भारतीय अर्थव्यवस्था की समस्या और समाधान

भारत समेत दुनिया भर की छोटी बड़ी सभी अर्थव्यवस्था आज संकट के दौर से गुजर रही है। इसमें से कुछ संकट परंपरागत है तो कुछ नए प्रकार के हैं। कुछ कोरोना महामारी के बाद उपजें हैं तो कुछ संरचनात्मक है। आईये समझते हैं कि भारत इन दिनों कौन से आर्थिक समस्याओं से जूझ रहा है। Article on Indian economy

 

भारत निम्न प्रकार के आर्थिक समस्याओं से जूझ रहा है:

1. परंपरागत (traditional)

मुद्रास्फीति को नियंत्रण करने की जिम्मेदारी आरबीआई की है जो अधिकतम 6% और न्यूनतम 2% तक होनी चाहिए। लेकिन कोरोना महामारी के बाद अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए दिए गए ढील के चलते मुद्रास्फीति बढ़ गई है। सामान्य बोलचाल में इसे महंगाई भी कहा जाता है। Article on Indian economy

अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में कच्चे तेल के दाम और गैस के दाम बढ़ने रूस यूक्रेन संघर्ष से पेट्रोलियम पदार्थो की कीमतें आसमान छू रही है।

बढ़ती ब्याज दर भी भारत के नागरिकों के लिए चुनौती का सबब बना हुआ है इससे लोन महंगा हो जाता है और आर्थिक गतिविधियों में निवेश घट जाता है जिसका असर रोजगार पर पड़ता है।

रुपए की गिरती कीमत भी वर्तमान भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए चुनौती बना हुआ है ।भारतीय रुपए कई सालों के न्यूनतम स्तर पर है इसके पीछे डॉलर का मजबूत होना एवं अंतरराष्ट्रीय बाजारों में डॉलर की मांग बढ़ना है।

2.बहुपक्षीय व्यापार समझौते

भारत को अपना व्यापार बढ़ाने के लिए बहु पक्षी व्यापार समझौते करने होंगे लेकिन इसके लिए सबसे बड़ी चुनौती भारतीयों के खासकर किसान और कमजोर वर्ग के हित हैं जो विकसित देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते करने से प्रभावित हो सकते हैं।

3. रोजगार और आय सुनिश्चित करना

भारत के लिए यह तीसरी और सबसे बड़ी समस्या है। रोजगार के लिए पर्याप्त कौशल की आवश्यकता होती है। कौशल होने से उद्योगों में रोजगार मिलते हैं। इससे आय में बढ़ोतरी होती है। परंतु भारत में रोजगार के लिए अपेक्षित स्किल युवाओं के पास नहीं है और उद्यमशीलता का माहौल भी भारत में देखने नहीं मिलता।

 

अर्थशास्त्र के द्वारा भारत की इकोनामी को सुदृढ़ करने के लिए निम्न सुझाव दिए जा रहे हैं

1. केंद्रीय बैंक को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करना

हालिया दिनों में पाकिस्तान और श्रीलंका जैसे देशों के वित्तीय दिवालियापन के बाद भारत में भी अर्थशास्त्रियों द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक को केंद्र सरकार से कितनी न्यूनतम दूरी बनाकर रखनी चाहिए। इसकी चर्चा की जा रही है क्योंकि पाकिस्तान और श्रीलंका में केंद्रीय बैंक को सरकार द्वारा अपनी जरूरत अनुसार उपयोग किया गया जिसका खामियाजा वहां की अर्थव्यवस्था को दिवालिया होकर चुकाना पड़ा।

हालांकि हालांकि भारत सरकार और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया दोनों का उद्देश्य भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूती और विकास प्रदान करना है। अर्थव्यवस्था में रिजर्व बैंक जहां मौद्रिक नीतियों के माध्यम से विकास सुनिश्चित करती है। वही भारत सरकार वित्तीय नीतियों नीतियों के माध्यम से विकास सुनिश्चित करने का प्रयास करती है इसलिए दोनों का उद्देश्य यदि एक है तो दोनों के बीच कितनी न्यूनतम दूरी होनी चाहिए इसका भी एक सटीक सिद्धांत होना चाहिए।

