International Affairs Archives - NITIN BHARAT https://nitinbharat.com/category/international-affairs/ India's Fastest Growing Educational Website Tue, 14 Feb 2023 13:21:57 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.5.2 210562443 Facebook Reach अचानक डाउन क्यों हो गई है? https://nitinbharat.com/why-facebook-reach-down-know-all-about/ https://nitinbharat.com/why-facebook-reach-down-know-all-about/#respond Tue, 14 Feb 2023 13:21:57 +0000 https://nitinbharat.com/?p=593 यदि सोशल मीडिया एप फेसबुक में अचानक आपकी रिच कम हो गई है, और पहले की तुलना में आपके पोस्ट पर लाइक बहुत ज्यादा घट गई है,...

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यदि सोशल मीडिया एप फेसबुक में अचानक आपकी रिच कम हो गई है, और पहले की तुलना में आपके पोस्ट पर लाइक बहुत ज्यादा घट गई है, और फेसबुक में पोस्ट करने का आपको मन नहीं करता (Why Facebook Reach Down) तो इस आर्टिकल को पूरा पढ़े।

फेसबुक के बारे में

2022 के अंत तक फेसबुक में करीब 3 बिलियन यूजर थे। इनमे से करीब 2 अरब सक्रिय यूजर है। इस लिहाज से यह दुनिया की सबसे बड़ी सोशल साइट है। जिसके जरिए लोग अपनी बात, विचार, व्यापार, कला, नवाचार, पर्यटन, संस्कृति और समाचार विश्व की बड़ी आबादी तक पहुंचा सकते है। Why Facebook Reach Down

फेसबुक को 2010 से 2020 के बीच आम आदमी के जीवन में जादुई बदलाव लाने वाला कहा जाए तो गलत नही होगा। अपने कला, खानपान और समस्या को फेसबुक में शेयर कर लोग अपने जीवन में बदलाव ला सकते थे।

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यही नहीं corona काल में Covid से जुड़ी गाइडलाइन, हेल्प और बचाव के जो भूमिका महत्वपूर्ण भूमिका Facebook ने निभाई वह सराहनीय था।

फेसबुक की इनकम बेतहाशा बढ़ती गई। इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप का अधिग्रहण किया। अपना नाम बदलकर मेटा रखा। और दावा किया कि लोगो की जीवन में बदलाव लाने के लिए कई कदम फेसबुक उठाएगा।

इसी बीच फेसबुक पर डाटा चोरी, एक खास तरह के पॉलिटिकल आइडियोलॉजी को समर्थन देने, टैक्स चोरी और चुनाव के दौरान पैसे लेकर माहौल बनाने का भी आरोप लगा।

फिर सोशल मीडिया सेक्टर में एंट्री होती है इनोवेशन किंग कहे जाने वाले एलोन मस्क का ये ठीक वैसा ही था जैसे भारत में मुकेश अंबानी का टेलीकॉम सेक्टर में प्रवेश करना। एलोन मस्क इतनी तेजी से आगे बढ़ रहे है कि मेटा जैसे ग्रुप को कब अधिग्रहण कर ले अंदाजा नही लगाया जा सकता।

फेसबुक की कमाई का जरिया:

फेसबुक में रिच डाउन क्यों (Why Facebook Reach Down) यह जानने से पहले यह जानना आवश्यक है कि आखिर फेसबुक की कमाई कैसे होती है?

विज्ञापन से

फेसबुक में जो विज्ञापन चलता है वह फेसबुक की कमाई का मुख्य जरिया है हालांकि उसका कुछ हिस्सा वेरिफाइड अकाउंट को भी किया जाता है।

बूस्ट पोस्ट से

यूजर के किसी भी पोस्ट को टारगेटेड और ज्यादा यूजर तक पहुंचाने के लिए फेसबुक 90 रुपए से लेकर हजारों लाखों तक के फीस लेता है। आपने अक्सर अपने फेसबुक में paid post लिखा हुआ पोस्ट देखा होगा।

घोषित रूप से दो ही बड़े तरीके है जिससे फेसबुक की कमाई होती है। इसके अलावा डाटा मैनिपुलेशन के और तरीके है जिससे फेसबुक की कमाई होती है। इस कमाई को कई गुना बढ़ाने के लिए फेसबुक ने सभी यूजर की रिच घटा दी (Why Facebook Reach Down) है। आइए जानते है

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फेसबुक पोस्ट रिच डाउन क्यों हुआ?

2022 में ट्विटर का टेकओवर करने के बाद एलोन मस्क ने ट्विटर को कमाई का जरिया बनाने के लिए कई बदलाव किए। जिनमे ब्लू टिक के लिए पैसे चुकाने जैसे तरीके शामिल है।

फेसबुक ने ज्यादा बदलाव न करके अपने यूजर का रिच घटा दिया। अब केवल उन्हीं पोस्ट पर ज्यादा रिच और लाइक मिलते है जो बूस्ट किए जाते है। Meta की रेवेन्यू इससे कई गुना बढ़ने का अनुमान है।

2 बिलियन सक्रिय यूजर में 2% यूजर भी यदि रोज बूस्ट पोस्ट करते है तो वो ट्विटर की रोजाना होने वाली कमाई से कई गुना आगे निकल सकते है।

यह एक सामान्य बिजनेस गतिविधि (Why Facebook Reach Down) है जो अपने प्रतिद्वंदी के सामने टिके रहने में मदद करता है। अभी तक फेसबुक का बूस्ट पोस्ट से कमाई उसके पेज से ही संभव है।

लेकिन संभावना है कि प्रोफाइल में भी आगे बूस्ट पोस्ट की सुविधा फेसबुक प्रदान कर दे। आम यूजर इसे समझ नही पाते लेकिन हो सकता है आने वाले समय में आपको अपने फेसबुक पोस्ट को लोगों तक पहुंचाने के लिए पैसे चुकाने पड़े।

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हिंडेनबर्ग रिपोर्ट क्या है? कॉर्पोरेट इतिहास का सबसे बड़ा फ्रॉड! https://nitinbharat.com/what-is-hindenburg-report-know-all-about/ https://nitinbharat.com/what-is-hindenburg-report-know-all-about/#respond Fri, 27 Jan 2023 17:33:00 +0000 https://nitinbharat.com/?p=490 हिंडेनबर्ग रिपोर्ट क्या है? कॉर्पोरेट इतिहास का सबसे बड़ा फ्रॉड! What is Hindenburg Report? इंटरनेशनल बिजनेस और फाइनेंस पर रिपोर्ट जारी करने वाले एक कंपनी के रिपोर्ट...

