर्व संसद भवन के अंदर छोटे चेंबर, छोटे हाल जैसी कई समस्याएं थी। नई संसद भवन चार मंजिला इमारत है। जिसका कुल क्षेत्रफल 64,500 स्क्वायर मीटर है।

2. मयूर से प्रभावित लोकसभा हाल: भारत के राष्ट्रीय पक्षी मोर से प्रेरणा लेकर लोकसभा की अदरूनी सीटिंग व्यवस्था बनाई गई है। इसमें 888 सदस्यों के लिए बैठक व्यवस्था एवं संयुक्त सत्र के स्थिति में 1272 सदस्यों के बैठने की व्यवस्था है।

3. राज्यसभा कमल पुष्प से प्रेरित: भारतीय संसद (key facts new parliament house) का उच्च सदन कमल के पुष्प से प्रेरित संरचना है। कमल भारत का राष्ट्रीय पुष्प है। इसमें कुल 348 सदस्यों के लिए बैठने की व्यवस्था है। आगमी सालों में परिसीमन के बाद बढ़ने वाले सीटों के मद्देनजर इसे पहले से बड़ा बनाया गया है।

4. सेंट्रल हॉल नही है: पूर्व संसद भवन की तरह इसमें सेंट्रल हॉल नही है। इस संसद भवन में लोकसभा में पांच कुर्सियां आसंदी लगाने की व्यवस्था है जिसमे संयुक्त सदन आहूत की जा सकती है। लोकसभा हाल में कुल 1272 सदस्यों की बैठने की व्यस्था है।

5. संविधान हाल: भारत की संवैधानिक उपलब्धियों और विरासत को प्रदर्शित करने के लिए भवन के मध्य में संविधान हाल बनाया गया है जो कि एक महत्वपूर्ण भूमिका होगा। पूर्व संसद भवन में इस प्रकार के किसी भी भवन की व्यवस्था नहीं थी।

6. इकोफ्रेंडली भवन: ऊर्जा की बजत और पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखते हुए यहां निर्माण कार्य किया गया है। ग्रीन डिवाइसेज और यंत्रों के द्वारा 30% तक बिजली की बचत यहां होगी।

संघीय व्यवस्था की विशेषताएं features of federal system

7. भूकंप रोधी संरचना: पूरे भवन को भूकंप जोन 5 के पत्थरों से इस प्रकार किलाबद्ध किया गया है कि इसमें भूकंप की संभावना न के बराबर हैं। पूरी दिल्ली जहां भूकंप जोन 4 में आती है वही संसद भवन परिसर भूकंप जोन 5 में आयेगा।

8. अत्याधुनिक सुविधाएं: सदस्यों के लिए उन्नत मल्टीमीडिया, डिजिटल पैड और हाईटेक तकनीकों से पूरे भवन को सुविधा युक्त बनाया गया है।

9. बड़ी दर्शकदीर्घा एवं समिति भवन: संसद भवन में जनता के आवाजाही के लिए अलग से गेट बनाए गए है। इसके अलावा कार्रवाई देखने जाने वाले विजीटर्स के लिए बड़ा विजीटर्स चेंबर बनाया गया है।

10. नए संसद भवन का निर्माण टाटा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड द्वारा किया गया है। टाटा ने बोली में इस प्रोजेक्ट को जीता था। संसद भवन का निर्माण सेंट्रल विष्टा प्रोजेक्ट के एक भाग के रूप में किया गया हैं। इसके निर्माण में कुल 970CR (2022 का अनुमान) खर्च आया।

संसद भवन की मुख्य विशेषताओं (key facts new parliament house) के बारे में हमने जाना। इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट भी कहा जाता है। कोरोना वैश्विक महामारी के बीच इसका निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ, उद्घाटन में राष्ट्रपति को नही बुलाया जाना, सेंगोल की स्थापना, विपक्षी दलों द्वारा बहिष्कार करना, संसद की औसतन कार्य दिवसों में लगातार हो रही गिरावट, वीर सावरकर के जन्म दिवस के अवसर पर इसका उद्घाटन जैसे कई पहलुओं के चलते यह हमेशा याद रखा जाएगा।

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डॉ भीमराव अंबेडकर के जयंती पर लोगों ने कह डाली ऐसी बात https://nitinbharat.com/dr-bhimrao-ambedkar-jayanti-special/ https://nitinbharat.com/dr-bhimrao-ambedkar-jayanti-special/#respond Fri, 14 Apr 2023 09:21:28 +0000 https://nitinbharat.com/?p=701 बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने आजीवन समाज के शोषित वंचित और पीड़ित वर्ग की आवाज उठाई उस वर्ग को बाबा भीमराव अंबेडकर ने संवैधानिक अधिकारों से सशक्त...

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बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने आजीवन समाज के शोषित वंचित और पीड़ित वर्ग की आवाज उठाई उस वर्ग को बाबा भीमराव अंबेडकर ने संवैधानिक अधिकारों से सशक्त किया प्रतिनिधित्व का अधिकार दिया और शिक्षा और रोजगार के लिए मार्ग प्रशस्त किया आज जब पूरा देश डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की जयंती (dr bhimrao ambedkar jayanti) मना रहा है तक कुछ ऐसे लोग भी हैं जो भावविभोर होकर अंबेडकर को श्रद्धांजली दे रहे हैं वहीं कई ऐसे लोग भी हैं जो अंबेडकर के बारे में वह सब भी लिख रहे हैं जो उन्हें नहीं लिखना चाहिए।

सोशल मीडिया पर लिखे गए ऐसे ही कुछ रोचक पोस्ट के बारे में हम इस आर्टिकल में पड़ेंगे। इसे पढ़ने से पहले इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि आज अंबेडकर किसी जाति विशेष के प्रतिनिधि या नेता नहीं है या केवल जातिवादी नेता भी नही है। बाबा साहेब आंबेडकर (dr bhimrao ambedkar jayanti) हर शोषित, पीड़ित, वंचितों की आवाज थे। महान राजनीतिज्ञ, अर्थशास्त्री और विचारक थे। संविधान के शिल्पी और विकसित भारत के स्वप्नदृष्टा थे। उनकी सराहना, गांधी, नेहरू, पटेल सभी करते थे।

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उनकी जयंती पर @jainkhabar नामक ट्विटर यूजर लिखते है-

अंबेडकर जी को को पहले जैन धर्म और बौद्ध धर्म ही पसंद आए थे। वे अपने 7,00000 फॉलोवर्स के साथ जैन धर्म अंगीकार करने वाले थे, और इसके लिए वे चारित्र चक्रवर्ती शांति सागर जी महाराज के पास पहुंचे और उनसे कहा कि आप इन्हें दीक्षित कर दीजिए।