2. रोजगार और मुद्रास्फीति के लिए प्रयास

रोजगार और मुद्रा स्थिति में व्युत्क्रम संबंध होता है। फिलिप वक्र के अनुसार जैसे-जैसे महंगाई बढ़ती जाती है रोजगार में कमी होती जाती है। अतः इसके लिए सरकार को ठोस उपाय करना चाहिए महंगाई को अतिशीघ्र नियंत्रित करना चाहिए।

3. आयात राहत और रुपए की मजबूती

आयात अधिक से अधिक की जाने की बात कुछ अर्थशास्त्री कहते हैं। जबकि इसके भी अपने नुकसान हैं रुपए की मजबूती से कुछ लोगों को लाभ तो कुछ लोगों को हानि होती है। जैसे रुपए यदि मजबूत होता है तो वस्तुओं की कीमतें घटती है वहीं यदि रुपए कमजोर होता है तो वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती है। हालांकि रूप रुपयों के कमजोर होने से विदेशों में भारतीय वस्तुओं की मांग बढ़ जाती है लेकिन विदेशों में पढ़ाई कर रहे यात्रा के लिए जाने वाले और निवेश के लिए जाने वाले धन का मूल्य घट जाता है और पहले की तुलना में अधिक रुपए उन्हें चुकाना पड़ता है।

चीन से तुलना

भारत 1950 में आजादी के समय एक ही स्तर पर थे। आर्थिक रूप से दोनों एक लकीर पर खड़े थे लेकिन 50 सालों में अर्थात 2000 आते आते चीन भारत से आगे निकल गया और 2020 आते आते वह अमेरिका को भी पछाड़कर दुनिया की सबसे बड़ी इकोनामी बनने के करीब आ गया। दुनिया भर के अर्थशास्त्री चीन के आर्थिक मॉडल को अपनाने की बात कर रहे हैं। आइए जानते चीन के आर्थिक मॉडल में ऐसी क्या खास बात थी जो उनकी अर्थव्यवस्था इतनी तेजी से आगे बढ़ी? Article on Indian economy

चीन की अर्थव्यवस्था में सन 1978 में वैश्वीकरण, निजीकरण और उदारीकरण को अपनाया गया जिसके परिणाम स्वरूप दुनिया भर की कंपनियां वहां पहुंचने लगी। इससे पूर्व चीन ने अपने नागरिकों को मजबूत मानव संसाधन के रूप में परिवर्तित कर दिया था और 1978 के बाद शिक्षा और स्वास्थ्य में पर्याप्त मात्रा में खर्च किया गया हालांकि चीन में संसाधनों की पर्याप्त उपलब्धता भौगोलिक वातावरण कानून व्यवस्था व्यापार नीति आदि का भी बड़ा योगदान रहा जिसके चलते वहां विकास इतना फल फूल सका।

मिल रही चुनौती

वर्तमान में भारत को वियतनाम जैसे तृतीय विश्व के देशों से मजबूत व्यापारिक चुनौती मिल रही है। दुनिया आज भारत की जगह वियतनाम की ओर रुख कर रही है। इसका एक कारण वियतनाम की मजबूत मानव संसाधन और उस पर किए जाने वाला खर्च है।

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क्या है समाधान

भारत में 1990 के दशक में अर्थशास्त्री जगदीश भगवती और अमर्त्य सेन के विचार प्रचलित होने लगे। जगदीश भगवती का मानना था कि भारत को विकास पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। विकास होगा मानव संसाधन का विकास स्वता ही हो जाएगा जबकि अमर्त्य सेन का मानना था कि स्वास्थ्य और शिक्षा पर अधिक से अधिक खर्च करना चाहिए इससे आर्थिक विकास स्वत: ही संभव हो जाएगा। भारत सरकार ने जगदीश भगवती के सिद्धांत के अनुसार आर्थिक नीति का अनुसरण किया और विकास पर ध्यान केंद्रित किया परंतु यह मॉडल आज असफल प्रतीत हो रहा है। अब अमर्त्य सेन के मॉडल पर कुछ दशक चलकर देखना चाहिए।

 

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