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हिंडेनबर्ग रिपोर्ट क्या है? कॉर्पोरेट इतिहास का सबसे बड़ा फ्रॉड!

What is Hindenburg Report? इंटरनेशनल बिजनेस और फाइनेंस पर रिपोर्ट जारी करने वाले एक कंपनी के रिपोर्ट ने भारतीय शेयर बाजार में भूचाल ला दिया। यह रिपोर्ट अदानी ग्रुप की बर्बादी की खबर बनकर आया। आइए जानते है इस रिपोर्ट में आखिर क्या है?

हिंडनबर्ग रिपोर्ट कहती है (What is Hindenburg Report) कि अडानी ग्रुप में टॉप रैंक्स के 22 लोगों में अडानी के ही परिवार के 8 लोग हैं. परिवारीजनों ने टैक्स हेवन कंट्रीज में फर्जी शेल कंपनियां खोली हुईं हैं. इनका पैसा भारत की अडानी कंपनियों में मूव किया जाता है।

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हिंडनबर्ग रिपोर्ट की मुख्य बातें?

  • Hindenburg के अनुसार, अडानी के परिवार के सदस्य इन शेल कंपनियों के माध्यम से एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट के फर्जी documentat बनाते हैं, ताकि फेक turnover दिखाया जा सके, इनका संबंध होता है भारत के शेयर मार्किट में लिस्टेड अडानी की कंपनियों से; ताकि अडानी की बैलेंस शीट की हेल्थ सही दिखे। (What is Hindenburg Report)

हिंडनबर्ग की रिपोर्ट ने ADANI के छोटे भाई राजेश अडानी के एक पुराने केस के बारे में भी जिक्र किया है कि कैसे साल 2004-05 की सरकार की डायमंड ट्रेडिंग स्कीम के फ्रॉड में वे आरोपी थे. (What is Hindenburg Report) इस फ्रॉड में भी अडानी की कंपनियों का बाहर की शेल कंपनियों के माध्यम से फेक टर्नओवर दिखाया जाता था।

शेल कंपनियों का कारोबार?

हिंडनबर्ग रिपोर्ट कहती है- हमने मारीशस की कॉर्पोरेट रजिस्ट्री के कागजातों को तलाशा, जिससे पता चला कि अडानी के बड़े भाई विनोद अडानी अपने कुछ विश्वसनीय लोगों की मदद से मारीशस में चलाई जा रहीं फ्रॉड कंपनियों एक बड़े नेटवर्क को मैनेज कर रहे हैं. हमने ऐसी 38 शेल कंपनियों को खोजा है। What is Hindenburg Report

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गजब बात ये है कि इन कंपनियों में कोई ऑपरेशन भी नहीं हो रहा, इनमें कोई काम नहीं है, न इनमें कर्मचारी हैं, न इनके इंडिपेंडेंट एड्रेस हैं, न फोन नंबर हैं. न ही meaningful online presence है. इसके बावजूद इन शेल कंपनियों ने भारत की अडानी की कंपनियों में बिलियंस डॉलर लगाए हुए हैं.

शेयर बाजार को किया जाता है मैनिपुलेट

शेल कंपनियों के माध्यम से अडानी के शेयरों की कीमतों को MANIPULATE किया जाता है. शेयरों की इन बढ़ी हुई कीमतों पर जोकि रियल वैल्यूज से बहुत ज्यादा हैं, उनपर अडानी ग्रुप द्वारा बैंकों से बड़ा कर्ज लिया गया है. जिस दिन ये गुब्बारा फूटेगा, उस दिन स्टॉक मार्केट, बैंक दोनों दिवालिया।

अर्थशास्त्री कहते है यह अडानी ग्रुप के निवेक्षकों, बैकों के लिए ये चेतावनी है, आगे कुछ भी हो सकता है। यह घोटालो का गुब्बारा जिस दिन फूटेगा देश को बहुत बड़ा नुकसान झेलना पड़ेगा और यह दुनिया का सबसे बड़ा घोटाला होगा।

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Rishi Sunak : ऋषि सुनक ब्रिटेन के पहले भारतीय मूल के प्रधानमंत्री https://nitinbharat.com/rishi-sunak-uk-pm-from-indian-origin/ https://nitinbharat.com/rishi-sunak-uk-pm-from-indian-origin/#respond Tue, 25 Oct 2022 14:10:31 +0000 https://nitinbharat.com/?p=380 “जरा सी वोट से रह गया वरना ऋषि सुनक तुम्हें बताता कि जिन पर राज करके गए हो उनका वंश तुम राज कर रहा है,रुको किसी न...

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“जरा सी वोट से रह गया वरना ऋषि सुनक तुम्हें बताता कि जिन पर राज करके गए हो उनका वंश तुम राज कर रहा है,रुको किसी न किसी दिन करेगा। शंकर का डमरू बज रहा है” Rishi sunak uk pm

ये शब्द भारत के प्रतिष्ठित कवि डॉक्टर कुमार विश्वास ने कुछ दिन पहले ही अपने काव्य मंच से कही थी जो कि आज दीपावली की संध्या पर सच हो गई।Rishi sunak uk pm

यह गौरव गौरव का विषय है क्योंकि जिस भारत पर अंग्रेजों ने 200 सालों तक राजकीय उसका शोषण किया उसे सबवे बनाने की बात की अर्थात बर बर कहा उसी भारत मूल का व्यक्ति आज ब्रिटेन के सर्वोच्च पद पर का बीज होने जा रहा है देश के सभी जानी-मानी हस्तियों राजनेताओं लेखकों ने ऋषि सुनक के यूके के प्रधानमंत्री बनने पर गौरव जाहिर करते हुए संदेश लिखें। Rishi sunak uk pm