लेकिन शांति सागर जी महाराज ने कहा कि पहले वे मांस मदिरा आदि का त्याग करके आधारभूत नियमों का पालन करें तो हम इन्हें दीक्षित करेंगे, लेकिन अंबेडकर चाहते थे कि पहले दीक्षित कर दिया जाए यह सब नियम बाद में अंगीकार होते रहेंगे, बस बात यहीं पर नहीं बन पाई और उन्होंने सात लाख लोगों

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के साथ 1956 में नागपुर में बौद्ध धर्म अंगीकार कर लिया।मानव समुदाय में ऊंच-नीच की भावना भरने वाले हिंदू धर्म के ग्रंथ मनुस्मृति को भीड भरे चौराहे पर जला दिया। उनका कहना था कि प्रत्येक मनुष्य समान है कोई भी ऊंच-नीच नहीं है जाति-भेदभाव से परे उन्होंने संविधान बनाने में सहयोग किया।

Retired IPS RK Vij ने अंबेडकर के सुविचार के साथ उन्हें याद करते हुए लिखते है- “मुझे वह धर्म प्यारा है जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा सिखाता हो।”

संजय चौहान नामक एक ट्विटर यूजर ने लखनऊ से जारी महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के वीडियो संदेश को प्रसारित किया जिसमे उन्होंने कहा है कि ” बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर मेरे लिए भगवान है। मैं आज आपके सामने खड़ी हूं तो यह बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर की वजह से है” इस वीडियो में लिखा गया है कि इतिहास गवाह है महिलाओं को न्याय दिलाने का काम जो बाबा। साहेब ने किया है वह कोई भी नही कर पाया था।

शिमला मीना (@ShimlaMeena9) यूजर द्वारा महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए बाबा साहेब के पहल को याद करते हुए लिखा गया है-

महिलाओं का जीना आसान नहीं होता,

यदि दुनिया में पैदा कोई भीम नहीं होता,

मनुवाद की गुलामी से कोई घूंघट में रोता,

फिर सर उठा कर जीना आसान नहीं होता,

बाबा ने तेरी हाथों की बेंडियो को तोड़ा,

वरना कलम चलाना आसान नहीं होता,

डीएम सीएम पीएम कोई महिला नहीं बनती,

अगर बाबा साहब का लिखा संविधान नहीं होता!!

 

रवि सगरमे (@ravisagarme) नामक ट्विटर यूजर ने एक वीडियो संदेश को जारी किया है जिसमे कहा गया है –

“एक महिला कभी मस्जिद की मौलाना नहीं बन सकती, एक महिला कभी मंदिर की मुख्य पुजारी नहीं बन सकी, एक महिला कभी चर्च की मुख्य पादरी नहीं बन सकती, कोई भी महिला कभी भी किसी भी धर्म की विश्वविख्यात गुरु नहीं बन सकी। मगर एक महिला विधायक, सांसद, मुख्यमंत्री, राज्यपाल, राष्ट्रपति, आईएएस, आईपीएस और सचिव सब कुछ बन सकती है। जो अधिकार धर्म नहीं दे पाया वह सब अधिकार डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के संविधान ने महिलाओं को दे दिया। इसलिए भारत की महिलाओं को डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के प्रति ईमानदार होकर उनके दिखाए रास्ते पर चलना चाहिए। मगर आज की महिलाएं धर्म और कर्मकांड के चक्कर में पड़ कर अपना जीवन बर्बाद कर रही है” dr bhimrao ambedkar jayanti

राष्ट्रवादी पत्रकार सुरेश चवनके के लिखते हैं –

“आख़िरी मुसलमान जब तक पाकिस्तान नहीं चला जाता और आख़िरी हिंदू जब तक हिंदुस्थान नहीं आ जाता, तब तक मैं देश के इस विभाजन को नहीं मानूंगा”- भारत रत्न #डॉ_बाबासाहेब_आंबेडकर जी आज उनकी स्मृति को कोटि- कोटि नमन..

इसके साथ ही चावहांके ने बाबा साहेब की तस्वीर भी पोस्ट की जिसपर उन्होंने लाल टीका भी आर्टिफिशियल तरीके से लगा दिया था।

उत्तर प्रदेश के लोकप्रिय मुख्यमंत्री लिखते है -“समाज के हर वंचित, हर पीड़ित, हर दलित की आवाज को धार देने, उनके संघर्ष को आगे बढ़ाने वाले ‘भारत रत्न’ बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर को कोटि-कोटि नमन!”

आईपीएस प्रह्लाद मीना ने एक तस्वीर पोस्ट की जिसमे अंबेडकर के नाम से कहा गया है कि “तुम्हारे पैरों में जूते भले ना हो पर हाथों में किताब अवश्य होना चाहिए”

वही अधिकतर लोगों ने “Be Educated, Be Organised and Be Agitated (शिक्षित बनो , संगठित रहो , संघर्ष करो)” और “हजार तलवारों से ज्यादा ताकत एक कलम में होती है।” प्रेरणादायक सुविचार भी उनके जन्म दिवस के अवसर पर लिखा।

 

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क्या मोदी सरकार इतिहास बदलने की कोशिश कर रही है? https://nitinbharat.com/ncert-history-chapter-removed-disputes-rises/ https://nitinbharat.com/ncert-history-chapter-removed-disputes-rises/#respond Thu, 06 Apr 2023 16:55:54 +0000 https://nitinbharat.com/?p=661 “गूगल के दौर में ‘मुग़ल का चैप्टर’ हटा देने से इतिहास नहीं बदल जाता है।” यह कहना है भारत के मशहूर पत्रकार रविश कुमार का। वहीं कुछ...

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“गूगल के दौर में ‘मुग़ल का चैप्टर’ हटा देने से इतिहास नहीं बदल जाता है।” यह कहना है भारत के मशहूर पत्रकार रविश कुमार का। वहीं कुछ लोगों का कहना है कि मुगल को इतिहास से हटाना नही चाहिए बल्कि उनकी निर्दयिता, अत्याचार, हैवानियत और बर्बरता को विस्तार पूर्वक भावी पीढ़ी को पढ़ाना चाहिए। NCERT History Chapter Removed

सब का अपना अपना पक्ष:

लेकिन मुस्लिम विरोधी और दक्षिणपंथी विचारधारा को समर्थन देने वाले लगातार यह मांग कर रहे थे कि मुगलों का पाठ्यक्रम में कोई स्थान नहीं होना चाहिए। आइए समझने की कोशिश करते है। आखिर मुगलों को पाठ्यक्रम से हटाने के क्या नफे नुकसान है। हालांकि उससे पहले यह अवश्य जान ले पूरी मुगल इतिहास नही हटाया गया है बल्कि कुछ विवादित हिस्सो को NCERT की अनुशंसा पर हटाया (NCERT History Chapter Removed) गया है।

आपको बता दें कि भारत में NCERT और राज्य बोर्डों के पाठ्यक्रमों में बदलाव पहली बार नहीं हुआ है। ये बदलाव सरकार और समय बदलने के साथ साथ होते रहे है और जब भी बदलाव होते है हो हल्ला मचाया ही जाता है। बहरहाल आइए अब समझने की कोशिश करते है पाठ्यक्रम बदलने के पक्ष और विपक्ष में क्या बातें कही जा रही है?

पक्ष:

एनसीईआरटी के निदेशक दिनेश प्रसाद सकलानी का कहना है कि कोरोना काल में बच्चों पर पढ़ाई का बोझ कम करने के लिए कोर्स में कुछ बदलाव किए गए थे। यह कोई बड़ी बात नहीं है। ग्यारहवीं कक्षा के सिलेबस से सेंट्रल इस्लामिक लैंड्स, संस्कृतियों का टकराव और औद्योगिक क्रांति जैसे चैप्टर को हटा दिया गया, बारहवीं कक्षा की नागरिक शास्त्र की किताब से ‘लोकप्रिय आंदोलनों का उदय’ और ‘एक दलीय प्रभुत्व का युग’ जैसे चैप्टर्स को हटा दिया गया। 10वीं क्लास की ‘डेमोक्रेटिक पॉलिटिक्स’ किताब से ‘डेमोक्रेसी एंड डायवर्सिटी’, ‘लोकप्रिय संघर्ष और आंदोलन’, ‘लोकतंत्र की चुनौतियां’ जैसे चैप्टर हटा दिए गए हैं। एनसीईआरटी निदेशक ने इस पूरी बहस को गैर-जरूरी करार दिया। NCERT History Chapter Removed

पत्रकार रजत शर्मा कहते है फिजिक्स, केमिस्ट्री, बायोलॉजी, ज्योग्राफी और कॉमर्स जैसे विषयों में भी बदलाव किए गए है और आधुनिकता और नवीन जानकारियों का समावेश पाठ्यक्रमों में किया गया है। लेकिन विरोध सिर्फ इतिहास का क्यों? वे आगे कहते है “प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पहली बार इस पर संजीदगी से काम किया। पूरी शिक्षा नीति बदल दी और जब शिक्षा नीति बदलती है तो कुछ पुरानी चीज़ें हटती हैं और कुछ नई चीजें जुड़ती हैं। सिलेबस में जो बदलाव हुए हैं वो अस्थायी हैं। इन्हें फिर से बदला जा सकता है।”

विपक्ष:

पत्रकार रविश कुमार इसे इतिहास बदलने की साजिश मानते हुए कहते है “गूगल के दौर में ‘मुग़ल का चैप्टर’ हटा देने से इतिहास नहीं बदल जाता है।”

वहीं असदउद्दीन ओवेशी ने सरकार पर आरोप लगाया कि भाजपा सिलेबस में बदलाव कर अपनी विचारधारा बच्चों पर थोपना चाहती है। लेकिन सच बदल नही सकते।

वही कांग्रेस पार्टी ने ट्विट कर लिखा कि

• गोडसे की सच्चाई
• RSS बैन
• गुजरात दंगे

NCERT की किताबों से इन्हें हटा दिया गया है, अब बच्चों को ये नहीं पढ़ाया जाएगा। मोदी जी, इतिहास बदला नहीं बनाया जाता है… और इतिहास आपको अडानी के काले कारनामों के लिए याद करेगा।

शिक्षाविदों ने दुख जाहिर करते हुए लिखा कि मध्यकालीन मुगल इतिहास भारतीय वास्तुकला और साहित्य के स्वर्णिम काल के रूप में जाना जाता है कक्षा 12वीं के पुस्तक से कुछ पाठ्यक्रम को हटाना दुर्भाग्यजनक है।

वही कुछ लोगों को द्वारा तंज कसते हुए लिखा गया है कि जो लोग इतिहास बदल नही सकतें इतिहास मिटाने की कोशिश करते है।

दौर सोशल मीडिया का है यहां छोटी बात बड़ी बन जाती है और सोशल मीडिया और गूगल के AI आप तक आपके पसंदीदा विचारधारा को सामने लाकर रख देता है। और विषय गंभीर और बड़ा लगने लगता है। सिर्फ विरोध के नामपर विरोध नही और विचारधार के नाम पर समर्थन नहीं किया जाना चाहिए बल्कि अपने विरोध के पीछे मजबूत तर्क रखने चाहिए।

क्षेत्रफल के अनुसार विश्व के 7 सबसे बड़े देशों की सूची व ट्रिक

एनसीईआरटी के पीछे भारत सरकार खड़ी होकर पाठ्यक्रम में संशोधन कर रही है ऐसा कुछ लोगों का मानना है। मेरा मानना है सरकार इसी लिए चुनी जाती है कि वह आपके भौतिक और मानसिक विकास कर सके। यदि NDA सरकार प्रचंड बहुमत लेकर आई है तो वो आपका वैचारिक विकास किसी दूसरी पार्टी के विचारधारा अनुरूप करेगी इसकी अपेक्षा आपको नही रखनी चाहिए।
हालांकि एक आदर्श लोकतांत्रिक सरकार सभी विचारों को बराबर स्थान देती है।

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क्या आदिवासी हिंदू नही है? Does Tribals Are Not Hindu https://nitinbharat.com/does-tribals-are-hindu/ https://nitinbharat.com/does-tribals-are-hindu/#comments Fri, 31 Mar 2023 18:19:27 +0000 https://nitinbharat.com/?p=641 does tribals are hindu: झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने केंद्र सरकार से विधानसभा में पृथक आदिवासी कोड जारी करने के लिए आग्रह बिल ला चुकी है...

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does tribals are hindu: झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने केंद्र सरकार से विधानसभा में पृथक आदिवासी कोड जारी करने के लिए आग्रह बिल ला चुकी है मध्यप्रदेश और राजस्थान में भी इसी तरीके की मांग की जाती है रही है। जबकि पूर्णोत्तर भारत में यह मांग कई गुना मुखर तरीके से उठती रही है।

हाल ही में छत्तीसगढ़ के कैबिनेट मंत्री कवासी लखमा ने भी यह बयान दिया कि आदिवासी हिंदू नहीं है। एक तरफ जहां कई लोगों, साधु संतो द्वारा भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित करने की मांग की जा रही है वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के आदिवासी बहुल राज्य के मंत्री द्वारा आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड की मांग भारत में हिंदुत्व के बहस को नया मोड़ देने वाला है। आइए समझने की कोशिश करते हैं क्या आदिवासी सच में हिंदू नहीं है?does tribals are hindu

आदिवासी आदिवासियों को वनवासी, जनजाति और आदिम जाति आदि नामों से जाना जाता है। विदेशी आक्रांता काल में में इन्हे आदिवासी का नाम दिया गया। इसके पीछे की मान्यता थी कि ये भारत के सबसे पुराने लोग है। इतिहासकारों ने आदिवासियों को अनार्य की श्रेणी रखा और कहा कि आर्य भारत के बाहर से आकर बसे वैदिक उत्तर वैदिक धर्म की स्थापना की जो आज हिंदुत्व या हिंदू धर्म के नाम से जाना जाता है (Does tribals are hindu)। इसपर भी अलग अलग इतिहासकारों के अलग अलग मत है।