भारत के प्रतिष्ठित समाचार पत्र संस्थान दैनिक भास्कर ने लिखा है। भारत की आजादी को लेकर ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने कहा था “ब्रिटेन के वापस जाने के बाद भारत में गुंडों और बाहुबलियों का राज कायम हो जाएगा भारत जैसे विशाल देश को संभालने वाला कोई नेता नहीं हम चले गए तो यह दौड़ कर हमें बुलाने आएंगे कि भारत संभाल लो।” यदि विंस्टन चर्चिल जिंदा होता तो देख कर उसे दोबारा मृत्यु आ जाती।ब्रिटेन एक मजबूत लोकतंत्र है जिसकी राजनीतिक स्थिति अभी नाजुक दौर से गुजर रही है इसी के चलते हफ्ते भर में ही दूसरे प्रधानमंत्री और 3 सालों में ही पांच प्रधानमंत्री इस देश ने देखा है ब्रेक्जिट और यूक्रेन तनाव ब्रिटेन फर्स्ट की नीति आदि के चलते ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था की नाजुक दौर से गुजर रही है इसका हल ब्रिटेन वासी ब्रिटेन के प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं देखना रोचक होगा नए राष्ट्रपति ऋषि सुनक ब्रिटेन की उम्मीदों और आकांक्षाओं पर कितने खरे उतर पाते हैं

यह कड़वा सत्य है कि ऋषि सुनक के प्रधानमंत्री बनने से भारत को कोई विशेष लाभ नहीं होगा। क्योंकि वे भारतीय मूल के है न कि भारतीय, दूसरा ब्रिटेन में नीति निर्धारण में संसद सबसे बड़ी भूमिका निभाता है, व्यक्तिगत रूप से ब्रिटेन की नीतियों में अधिक बदलाव कर पाना संभव नहीं शायद यही वजह है कि ब्रिटेन में प्रधानमंत्री जल्दी जल्दी बदले जा रहे है। यद्यपि ब्रिटेन में रह रहे हिंदू समुदाय के आत्मविश्वास को बल अवश्य मिलेगा लेकिन भारत को कोई आमूलचूल लाभ नहीं मिलेगा।

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What is quad : क्वाड समूह क्या है ? उद्देश्य संभावनाएं और चुनौतियां https://nitinbharat.com/what-is-quad-uddeshya-sambhawnaye-chunautiyan/ https://nitinbharat.com/what-is-quad-uddeshya-sambhawnaye-chunautiyan/#comments Sun, 31 Jul 2022 12:33:00 +0000 What is quad : क्वाड समूह क्या है ? उद्देश्य संभावनाएं और चुनौतियां एशिया प्रशांत क्षेत्र के देशों (अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया) ने मिलकर एक समूह...

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What is quad : क्वाड समूह क्या है ? उद्देश्य संभावनाएं और चुनौतियां

एशिया प्रशांत क्षेत्र के देशों (अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया) ने मिलकर एक समूह बनाने की पारिकल्पना की है जिसे क्वैड या क्वाड (quad group countries) नाम से जाना जाता है. इस समूह का न तो कोई घोषित और स्पष्ट उद्देश्य है न ही कोई अजेंडा या बैठकों की रूप रेखा. हालाँकि विदेश मामलों के विशेषज्ञ इसे चीन के बढ़ते भू आर्थिक दबदबे को संतुलित करने हेतु बनाए गए एक समूह के रूप में देखते है. Quad group and india

What is quad : क्वाड समूह क्या है ? उद्देश्य संभावनाएं और चुनौतियां

लेकिन क्वाड बैठकों और सम्मेलनों की चर्चा से केवल यह बात सामने निकलकर नहीं आती कि इस समूह को चीन को प्रति संतुलित करने के लिए बनाया गया है. इस समूह के उद्देश निम्न बिन्दुओं में परिलक्षित होते है. Quad group and india

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क्वाड देशों का उद्देश्य क्या है?

स्वतंत्र आवागमन (quad and free navigation)

एशिया प्रशांत क्षेत्र में सभी कंटेनर जहाजों की आवागमन निर्बाध हो यह इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि चीन लगातार दक्षिण चीन सागर पर अपना दावा जताकर नए द्वीपों का निर्माण कर रहा है, साथ ही अन्य देश जैसे वियतनाम और फिलिपिन्स को आवागमन सुविधा से भी वंचित कर रहा है. एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के समुद्री व्यापार का 65% हिस्सा इसी क्षेत्र से सम्पन्न होता है. What is quad : क्वाड समूह क्या है ? उद्देश्य संभावनाएं और चुनौतियां

क्षेत्रीय सुरक्षा (quad and regional security)

क्वाड (quad group countries) एशिया प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा को भी अपनी प्रतिबद्धता मानता है क्योकि इस क्षेत्र की अशांति चाहे वह अतिक्रमण के चलते हो या फिर दो या अधिक देशों के बीच तनातनी से हो या फिर प्राकृतिक आपदा से हो, एक वैश्वीकृत विश्व में एक देश या क्षेत्र का संकट दूसरे देशों को आसानी से प्रभावित कर देती है. दुनिया की मांग आपूर्ति शृंखला बाधित हो जाती है.  दुनिया की जनसँख्या का दो तिहाई हिस्सा इसी क्षेत्र में निवास करती है. Quad group and india

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व्यापार (quad and trade)

क्वाड समूह में शामिल देश अपने आप में भिन्न विशेषताओं वाले है. जैसे अमरीका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, भारत दुनिया का सबसे बड़ा बाजार, जापान तकनीक और निवेश में अग्रणी और ऑस्ट्रेलिया खनिज संसाधनों से सम्पन्न. इसलिए इन देशों के बीच सहयोग और व्यापार की सभी संभावनाएं मौजूद है. ये चार देश (quad group countries) तीन महाद्वीपों से आते है और विश्व व्यापार श्रृखला में ये निर्णायक भूमिका निभाते है. Quad group and india

क्षेत्रीय शांति और स्थिरता (Quad and regional peace and stability)

ये चारों देश (quad group countries) लोकतांत्रिक है, और सामान्य मूल्यों को साझा करते है, ये मूल्य विश्व शांति और स्थिरता के लिए  आवश्यक है. इसके अलावा सभी चार देश एक समान चुनौतियों का सामना कर रहे है जैसे पड़ोस में चीन का दखल, आतंकवाद और चरमपंथ, कोरोंना महामारी के बाद उपजे आर्थिक संकट और चारों ही राष्ट्र समुद्री सीमा से लगे होने के कारण जलवायु संकट से भी समान रूप से प्रभावित होंगे.