पहले पक्ष का तर्क:

आदिवासियों को हिंदुओं की श्रेणियों में न मानने वालों का तर्क:

 

1. ये मानते है कि आदिवासियों की पूजा पद्धति, विवाह संस्कार, देवी-देवता, बोली-भाषा हिंदुओ से अलग है।

2. आदिवासी विचारक मानते है हिंदू धर्म की उत्त्पति वैदिक और उत्तरवैदिक काल लगभग (1750 ईसा पूर्व से 1000 ईसा पूर्व) से हजारों वर्ष पुराना है। इसलिए यह हिंदू धर्म से अलग है।

3. आजादी के पूर्व अंग्रेजो द्वारा जनजातीय समाज का पृथक जनसंख्यिकीय आंकड़ा जारी किया जाता था। 1961 में आदिवासियों का पृथक धर्म कोड समाप्त कर दिया गया।

4. आदिवासी स्वयं को ब्राम्हणवादी वर्चस्व के मनुवादी ढांचे और कर्मकांड में विश्वास नहीं करने वाले मानते है।

5. आदिवासियों की पूजन पद्धति प्रकृति आधारित है जैसे साल, सागौन, बरगद वृक्षों की पूजा करना, पशु पूजा, नदी पूजा आदि।

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ज्ञात हो कि भारत में लगभग 705 जनजातीय समूह (Does tribals are hindu) निवासरत हैं। जिनमें लगभग 75 विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTGs) हैं। भारत की 1961 की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार देश में अनुसूचित जनजाति की आबादी करीब 3.1 करोड़ ( कुल जनसंख्या का 6.9 %) थी. 2011 के अनुसार अब देश में अनुसूचित जनजाति की आबादी लगभग 10.45 करोड़ हो चुकी है, जो कुल आबादी का लगभग 8.6% है। भारतीय संविधान में जनजातीय समुदाय के लिए 7.5 प्रतिशत का आरक्षण सरकारी नियुक्तियों और शिक्षण संस्थानों में प्रवेश पर दिया गया है।

दूसरे पक्ष का तर्क (does tribals are hindu?)

आदिवासियों को हिंदू मानने वाले तर्क देते है कि:

 

1. आदिवासी हिंदू धर्म के अभिन्न अंग है और अंग्रेजो द्वारा हिंदू धर्म को बांटने के लिया आर्य और गैर आर्य सिद्धांत प्रतिपादित किया गया था। चूंकि अंग्रेजो को जंगलों के आदिवासियों से कड़ी चुनौती मिलती थी इसलिए वैचारिक तौर पर उन्हें स्वतंत्रता आंदोलन से भटकाने, उन्हे अपने धर्म में जोड़ने के लिए ईसाई मिशनरियों के माध्यम से दुष्प्रचार किया। जिसे राजनीतिक लाभ के लिए आज भी कुछ नेताओं द्वारा छेड़ा जाता है।

2. आदिवासी समाज और धार्मिक रीति रिवाजों में काफी समानता है जैसे आदिवासी समाज भी प्रकृति पूजा करता है। और हिंदू समाज भी प्रकृति पूजा करता है। जैसे नदी कि पूजा, वृक्ष की पूजा, पर्वत की पूजा और पशुओं की पूजा। आदिवासी भी गंगाजी को पवित्र मानकर स्नान करते है। गौ माता की पूजा आदिवासी भी करते है। आदिवासियों की काष्ट कला में गणेश जी की प्रतिमा, शिव जी की प्रतिमा आदिवासी समाज सैकड़ों वर्षों से बनाते आ रहे है। इसके अलावा आदिवासी समाज हिंदू त्योहारों को चाहे वह फसल कटने से लेकर, फसल बोवाई तक के हो या देशव्यापी त्योहार दिवाली, दशहरा, तीज, नवरात्र और होली सभी को समान रूप से मनाते आ रहे हैं। मजेदार बात तो ये है कि आदिवासियों के कई त्योहार हिंदू लोग मानते है।

 

3. तीसरी मुख्य बात जी आदिवासियों और हिंदू धर्म को धार्मिक रूप से एक बताते है वह है आदिवासियों का जन्म संस्कार, विवाह संस्कार, श्राद्ध संस्कार में समानता होना। आदिवासियो को भी मरने के जलाया जाता है। आदिवासी समाज देवी देवताओं के अवतारों में विश्वास करता और अवतारवाद भी हिंदू धर्म का एक प्रमुख लक्षण है।

 

4. चौथी बात जो आदिवासियों को हिंदू धर्म से अलग बताते है उन्हे समझना चाहिए जो देश की अवधारणा पश्चिम है वह भारत में फिट नहीं बैठता। भारत में समुदायों के बीच इतनी विविधता है जिसे अगर पश्चिम विचारकों के चश्मे से देखा जाए तो करीब 1000 से अधिक देश भारत वर्ष में समाहित है। भारत में दक्षिण के हिंदुओ का रंगरूप बोली भाषा उत्तर के हिंदुओ से अलग है। वहीं पश्चिम के हिंदुओ का खानपान पूर्व के हिंदुओ से अलग है। ठीक उसी प्रकार दक्षिण के आदिवासियों से मध्य के आदिवासियों की बोलचाल रंगरूप अलग है। वही कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के आदिवासियों के संस्कृति में और पश्चिम के गुजरात और महाराष्ट्र के आदिवासियों के में पर्याप्त अंतर है। पूर्वोत्तर के आठ राज्यों में आदिवासियो विविधता अपने आप में भिन्न है। यदि प्रत्येक आदिवासी और गैर आदिवासी समाज अपना पृथक धार्मिक कोड मांगने लग गए तो हर 100 किलोमीटर में अलग धर्म देखने मिलेगा। छत्तीसगढ़ में ही बस्तर के देवता और सरगुजा के देवता में बहुत अंतर आ जाता है।

5. पांचवी बार जो आदिवासियों को हिंदू मानते हुए कही जाती है वह है हिंदुत्व का स्वरूप! भारत में 1995 में सुप्रीम कोर्ट ने भी यह माना है कि हिंदुत्व जीवन जीने की शैली है। हिंदुत्व या हिंदू धर्म के मुख्य लक्षण मूर्तिपूजा, अवतारवाद, पुनर्जन्म, बहुदेववाद, वर्ण और जाति व्यवस्था है। जो कि आदिवासियों द्वारा भी अनुसरण किया जाता है।

 

तो ये थे आदिवासियों को हिंदुओ का अभिन्न हिस्सा मानने वालों का तर्क।

 

वर्तमान भारत में हिंदुत्व के पुनरुत्थान का दौर माना जा रहा है। भारत के आधे से अधिक राज्यों में दक्षिणपंथी विचारधारा समर्थक भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। ऐसे में अलग आदिवासी धर्म कोड की मांग और आदिवासियों को हिंदू धर्म से अलग करने की कोशिशें कहां तक दम भर पाती है देखना रोचक होगा।

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नवरात्रि हवन में किस द्रव्य का क्या फल है? https://nitinbharat.com/havan-samagri-ki-list-aur-%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%a4%e0%a4%bf%e0%a4%ab%e0%a4%b2/ https://nitinbharat.com/havan-samagri-ki-list-aur-%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%a4%e0%a4%bf%e0%a4%ab%e0%a4%b2/#respond Wed, 22 Mar 2023 07:15:10 +0000 https://nitinbharat.com/?p=606 भारत में नवरात्र का पर्व बहुत ही धूमधाम, पूरे विधि विधान और परंपरा के साथ मनाया जाता है। आठवें दिन नवरात्र के हवन का कार्यक्रम आयोजित होता...