क्वाड समूह सैन्य से व्यापारिक समूह में रूपांतरित हो रहा है?

चतुर्भुजीय सुरक्षा संवाद (क्वाड ) वर्तमान समय में स्वयं को सैनिक गठबंधन से एक व्यापारिक गुट में रूपांतरित कर रहा है – विवेचना कीजिये (UPSC 2021)

क्वाड समूह (quad group countries) का सैन्य समूह के रूप में स्थापित होना एक गंभीर सैन्य गुटबंदी को जन्म दे सकता है. जैसे प्रथम विश्व यद्ध के समय घटित हुआ. समान मूल्यों वाले क्वाड समूह  यदि सैन्य गठबंधन बनाते है तो चीन, रूस और पाकिस्तान जैसे राष्ट्र को भी एक गुट में आने के लिए देर नहीं लगेगी. इसलिए विश्व शांति के लिए यह आवश्यकता है कि कोई भी घोषित सैन्य गुट किसी क्षेत्र में जन्म न ले. यह विश्व राजनीति का एक नियम भी है.

क्वाड और भारत (quad and india)

भारत जैसे विकासशील, स्वतंत्र विदेश नीति का अनुशरण करने वाला, गुट निरपेक्षता का समर्थन करने वाला राष्ट्र इस तरह की सैन्य गुटबंदी का समर्थन नहीं करेगा.  इस बात से अमेरिका भलीभांति परिचित है. अतः इसे सैन्य की जगह एक व्यापार गुट के रूप में बदलना व्यवहारिक है. चारों देशों में अपार व्यापारिक संभावनाएं है, जिसका वर्णन बिंदु 3 में किया गया है. व्यापारिक गुट का निर्माण कर ये देश पूंजी, तकनीक, संसाधन और बाजार को आपस में साझा कर सकते है. Quad group and india

What is quad : क्वाड समूह क्या है ? उद्देश्य संभावनाएं और चुनौतियां

APEC जैसे बड़े व्यापरिक संगठन का भारत सदस्य नहीं है, RCEP का भारत सदस्य नहीं बना. वर्तमान में क्वाड के अन्य सभी तीन देशों का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार चीन है. इसलिए भारत के बाजार में पहुँच बढ़ाने के लिए ये देश क्वाड को एक सैन्य गठबंधन से ज्यादा एक व्यापरिक गठबंधन के रूप स्थापित करने में प्रयासरत है.

किन देशों के साथ भारत का FTA है? FTA parteners of india

भारत का जापान के साथ मुक्त व्यापार समझौता (FTA) पहले से है. भारत-जापान मुफ्त व्यापार समझौते को CEPA (comprehensive economic partenership agreement) कहा जाता है. ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत के मुक्त व्यापार समझौते को ECTA (economic cooperation and trade agreement ) कहा जाता है. इस प्रकार क्वाड (quad group countries) के दो प्रमुख देशों के साथ भारत का मुक्त व्यापर समझौता है लेकिन अमेरिकी सरकार की वर्तमान में किसी भे देश से अब मुक्त व्यापार समझौता न करने की नीति के चलते भारत के साथ मुक्त व्यापर समझौता नहीं है, अतः क्वाड का मुक्त व्यापार समूह के रूप में बदलना भारत अमेरिकी व्यापारिक सम्बन्ध के लिए लाभदायक हो सकते है. What is quad : क्वाड समूह क्या है ? उद्देश्य संभावनाएं और चुनौतियां

क्वाड की चुनौतियाँ challenges of quad?

Quad मुक्त व्यापार समूह बनने के लिए चुनौतियाँ

1. भारत एक विकासशील राष्ट्र है जहाँ के उद्योग और उत्पाद अमेरिका और जापान जैसे उन्नत देशों से मुकाबला करने में सक्षम नहीं है, इसी मुख्य मुद्दे के चलते भारत RCEP का सदस्य नहीं बना.

2. भारत की अर्थव्यवस्था मुख्यतः तृतीयक क्षेत्र पर निर्भर है जिसे सेवा क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है, लेकिन बाकि क्वाड देशों की अर्थव्यवस्था उन्नत प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्र पर निर्भर है. ये देश भारत की मानव संसाधन के आबाध आवागमन का विरोध करते है.

3. अमेरिका की व्यापार नीति चीन को प्रतिसंतुलित और घेरने की नजरिये से होती है लेकिन भारत चीन के साथ अपने व्यापारिक संबंधो के मायने समझता है. भारत चीन से प्रत्यक्ष मुकाबला कर अपनी विकास गति धीमी नहीं करना चाहता.

Quad एक सैन्य समूह के रूप में परिवर्तित होने के समक्ष चुनौतियां

1. भारत की रणनीतिक स्वायत्ता और गुट निरपेक्षता की विदेश नीति जो उसे किसी भी सैन्य गठबंधन का हिस्सा होने से रोकती है. भारत एक परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र है जो बिना किसी सैन्य गठबंधन में शामिल हुए अपनी आत्म रक्षा कर सकता है.

2. भारत किसी भी ऐसे सैन्य गुट की सदस्यता ग्रहण करने से पहले हजार बार सोचेगा जिसमे अमेरिका तो है लेकिन रूस नहीं. रूस-भारत सम्बन्ध इतने प्रगाढ़ है और सदाबहार है कि भारत इसे अमेरिका जैसे राष्ट्रीय हित और अवसरवाद का अनुशरण करने वाली अमेरिकी विदेश नीति के चलते ख़राब नही करेगा.

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3. चारों देशों के मध्य भौगोलिक दूरी भी बहुत अधिक है. ये चारों देश तीन अलग अलग महाद्वीपों से आते है. इतने बड़े क्षेत्र की सुरक्षा में दखल देने से पहले भारत अपने सैन्य बजट और घरेलु आर्थिक स्थिति का आंकलन जरुर करेगा. वैसे भी मालाबार अभ्यास के द्वारा ये देश आपस में सैन्य अभ्यास करते है जिसे और अधिक विस्तार करने पर अधिक सैन्य बजट की आवश्यकता होगी.