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भारत में नवरात्र का पर्व बहुत ही धूमधाम, पूरे विधि विधान और परंपरा के साथ मनाया जाता है। आठवें दिन नवरात्र के हवन का कार्यक्रम आयोजित होता है। हवन वह विधि है जिसके द्वारा परमात्मा को अर्थात अग्नि देव को कुछ विशेष द्रव्य द्रव और सामग्री अर्पित की जाती है। ग्रंथों और पुराणों में सभी सामग्री को अर्पित करने का विशेष महत्व है। यदि आप इन द्रव्यों को अर्पित नहीं करते तो हवन का पूर्ण फल आपको प्राप्त नहीं होगा। havan samagri ki list

हवन और यज्ञ में क्या अंतर है?

नवरात्र में आठवें दिन हवन एवं 9वें दिन विसर्जन का विधान है हवन में विभिन्न प्रकार के द्रव्य, तरल पदार्थ एवं फल अर्पित करने का विधान है। जैसे जायफल, अनाज (जैसे चावल, गेहूं) आंवला, किशमिश, कमल का फूल, दही, केला, खीर, चंपा के पुष्प, इत्यादि। स्मरण रहे हवन और यज्ञ में फर्क होता है। यज्ञ किसी विशेष वरदान योजन अथवा कार्य को संपन्न करने के लिए होता है। जबकि हवन अग्नि देव को प्रसन्न करने के लिए होता है। आइए जानते हैं हवन में अर्पित की जाने वाले द्रव्य और उनसे प्राप्त होने वाले फलों के बारे में। havan samagri ki list

हवन सामग्री सूची और फल

जायफल- से कीर्ति प्राप्ति होती है।

किशमिश से सुख – संपत्ति और कार्य की सिद्धि होती है।

आंवले – से सुख और कीर्ति प्राप्ति होती है।

केले के फलाहार से – आभूषण तथा पुत्र प्राप्ति

गेहूँ – से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है

खीर – परिवार में वृद्धि होती है

चंपा के पुष्प – धन और असीम सुख की प्राप्ति

कमल – राज सम्मान की प्राप्ति

गुड, घी, नारियल, शहद, जौं, तिल, फलों
से सुख – संपत्ति और कार्य की सिद्धि होती है।

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तो यह थे हवन में उपयोग होने वाले पदार्थ एवं उनसे प्राप्त होने वाले फल। हवन योजन की उचित फल प्राप्ति के लिए इन चीजों का अर्पण अवश्य करें एवं यथासंभव इस जानकारी को अन्य लोगों तक साझा करें ताकि उन्हें भी हवन का लाभ प्राप्त हो सके। havan samagri ki list

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Facebook Reach अचानक डाउन क्यों हो गई है? https://nitinbharat.com/why-facebook-reach-down-know-all-about/ https://nitinbharat.com/why-facebook-reach-down-know-all-about/#respond Tue, 14 Feb 2023 13:21:57 +0000 https://nitinbharat.com/?p=593 यदि सोशल मीडिया एप फेसबुक में अचानक आपकी रिच कम हो गई है, और पहले की तुलना में आपके पोस्ट पर लाइक बहुत ज्यादा घट गई है,...

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यदि सोशल मीडिया एप फेसबुक में अचानक आपकी रिच कम हो गई है, और पहले की तुलना में आपके पोस्ट पर लाइक बहुत ज्यादा घट गई है, और फेसबुक में पोस्ट करने का आपको मन नहीं करता (Why Facebook Reach Down) तो इस आर्टिकल को पूरा पढ़े।

फेसबुक के बारे में

2022 के अंत तक फेसबुक में करीब 3 बिलियन यूजर थे। इनमे से करीब 2 अरब सक्रिय यूजर है। इस लिहाज से यह दुनिया की सबसे बड़ी सोशल साइट है। जिसके जरिए लोग अपनी बात, विचार, व्यापार, कला, नवाचार, पर्यटन, संस्कृति और समाचार विश्व की बड़ी आबादी तक पहुंचा सकते है। Why Facebook Reach Down

फेसबुक को 2010 से 2020 के बीच आम आदमी के जीवन में जादुई बदलाव लाने वाला कहा जाए तो गलत नही होगा। अपने कला, खानपान और समस्या को फेसबुक में शेयर कर लोग अपने जीवन में बदलाव ला सकते थे।

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यही नहीं corona काल में Covid से जुड़ी गाइडलाइन, हेल्प और बचाव के जो भूमिका महत्वपूर्ण भूमिका Facebook ने निभाई वह सराहनीय था।

फेसबुक की इनकम बेतहाशा बढ़ती गई। इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप का अधिग्रहण किया। अपना नाम बदलकर मेटा रखा। और दावा किया कि लोगो की जीवन में बदलाव लाने के लिए कई कदम फेसबुक उठाएगा।

इसी बीच फेसबुक पर डाटा चोरी, एक खास तरह के पॉलिटिकल आइडियोलॉजी को समर्थन देने, टैक्स चोरी और चुनाव के दौरान पैसे लेकर माहौल बनाने का भी आरोप लगा।

फिर सोशल मीडिया सेक्टर में एंट्री होती है इनोवेशन किंग कहे जाने वाले एलोन मस्क का ये ठीक वैसा ही था जैसे भारत में मुकेश अंबानी का टेलीकॉम सेक्टर में प्रवेश करना। एलोन मस्क इतनी तेजी से आगे बढ़ रहे है कि मेटा जैसे ग्रुप को कब अधिग्रहण कर ले अंदाजा नही लगाया जा सकता।

फेसबुक की कमाई का जरिया:

फेसबुक में रिच डाउन क्यों (Why Facebook Reach Down) यह जानने से पहले यह जानना आवश्यक है कि आखिर फेसबुक की कमाई कैसे होती है?