What is quad : क्वाड समूह क्या है ? उद्देश्य संभावनाएं और चुनौतियां

भारत जैसे विकाशसील देश को अपनी विदेश नीति के निर्धारण में किसी भी देश के नीतियों के दबाव से बचना चाहिए क्वाड (quad group countries) के एक सैन्य ग्रुप में स्थापित होने से ज्यादा इसके व्यापारिक गुट में बदलने में है, लेकिन उससे पूर्व भारत को अपने सभी मुद्दों पर बात करनी चाहिए. इस विकल्प पर भी विचार करना चाहिए कि ये चारों देश मिलकर किसे प्रकार चीन की बढ़ती आर्थिक एकाधिकार का मुकाबला कर सकते है.

क्वॉड (quad group countries)के संबंध में UPSC मुख्य परीक्षा 2021 में पूछे गए इस प्रश्न का उत्तर आप दे सकते सकते है।

चतुर्भुजीय सुरक्षा संवाद (क्वाड ) वर्तमान समय में स्वयं को सैनिक गठबंधन से एक व्यापारिक गुट में रूपांतरित कर रहा है – विवेचना कीजिये

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G20 क्या है? G20 सम्मेलन और भारत https://nitinbharat.com/g20-kya-hai-sammelan/ https://nitinbharat.com/g20-kya-hai-sammelan/#respond Thu, 21 Jul 2022 11:32:00 +0000 G20 क्या है? G20 सम्मेलन और भारत G20 दुनिया का एक महत्त्वपूर्ण समूह है तेजी से भूमंडलीकृत होती दुनिया में बढ़ती वैश्विक आर्थिक चुनौतियां को हल करने...

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G20 क्या है? G20 सम्मेलन और भारत

G20 दुनिया का एक महत्त्वपूर्ण समूह है तेजी से भूमंडलीकृत होती दुनिया में बढ़ती वैश्विक आर्थिक चुनौतियां को हल करने हेतु निर्णायक भूमिका निभा सकता है। भारत का G20 के लिए महत्व? इसके आगामी सम्मेलन चुनौतियां और एजेंडा के बारे में जानने के लिए आइए इस लेख का अवलोकन करें।

क्या है जी-20 what is G20

G20 विश्व के 19 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं और यूरोपीय यूनियन का समूह है। G20 ‘ग्लोबल 20’ का लघु रूप है। यह दुनिया का एकमात्र ग्रुप है जहां समस्त देश आपसी मतभेद भूलकर दुनिया की वित्तीय स्थिरता और विकास के लिए कार्य हेतु साथ आते है। G20 दुनिया के दो तिहाई जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करती है, दुनिया के GDP (सकल घरेलू उत्पाद) में इसका 80% योगदान है। दुनिया के व्यापार में तीन चौथाई हिस्सा का योगदान करते है। कुल मिलाकर कहें तो G20 दुनिया को चलाने वाली शक्ति है। G20 क्या है? G20 सम्मेलन और भारत

G20 का उद्देश्य (G20 purpose)

 

G20 का मुख्य लक्ष्य दुनिया में आर्थिक और वित्तीय स्थिरता को बनाएं रखना है। G20 का निर्माण 1990 के दशक के अंतिम वर्षों में किया गया। यह वही दौर था जब सोवियत संघ से कई राष्ट्र स्वतंन्त्र हुए थे और एशियाई देश अपना भूमंडलीकरण कर रहे थे। यह सभी जानते है कि एक भूमंडलीकृत विश्व व्यवस्था में एक देश का संकट सिर्फ उसी देश तक सीमित नहीं रहता। इसलिए इस तरह के ग्रुप बनाने की कवायद वर्षों से हो रही थी। खासकर तेल संकट के बाद। यह तब अनिवार्य महसूस किया गया जब एशियन टाइगर कही जाने वाली दक्षिण पूर्व एशियाई देश गंभीर वित्तीय संकट से जूझने लगे इनमे इंडोनेशिया, मलेशिया और सिंगापुर शामिल थे। इनकी संकट का किसी बीमारी की तरह पूरी दुनिया को अपने चपेट में न ले ले इस उद्देश से G20 group का निर्माण किया गया। G20 क्या है? G20 सम्मेलन और भारत

G20 कितना सफल रहा?

 

G20 का मुख्य लक्ष्य दुनिया में आर्थिक और वित्तीय स्थिरता को बनाएं रखना है। ताकि एक देश की आर्थिक गड़बड़ियां दुनिया के बाकि देशों पर अपना प्रभाव न डालें। इसके लिए वे प्रतिबंध, वार्ता, नियमन जैसी चीजों का सहारा लेते है। G20 अपने लक्ष्य में आंशिक रूप से ही सफल रही है क्योंकि अमेरिकी और चीनी अर्थव्यवस्था का आकार दुनिया के नियमन से परे हो जाता है। इसलिए 2008 की विश्व आर्थिक मंदी अमेरिका से उत्पन्न होकर दुनिया में फैल गया। वह दिन भी दूर नही जब चीन की किसी संकट दुनिया को एकबार पुनः महान आर्थिक मंदी की ओर धकेल दे। इतिहास में दुनिया ने कई बार एक देश के बैंक फेल होने या किसी देश के दिवालिया होने का खामियाजा अपने पर झेला है। हालांकि दुनिया के बहुराष्ट्रीय कंपनियों के नियंत्रण, टैक्स चोरी और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में G20 काफी हद तक सफल रहा है। G20 क्या है? G20 सम्मेलन और भारत

 

G20 सचिवालय G20 headquarters

 

G20 का कोई स्थाई मुख्यालय या सचिवालय नहीं है। जिस देश द्वारा इसकी अध्यक्षता की जाती है वही देश इसके सचिवालय के रूप में कार्य करते है। प्रारंभ में इसका मुख्यालय अमेरिका या यूरोप में रखने का प्रस्ताव किया गया था लेकिन तृतीय विश्व के देशों की आपत्तियों के बाद इसका सचिवालय विकसित देशों में रखने से इंकार किया गया। एक बात और जो इसकी स्थाई सचिवालय न होने का कारण है वह इसका कोई घोषित लक्ष्य का, कार्यप्रणाली और फंडिंग का अभाव है। जिसके अनुपालन के लिए एक सचिवालय और सचिव कार्य करते। जैसे कि WHO और ILO करतें है।

 

G20 सम्मेलन 2022 (G20 summit 2022)

 

G20 सम्मेलन 2022 (G20 summit 2022) इंडोनेशिया के बाली शहर में आयोजित किया जाएगा। यह आयोजन नवंबर के महीने में होगा। अतः इसकी अध्यक्षता इंडोनेशियन राष्ट्रपति करेंगे। बैठक का एजेंडा, सचिवालय कार्य और सदस्यों की भागेदारी हेतु आमंत्रण का कार्य इंडोनेशिया ही करेगा।

भारत की जनसंख्या क्या नई मुसीबत खड़ी करने वाला है या फिर एक नई शक्ति है?