विज्ञापन से

फेसबुक में जो विज्ञापन चलता है वह फेसबुक की कमाई का मुख्य जरिया है हालांकि उसका कुछ हिस्सा वेरिफाइड अकाउंट को भी किया जाता है।

बूस्ट पोस्ट से

यूजर के किसी भी पोस्ट को टारगेटेड और ज्यादा यूजर तक पहुंचाने के लिए फेसबुक 90 रुपए से लेकर हजारों लाखों तक के फीस लेता है। आपने अक्सर अपने फेसबुक में paid post लिखा हुआ पोस्ट देखा होगा।

घोषित रूप से दो ही बड़े तरीके है जिससे फेसबुक की कमाई होती है। इसके अलावा डाटा मैनिपुलेशन के और तरीके है जिससे फेसबुक की कमाई होती है। इस कमाई को कई गुना बढ़ाने के लिए फेसबुक ने सभी यूजर की रिच घटा दी (Why Facebook Reach Down) है। आइए जानते है

Public Relation Officer PRO जॉब करियर कोर्स की पूरी जानकारी

फेसबुक पोस्ट रिच डाउन क्यों हुआ?

2022 में ट्विटर का टेकओवर करने के बाद एलोन मस्क ने ट्विटर को कमाई का जरिया बनाने के लिए कई बदलाव किए। जिनमे ब्लू टिक के लिए पैसे चुकाने जैसे तरीके शामिल है।

फेसबुक ने ज्यादा बदलाव न करके अपने यूजर का रिच घटा दिया। अब केवल उन्हीं पोस्ट पर ज्यादा रिच और लाइक मिलते है जो बूस्ट किए जाते है। Meta की रेवेन्यू इससे कई गुना बढ़ने का अनुमान है।

2 बिलियन सक्रिय यूजर में 2% यूजर भी यदि रोज बूस्ट पोस्ट करते है तो वो ट्विटर की रोजाना होने वाली कमाई से कई गुना आगे निकल सकते है।

यह एक सामान्य बिजनेस गतिविधि (Why Facebook Reach Down) है जो अपने प्रतिद्वंदी के सामने टिके रहने में मदद करता है। अभी तक फेसबुक का बूस्ट पोस्ट से कमाई उसके पेज से ही संभव है।

लेकिन संभावना है कि प्रोफाइल में भी आगे बूस्ट पोस्ट की सुविधा फेसबुक प्रदान कर दे। आम यूजर इसे समझ नही पाते लेकिन हो सकता है आने वाले समय में आपको अपने फेसबुक पोस्ट को लोगों तक पहुंचाने के लिए पैसे चुकाने पड़े।

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Public Relation Officer PRO क्या काम करता है?

Public Relation Officer PRO जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है पब्लिक यानी जनता और रिलेशन यानी जुड़ाव। जो अधिकारी या व्यक्ति जनता से संबंध को बढ़ाने के लिए प्रयास करता है उसे पब्लिक रिलेशन ऑफिसर कहते है। इसे और अधिक सामान्य शब्द में जनता से जोड़ने वाला व्यक्ति भी कहा जा सकता है।

Public Relation Officer किन किन माध्यमों से जनता को जोड़ता है?

दैनिक जीवन में आप किसी न किसी व्यक्तित्व, ब्रांड और संस्था आदि से सोशल मीडिया, प्रिंट मीडिया या पत्रों के माध्यम से जुड़े होंगे। उन तक जोड़ने में पब्लिक रिलेशन ऑफिसर (Public Relation Officer PRO) की भूमिका निश्चित रूप से रही होगी। पब्लिक रिलेशन ऑफिसर आपको किसी व्यक्ति, संस्था या ब्रांड से से जोड़ने के लिए निम्न माध्यमों का सहारा लेते है।

सोशल मीडिया (फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर, यूट्यूब आदि)
इलेक्ट्रोनिक मीडिया ( विज्ञापन, स्पॉन्सर्ड प्रोग्राम आदि)
प्रिंट मीडिया (विज्ञापन, आलेख और विज्ञप्तियों के माध्यम से)
वेबसाइट्स (लेख, आलेख, विज्ञापन आदि)
आउटडोर गतिविधियों (स्टेज शो, एड पोस्टर्स, लाउडस्पीकर्स आदि)

क्या पब्लिक रिलेशन ऑफिसर सिर्फ प्रचार करता है?

पब्लिक रिलेशन ऑफिसर Public Relation Officer PRO प्रचार मात्र नही करता बल्कि वह प्रचार या जुड़ाव को बढ़ाने की नीति बनाता है। रिलेशन या जुड़ाव को बनाये रखने के लिए कार्य करता है। और लगातार उसे बढ़ाने की युक्ति तलाशते रहता है।

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क्या पब्लिक रिलेशन अच्छा करियर विकल्प बन सकता है?

भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था, दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, खरीद क्षमता शक्ति के आधार पर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी इकोनामी है। यहां दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी निवास करती है इस लिहाज से व्यक्ति, कंपनी और ब्रांड आदि के लिए जनता से जुड़ाव स्थापित करना बहुत ही आवश्यक हो गया है। पब्लिक रिलेशन ऑफिसर (Public Relation Officer PRO) इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। संस्था और प्लेटफार्म के हिसाब से पब्लिक रिलेशन ऑफिसर की कमाई या सैलरी अच्छी खासी हो सकती है। इस क्षेत्र में फ्रीलांस पब्लिक रिलेशन ऑफिसर भी अच्छी खासी सैलरी अर्जित कर सकते हैं।

पब्लिक रिलेशन ऑफिसर कैसे बन सकते है?

अधिकतर मामलों में MBA, BJMC, Sociology और Public Affairs की पढ़ाई करने वाले Public Relatio Officer की भूमिका में होते हैं। लेकिन स्पष्ट शब्दों में यह बात समझना जरूरी है कि PR करने की कला व्यक्ति में अंदरूनी होती है। यह नैसर्गिक प्रतिभा (गॉड गिफ्टेड टैलेंट) हो सकता है या अभ्यास द्वारा अर्जित किया जा सकता है।

Public Relation Officer बनने के लिए क्या क्या योग्यताएं होनी चाहिए?

अच्छा लेखन शैली (writing skills), संप्रेषण शैली (communication skills), विश्लेषण शैली (Analytical Skill) इसके साथ साथ इंटरनेट और कंप्यूटर के जमाने में (Age of computer and internet) अच्छी इंटरनेट और कंप्यूटर की जानकारी सोशल मीडिया का ज्ञान होना आवश्यक है। साथ ही करंट अफेयर्स, इवेंट्स, ट्रेंड्स का भी ज्ञान होना बहुत आवश्यक है।

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क्या PRO की सरकारी नौकरी भी होती है?

राज्य और केंद्र स्तर पर जनसंपर्क अधिकारी नाम से जिला स्तर पर सरकारी पद होते है। जिसके लिए समय समय पर वैकेंसी निकलती है। कई राज्य में जिलाधीश को जनसंपर्क अधिकारी की जिम्मेदारी दे दी जाती है।

 

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Rishi Sunak : ऋषि सुनक ब्रिटेन के पहले भारतीय मूल के प्रधानमंत्री https://nitinbharat.com/rishi-sunak-uk-pm-from-indian-origin/ https://nitinbharat.com/rishi-sunak-uk-pm-from-indian-origin/#respond Tue, 25 Oct 2022 14:10:31 +0000 https://nitinbharat.com/?p=380 “जरा सी वोट से रह गया वरना ऋषि सुनक तुम्हें बताता कि जिन पर राज करके गए हो उनका वंश तुम राज कर रहा है,रुको किसी न...