G20 2022 का मुख्य एजेंडा ई कॉमर्स कंपनियों पर नियंत्रण में छूट, दुनिया को COVID वैक्सीन आपूर्ति, बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर एक कॉमन टैक्स और तकनीक के पहुंच को सरल करना होगा। ज्ञात हो कि g20 यदि किसी निर्णय को लेती है तो उसका अनुपालन कराने के लिए कोई ठोस तंत्र नही है।

 

G20 सम्मेलन 2023 (G20 summit 2023)

 

G20 सम्मेलन 2023 भारत में आयोजित होगा। यह पहला ऐसा मौका होगा जब भारत g20 की अध्यक्षता करेगा। इससे पहले भारत ने सदस्यता के लिए कई बार हामी तो भरी लेकिन यह पहला मौका है जब भारत को इतने बड़े आयोजन का मौका मिल रहा है। जब दुनिया के सबसे ताकतवर अर्थव्यवस्थाएं एक साथ भारत आएंगी। G20 summit 2022 , Bali के बाद भारत के पास G20 ग्रुप की अध्यक्षता आ जायेगी। भारत के पास न केवल मौका होगा वार्ता के एजेंडा को तय करने का बल्कि भारत इसका सफल संचालन करके भविष्य में होने वाली ऐसे आयोजनों की दावेदारी भी कर सकती है। कोई भी देश जब इतने बड़े आयोजन को सफलता पूर्वक कर लेती है है तो इसके बाद उस देश की अंतराष्ट्रीय छवि में कई गुना बढ़ोत्तरी हो जाती है। G20 क्या है? G20 सम्मेलन और भारत

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किस शहर में हो G20 summit 2023?

 

प्रारंभ में G20 सम्मेलन 2023 (G20 summit 2023) का आयोजन जम्मू कश्मीर में होगा ऐसी बातें सामने आई। इससे भारत दुनिया को यह संदेश देना चाहती थी की जम्मू कश्मीर के बारे में पाकिस्तान समेत कई राष्ट्रों द्वारा फैलाया गया झूठ बेनकाब हो जाए और दुनिया सच स्वयं ही देख ले। लेकिन कुछ देशों की आपत्तियों की बातें भी सामने आई इसमें पाकिस्तान, तुर्की का नाम शामिल है। इसके बाद फरसे यह कयास लगाए जा रहे है कि G20 सम्मेलन 2023 (G20 summit 2023) जम्मू कश्मीर न होकर कहीं और होंगे। हालांकि विदेश मंत्रालय द्वारा साफ किया गया है कि कोई भी देश की आपत्ति भारत को अपने संप्रभु क्षेत्र में G20 summit 2023 का आयोजन करने से नहीं रोक सकती। इसलिए सम्मेलन का स्थान चुनने के लिए भारत स्वतंत्र है।

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G20 सम्मेलन स्थल का चुनाव

 

G20 summit 2023 जैसे बड़े आयोजन के लिए सबसे प्रमुख बात होती है सुरक्षा, आवागमन और अनुकूल मौसम । ऐसे आयोजनों में दुनिया भर से बड़ी संख्या में प्रतिनिधि, राजदूत, अफ़सर और पत्रकार आते है। जिनके खान पान ठहरना और आवागमन के लिए अनुकूल अवसंरचना और माहौल की आवश्यकता होती है। इसलिए सरकार स्थान चुनने में पर्याप्त समय लेती है। अभी देखना रोचक होगा कि भारत के किस शहर में g20 का आयोजन किया जाता है। G20 क्या है? G20 सम्मेलन और भारत

 

G20 और भारत (G20, India)

 

भारत G20 का एक महत्वपूर्ण सदस्य है। PPP (purchasing power parity) के अनुसार दुनिया की 3सरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी है। दुनिया का सेवा क्षेत्र जाइंट है। इसलिए भारत के लिए G20 और G20 के लिए भारत की नीतियां बहुत ही महत्वपूर्ण होते है। जैसे भारत द्वारा सस्ते निर्यात की आलोचना विकसित देश करते है वही भारत की ई कॉमर्स नीति का विरोध भी विकसित देश करते है। अतः भारत की नीतियों का असर विश्व व्यवस्था पर होता है। वही G20 की नीतियां भी भारत को सकारात्मक और नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती है। जैसे बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर टैक्स लगाना एक देश से दुसरे देश भागे आर्थिक अपराधी भगोड़ों को वापस लाने आदि ने भारत को सकारात्मक रूप से प्रभावित किया।

 

इस प्रकार भारत दुनिया की तेजी से अर्थव्यवस्था और सबसे बड़ा बाजार है जिसके ऊपर दुनिया की अर्थव्यवस्था को दिशा देने की शक्ति है। अतः भारत को G20 summit 2023 का सफल संचालन करके यह सिद्ध करने का मौका है कि भारत अब विश्व पटल पर ऐसे बड़े आयोजनों का नेतृत्व सफलता से कर सकता है।

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अंटार्कटिका संधि क्या है? क्यों है यह चर्चा में? https://nitinbharat.com/antarctica-sandhi-kya-hai/ https://nitinbharat.com/antarctica-sandhi-kya-hai/#respond Tue, 10 May 2022 07:23:00 +0000 https://nitinbharat.com/2022/05/10/%e0%a4%85%e0%a4%82%e0%a4%9f%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%95%e0%a4%9f%e0%a4%bf%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%b8%e0%a4%82%e0%a4%a7%e0%a4%bf-%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a4%be-%e0%a4%b9%e0%a5%88/ एक महान वैज्ञानिक ने कहा था “अंटार्कटिका की पिघलती बर्फ के साथ दुनिया की उल्टी गिनती शुरू हो गई है।” वही एक जर्मन शोधकर्ता ने तो यहां...