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“जरा सी वोट से रह गया वरना ऋषि सुनक तुम्हें बताता कि जिन पर राज करके गए हो उनका वंश तुम राज कर रहा है,रुको किसी न किसी दिन करेगा। शंकर का डमरू बज रहा है” Rishi sunak uk pm

ये शब्द भारत के प्रतिष्ठित कवि डॉक्टर कुमार विश्वास ने कुछ दिन पहले ही अपने काव्य मंच से कही थी जो कि आज दीपावली की संध्या पर सच हो गई।Rishi sunak uk pm

यह गौरव गौरव का विषय है क्योंकि जिस भारत पर अंग्रेजों ने 200 सालों तक राजकीय उसका शोषण किया उसे सबवे बनाने की बात की अर्थात बर बर कहा उसी भारत मूल का व्यक्ति आज ब्रिटेन के सर्वोच्च पद पर का बीज होने जा रहा है देश के सभी जानी-मानी हस्तियों राजनेताओं लेखकों ने ऋषि सुनक के यूके के प्रधानमंत्री बनने पर गौरव जाहिर करते हुए संदेश लिखें। Rishi sunak uk pm

भारत के प्रतिष्ठित समाचार पत्र संस्थान दैनिक भास्कर ने लिखा है। भारत की आजादी को लेकर ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने कहा था “ब्रिटेन के वापस जाने के बाद भारत में गुंडों और बाहुबलियों का राज कायम हो जाएगा भारत जैसे विशाल देश को संभालने वाला कोई नेता नहीं हम चले गए तो यह दौड़ कर हमें बुलाने आएंगे कि भारत संभाल लो।” यदि विंस्टन चर्चिल जिंदा होता तो देख कर उसे दोबारा मृत्यु आ जाती।ब्रिटेन एक मजबूत लोकतंत्र है जिसकी राजनीतिक स्थिति अभी नाजुक दौर से गुजर रही है इसी के चलते हफ्ते भर में ही दूसरे प्रधानमंत्री और 3 सालों में ही पांच प्रधानमंत्री इस देश ने देखा है ब्रेक्जिट और यूक्रेन तनाव ब्रिटेन फर्स्ट की नीति आदि के चलते ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था की नाजुक दौर से गुजर रही है इसका हल ब्रिटेन वासी ब्रिटेन के प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं देखना रोचक होगा नए राष्ट्रपति ऋषि सुनक ब्रिटेन की उम्मीदों और आकांक्षाओं पर कितने खरे उतर पाते हैं

यह कड़वा सत्य है कि ऋषि सुनक के प्रधानमंत्री बनने से भारत को कोई विशेष लाभ नहीं होगा। क्योंकि वे भारतीय मूल के है न कि भारतीय, दूसरा ब्रिटेन में नीति निर्धारण में संसद सबसे बड़ी भूमिका निभाता है, व्यक्तिगत रूप से ब्रिटेन की नीतियों में अधिक बदलाव कर पाना संभव नहीं शायद यही वजह है कि ब्रिटेन में प्रधानमंत्री जल्दी जल्दी बदले जा रहे है। यद्यपि ब्रिटेन में रह रहे हिंदू समुदाय के आत्मविश्वास को बल अवश्य मिलेगा लेकिन भारत को कोई आमूलचूल लाभ नहीं मिलेगा।

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महात्मा गांधी: क्या गांधी ने भगत सिंह को बचाने की कोई कोशिश नही की थी? https://nitinbharat.com/mahatma-gandhi-jayanti-2022-did-mahatma-gandhi-tried-to-save-bhagat-singh/ https://nitinbharat.com/mahatma-gandhi-jayanti-2022-did-mahatma-gandhi-tried-to-save-bhagat-singh/#respond Sun, 02 Oct 2022 17:24:02 +0000 https://nitinbharat.com/?p=372 Mahatma gandhi jayanti 2022: भारत में दक्षिणपंथी विचारधारा के समर्थक ऐसे लोग भी है जो गांधी जयन्ती के अवसर पर गोडसे जिंदाबाद के नारे लगाते है, ट्विटर...

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Mahatma gandhi jayanti 2022: भारत में दक्षिणपंथी विचारधारा के समर्थक ऐसे लोग भी है जो गांधी जयन्ती के अवसर पर गोडसे जिंदाबाद के नारे लगाते है, ट्विटर पर हैश टैग ट्रेंड कराते है. ये वही लोग है जो गांधी पर आरोप लगातें है कि गांधी चाहते तो, देश का विभाजन रुक सकता था, गांधी चाहते तो भगत सिंह और उनके साथियों की फांसी रुक सकती थी. क्या गांधी ने भगत सिंह को बचाने की कोई कोशिश नही की थी?

महात्मा गांधी vs अंबेडकर: क्या गांधी, अंबेडकर के सबसे बड़े शत्रु थे?

गांधी पर ये भी आरोप लगता है कि 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को दी जाने वाली फांसी को रोकने में उन्होंने कोई भी भूमिका नहीं निभाई. क्या है इसके पीछे की सच्चाई आइये जानने की कोशिश करते है.

गांधी इरविन पैक्ट

पब्लिक सेफ्टी और ट्रेड डिस्प्यूट एक्ट के विरोध में 8 अप्रैल को 1929 को अपने साथियों के साथ सेन्ट्रल असेम्ली में गिरफ्तार हुए. 23 मार्च 1931 को तय तारीख से एक दिन पहले ही भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दे दी गयी. इससे 17 दिन पहले ही यानी 5 मार्च 1931 को महात्मा गांधी और लार्ड इरविन के बीच एक समझौता होता है इसे गाँधी इरविन पैक्ट भी कहा जाता है. Mahatma gandhi jayanti 2022

इस समझौते में महात्मा गांधी (mahatma gandhi) ने कई मांग रखी जिसके एवज में वे ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध सविनय अवज्ञा आन्दोलन को स्थगित करते. जिसमे अधिकतर मांगे मन ली गयी लेकिन दो मांगे नहीं मानी गयी. पहला, पुलिस ज्यादतियों की जांच कराई जाये और दूसरा भगत सिंह और उनके साथियों की फांसी की सजा माफ़ कर दी जाये. क्या गांधी ने भगत सिंह को बचाने की कोई कोशिश नही की थी?