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एक महान वैज्ञानिक ने कहा था “अंटार्कटिका की पिघलती बर्फ के साथ दुनिया की उल्टी गिनती शुरू हो गई है।” वही एक जर्मन शोधकर्ता ने तो यहां तक कह दिया था कि “यदि इसी तरह अंटार्कटिका पिघलता रहा तो आने वाले 300 सालों में पृथ्वी पूरी तरह डूब जायेगी।”

अंटार्कटिका संधि क्या है?

अंटार्कटिका दुनिया के अस्तित्व के लिए किस हद तक जरूरी है इसका एहसास आपको इस आलेख को पड़कर होने वाला है। दुनिया ने इसे बचाने के लिए क्या-क्या कदम उठाएं है? भारत ने अंटार्कटिका को बचाने में अपना कितना योगदान दिया है? अंटार्कटिका संधि क्या है? कब तक डूब जायेगी धरती? सबकुछ जानेंगे लेकिन है सबसे पहले अंटार्कटिका के बारे में कुछ रोचक जानकारी।

अंटार्कटिका क्या है?

अंटार्कटिका दुनिया के 7 महाद्वीपों में से एक महाद्वीप है। जिसका 90 प्रतिशत भाग बर्फ की चादरों से ढका है। इसका क्षेत्रफल 14.4 मिलियन स्क्वायर किलोमीटर है। अंटार्कटिका दुनिया का सबसे ठंडा, सबसे ऊंचा और सबसे सूखा शीत मरुस्थल है।

अंटार्कटिका के बारे में रोचक तथ्य?

  • अंटार्कटिका दुनिया का एकमात्र महाद्वीप है जिसका अपना टाइम जोन नही है।
  • अंटार्कटिका दुनिया में एक मात्र ऐसी जगह है जहां से हर रास्ता उत्तर दिशा की ओर ही जाता है।
  • अंटार्कटिका के इतने ठंडे होने के बाउजूद यहां कई सक्रिय ज्वालामुखी स्थल मिलते है।

अंटार्कटिका इतना जरूरी क्यों है?

दुनिया के 70% ताजे पानी का भंडार अंटार्कटिका में ही है।  दुनिया की 90% बर्फ की चादरें यही पाई जाती है। जो दुनिया के तापमान को नियंत्रित करके रखता है। यह दुनिया का सबसे बड़ा शीत मरुस्थल है। जहां मानव जीवन संभव तो नही लेकिन इसके बिना मानव का जीवन संभव भी नही।

अंटार्कटिका संधि क्या है?

अंटार्कटिका को भविष्य में सैन्य गतिविधियों से दूर रखने के लिए और पूर्ण रूप से वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए संरक्षित करने के लिए 1 दिसंबर 1959 को इस संधि पर हस्ताक्षर किया गया था। इस संधि में मूलतः 12 देश शामिल थे। जो अंटार्कटिका के नजदीकी थे। जैसे- ऑस्ट्रेलिया, चिली, न्यूजीलैंड, दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन आदि। इस संधि को वाशिंगटन में हस्ताक्षरित किया गया था। जो कि 1961 में लागू हुआ
अंटार्कटिका पर बढ़ते ग्लोबल वार्मिंग और शोध के नाम पर सैन्यीकरण का खतरा मंडरा रहा है। यह पूरी धरती का सबसे संवेदनशील महाद्वीप है जो पूरी पृथ्वी की जलवायु, वर्षा, तापमान और समुद्री जलस्तर के नजरिए से बेहद ही महत्वपूर्ण हो जाता है। इस संधि में 2021 में अपने 60 वर्ष पूरे कर लिए। इसलिए यह पुनः चर्चा में आ गया है कि क्या यह संधि सचमुच अपने लक्ष्यों के अनुकूल आगे सिद्ध हुई या नहीं।

अंटार्कटिका संधि के मुख्य मुख्य प्रावधान?

इसके प्रमुख प्रावधानों में पहला, अंटार्कटिका में वैज्ञानिक अनुसंधान की स्वतंत्रता को बढ़ावा देना। दूसरा, अंटार्कटिका का उपयोग शांतिपूर्ण शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए किया जायेगा। तीसरा, कोई भी देश इसपर अपनी दावेदारी प्रस्तुत नही करेगा। चौथा, किसी भी प्रकार की सैन्य गतिविधि को रोकना।

अंटार्कटिका संधि में कितने देश है?

वर्तमान में 2019 तक अंटार्कटिका संधि में 54 देश शामिल हो चुके है। जिसमे से केवल 12 मूलत: देश है जिनके पास मतदान का अधिकार है।

क्या भारत अंटार्कटिका संधि का हस्ताक्षरकर्ता है?

भारत अंटार्कटिका संधि के 54 हस्ताक्षरकर्ता देशों में से एक है। चूंकि भारत प्रारंभिक हस्ताक्षरकर्ता देशों में से एक नही है इसलिए भारत को वोटिंग अधिकार प्राप्त नहीं है। इसके बाऊजूद भारत ने इस संधि के लक्ष्यों को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत समय ने अंटार्कटिका की सुरक्षा में बेहतर तरीके से योगदान देने के लिए कई शोध संस्थान भी स्थापित किए है।

भारत का अंटार्कटिका कार्यक्रम ?

भारत ने अपने अंटार्कटिका अभियान की शुरुआत 1981 में की। जब नेशनल सेंटर फॉर अंटार्कटिका एंड ओसियन रिसर्च (NCAOR) के तत्वाधान में प्रयास शुरू किए। यह अंटार्कटिका में शोध हेतु नोडल एजेंसी है।
भारत ने दक्षिण गंगोत्री, मैत्री और भारती नामक तीन अंटार्कटिका शोध केंद्र स्थापित किए है। दक्षिण गंगोत्री वर्तमान में क्षतिग्रस्त हो चुका है। इसके बाद मैत्री को 1989 में स्थापित किया गया था। तत्पश्चात 2012 में  भारती नामक नवीन संचालन केंद्र की स्थापना की गई। जो वर्तमान में कार्यरत है। साथ ही अंटार्कटिका पर शोध के लिए भारत ने 2008 में एक “शोध निधि” की भी स्थापना की है।
भारत हमेशा से ही अंटार्कटिक और आर्कटिक दोनो ध्रुवों पर शांति और सुरक्षा के लिए मुखबिरी करता आया है। विश्व के देशों को पर्यावरण संबंधी समझौतों को गंभीरता से अनुपालन पर जोर देना चाहिए। ताकि अंटार्कटिका संधि के लक्ष्यों को हासिल किया जा सके। अन्यथा वो दिन दूर नही जब यह कथन सत्य हो जायेगा।
“यदि इसी तरह अंटार्कटिका पिघलता रहा तो आने वाले 300 सालों में पृथ्वी पूरी तरह डूब जायेगी।”
-हंस क्लूक, जर्मन भूविज्ञानी