महात्मा गांधी ने पहली मांग यह रखी थी कि हिंसात्मक बंदियों को छोड़कर सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा कर दिया जाए. इसी बात पर महात्मा गांधी के विरोधियों को आपत्ति रहती है कि गांधी द्वारा हिंसक बंदियों को सजा देने की मुखालफत की. जिसे की कई इतिहासकार सच नहीं मानते. Mahatma gandhi jayanti 2022

गांधी द्वारा भगत सिंह को बचाने के लिए किया गया प्रयास:

महात्मा गांधी (mahatma gandhi) द्वारा भगत सिंह और साथियों फांसी से बचाने के लिए क्या प्रयास किये गए इसपर कुछ इतिहासकारों के विचार

अनिल नौरिया- महात्मा गांधी (mahatma gandhi) ने भगत सिंह की फांसी को कम करने के लिए तेज बहादुर सप्रू, एम् आर जयकर और श्रीनिवास शास्त्री को वायसराय के पास भेजा था.

हर्बर्ट विलियम इमर्सन- महात्मा गांधी (mahatma gandhi) जी द्वारा भगत सिंह को बचाने के लिए इमानदारी से प्रयास किये. उनके प्रयास को काम चलाऊ कहना महान शांति दूत का अपमान है.

जोगेश चन्द्र- ये HSRA यानी हिंदुस्तान सोसलिस्ट रिवोल्युशन असोसिएशन के सदस्य थे जो कि एक उग्र क्रांतिकारी संगठन थी, इसके सदस्य ने अपने जीवनी में लिखा है कि गांधी (mahatma gandhi) जी की भीख अस्वीकार हुई भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी की सजा हुई.

क्या महात्मा गांधी सच में देश के राष्ट्रपिता है?

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भारत में 5G सेवाएं प्रारंभ: जाने क्या है मुख्य चुनौती? https://nitinbharat.com/5g-launch-in-india-what-is-the-major-challenge/ https://nitinbharat.com/5g-launch-in-india-what-is-the-major-challenge/#comments Sat, 01 Oct 2022 12:03:23 +0000 https://nitinbharat.com/?p=362 भारत के लिए 1 अक्टूबर का दिन बेहद ही खास इसलिए हो गया क्योंकि इस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत में 5G इंटरनेट सेवाओं की शुरुआत...

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भारत के लिए 1 अक्टूबर का दिन बेहद ही खास इसलिए हो गया क्योंकि इस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत में 5G इंटरनेट सेवाओं की शुरुआत की। भारत के सूचना और संचार क्रांति के इतिहास में यह लंबे समय तक याद रखा जाएगा। आइए 5G इंटरनेट से जुड़े उन पहलुओं के बारे में जानने की कोशिश करते है जो जानना बेहद जरूरी है लेकिन कोई भी आपको नही बताएगा। 5G launch in india

भारत में 5G सेवाएं प्रारंभ: जाने क्या है मुख्य चुनौती?

क्या आप जानते है? भारत में 1 अक्टूबर से 5G की शुरुआत मुकेश अंबानी के जियो और सुनील भारती मित्तल के द्वारा ही शुरू किया जा रहा है। यानी सिर्फ 2 कंपनी। ग्राहकों के पास विकल्प सिर्फ दो विकल्प होंगे। ऐसे कयास लगाए जा रहे कि एयरटेल(Airtel) जो कि जियो (Jio) के मुकाबले आधे से भी कम स्पेक्ट्रम खरीद सकी है कुछ दिन में कॉम्पिटिशन से बाहर हो जायेगी। 5G launch in india

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सरकारी कंपनी भारत संचार निगम लिमिटेड (BSNL) का हाल आप जानते ही होंगे। इसपर अक्सर यह आरोप लगता है कि घूस लेकर वह अपनी सेवाएं जानबूझकर बाधित करती है। जिससे जनता के सामने बुरा इमेज बने और संबंधित निजी कंपनी को फायदा हो। ऊपर से मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार निजीकरण के कट्टर समर्थक है। BSNL को आबंटित की ने वाली धनराशि में लगातार गिरावट हो रही है। 5G launch in india

आपको यह जानकर हैरानी होगी कि 4G सेवाओं के पांच साल बाद BSNL के लिए फंडिंग जारी की गई ताकि वह 4G स्पेक्ट्रम खरीद सके। 5G स्पेक्ट्रम खरीदी के लिए इसे कब और कितना पैसा दिया जाता है। देखने वाला विषय है। 5G launch in india

कुल मिलाकर आने वाले समय में जियो का 5G पर एकाधिकार होने वाला है इस बात से इंकार नही किया जा सकता भविष्य में लोग 5G को Jio नाम से ही जानने लगेंगे। ठीक उसी प्रकार जैसे एक समय तक लोग पेस्ट को पेस्ट नही “कोलगेट” कहकर बुलाते थे।

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5G पर एकाधिकार के क्या परिणाम होंगे?

मोनोपॉली या एकाधिकार पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की एक बुराई है। जो कि सरकार और पूंजीपति के लिए तो लाभदायक होता है परंतु जनता और ग्राहक के लिए नुकसानदायक।

सरकार को:

जितना अधिक कोई कंपनी कमाई करती है उतना ही अधिक सरकार को टैक्स मिलता है। एक कंपनी से टैक्स लेने और नियमों के अनुपालन कराने में भी सरकार को सुहलियत होती है। 5G launch in india


कंपनी को:

  1. कंपनी के लिए कॉम्पिटिशन समाप्त हो जाता है। प्रचार और शिकायत निवारण पर करोड़ों का खर्च बच जाता है।
  2. कंपनी अपने मर्जी अनुसार कीमतें तय कर सकती है।
  3. कंपनी का लाभ कई गुणा बढ़ जाता है।

 

जनता को:

 

  1. कीमतें आसमान छूने लगती है, इससे नए लोग नवाचार करने से हतोत्साहित होते है। एक अध्ययन के अनुसार भारत में jio free data के समय सेवा क्षेत्र में सर्वाधिक नवाचार को बढ़ावा मिला
  2. कॉम्पिटिशन के चलते ग्राहकों को मिलने वाले एक से बढ़कर एक ऑफर नहीं मिलते।

क्या आप जानते है?

1) ट्राई के अनुसार, भारत में अभी भी 2.563 करोड़ (जुलाई 2022 तक) वायरलाइन या लैंड लाइन कनेक्शन है। जिसमे 27-27% कनेक्शन के साथ BSNL और JIO क्रमश: पहले और दूसरे स्थान पर हैं।

2) भारत में मोबाइल उपयोगकर्ताओं की संख्या 114.8 करोड़ मोबाइल यूजर है। जिसमें सर्वाधिक ग्राहक 36.23% जियो के है। (TRAI, जुलाई 2022 तक)

3) भारत में केवल चार ही टेलीकॉम सर्विसेज प्रोवाइडिंग कंपनी है। BSNL, Airtel, VI और जियो।

4) टेल्स्ट्रा भारत में पहली टेलीकॉम उपलब्ध कराने वाली कंपनी थी। यह एक ऑस्ट्रेलियन कंपनी थी जो 2000 में बंद हो गई।

5) भारत में टेलीकॉम क्षेत्र में शुरुआत से अब तक 14 कंपनियों ने अभी तक हाथ आजमाए है जिसमे से केवल 4 बच गए है।

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