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एलोन मस्क दुनिया के लिए क्यों महत्वपूर्ण है ? https://nitinbharat.com/alan-musk-duniya-ke-liye-important/ https://nitinbharat.com/alan-musk-duniya-ke-liye-important/#comments Fri, 29 Apr 2022 07:19:00 +0000 https://nitinbharat.com/2022/04/29/%e0%a4%8f%e0%a4%b2%e0%a5%8b%e0%a4%a8-%e0%a4%ae%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%95-%e0%a4%a6%e0%a5%81%e0%a4%a8%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%be-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%b2%e0%a4%bf%e0%a4%8f-%e0%a4%95%e0%a5%8d/ एलोन मस्क एक अमेरिकी इंजीनियर, उद्यमी और बिजनेसमैन है। जिन्होंने बेहद ही कम समय में अपने हैरान कर देने वाले तकनीकों जैसे स्पेस एक्स spaceX, टेस्ला Tesla...

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एलोन मस्क एक अमेरिकी इंजीनियर, उद्यमी और बिजनेसमैन है। जिन्होंने बेहद ही कम समय में अपने हैरान कर देने वाले तकनीकों जैसे स्पेस एक्स spaceX, टेस्ला Tesla और स्टारलिंक से दुनिया में सनसनी मचा दी है। एलोन मस्क 2022 में दुनिया के सबसे चर्चित व्यक्ति उस वक्त बन गए जब उन्होंने सोसल मीडिया साइट ट्विटर( Elon Musk twitter )को खरीद लिया। इसी गति से यदि वें आगे बढ़ते रहे तो वो दिन दूर नही जब एलोन मस्क का दुनिया के ई कॉमर्स, अंतरिक्ष, ऑटोमोबाइल और सोशल मीडिया पर एकछत्र राज अर्थात एकाधिकार हो जायेगा।

एलोन मस्क दुनिया के लिए क्यों महत्वपूर्ण है? Why is Elon Musk  so important?

एलोन मस्क ने क्या किया है? एलोन मस्क की शुरुआत कैसे हुई? एलन मास के पास कुल कितनी संपत्ति है? एलोन मस्क की कंपनियां? और कैसे एलोन मस्क दुनिया की राजनीतिक हवा बदल सकते है? सबकुछ जानेंगे लेकिन इससे पहले एलोन मस्क का जीवन परिचय संक्षेप में जान लेते है।

एलोन मस्क कौन है और वह क्यों प्रसिद्ध है?

Elon Musk एक अमरीकी इंजीनियर, उद्यमी और बिजनेसमैन है जिन्होंने बेहद ही कम समय में अमरीकी व्यापारिक गलियारों में कूदकर बड़े बड़े बिजनस टाइकून के नींद उड़ा दी। एलोन मस्क का जन्म दक्षिण अफ्रीका के प्रिटोरिया में 28 जून 1971 हुआ था। इनके पिता एरोल मस्क एक इंजीनियर थे जो आफ्रीका के जांबिया में एक माइन के आधे मालिक भी थे। इनकी माता एक मशहूर मॉडल और डाईडिटिशियन थी। इन्होंने 1990 में अपना पहला स्टार्टअप ओपन किया था लेकिन सफलता और प्रसिद्धि 2010 के दशक में मिली जब स्पेस एक्स (spaceX) और टेस्ला (tesla) की क्षमता से दुनिया को चौका दिया।

एलन मास के पास कुल कितनी संपत्ति है?Elon Musk net worth

एलोन मस्क के पास कुल 300 बिलियन डॉलर की संपति है। 21 सितंबर को वे Jeff Bezos को पछाड़कर दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति (Richest man in the world) बन गए। ब्लूमबर्ग में प्रकाशित डेटा में यह भी बताया गया था कि आने वाले 5 सालों में उनकी संपति 500 बिलियन डॉलर तक पहुंच सकती है। Jeff Bezos Amazon के मालिक है।Jeff Bezos का हाल ही में तलाक़ हुआ था। जिसके चलते Jeff Bezos को अपनी आधी संपत्ति अपनी पत्नी को देना पड़ा था।

एलोन मस्क की कंपनियां? Companies of Elon Musk

एलोन मस्क की सबसे ज्यादा आय करने वाली कंपनियों में स्पेस एक्स (spaceX), टेस्ला(tesla), पे-पल, न्यूरालिंक, बोरिंग कंपनी, ओपन आई और अब ट्वीटर ( Elon Musk buy Twitter ) जैसी कई कंपनियां है।

एलोन मस्क दुनिया के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?Why Elon Musk is so important?

दुनिया में चाहे ग्रीन एनर्जी के लिए प्रयास हो चाहे निवेश या फिर लोकतंत्र के लिए एलोन मस्क कैसे महत्वपूर्ण है आइए समझते है।
1. निवेश: Elon Musk दुनिया के सबसे अमीर शख्सियत होने के नाते उनके द्वारा किसी भी देश में किया गया निवेश उस देश की किस्मत चमका सकता है।
2. पर्यावरण हितैषी: Elon Musk की तकनीके पर्यावरण हितैषी होने के लिए दुनिया भर में मशहूर है। जैसे-सोलर लिंक, इलेक्ट्रिक ऊर्जा से चलने वाली टेस्ला कारें Tesla और स्पेस एक्स spaceX। बढ़ते जलवायु प्रदूषण के दौर में Elon Musk का अभियान, गर्त में जा रही दुनिया के पर्यावरण के लिए एक वरदान साबित हो सकता है। पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते के लक्ष्य को हासिल करने और पृथ्वी पर जीवन को सुरक्षित करने के लिए Elon Musk बेहद ही महत्वपूर्ण साबित हो सकते है। Elon Musk tesla, और Tesla cars इसमें अहम भूमिका में होंगे।
3. लोकतंत्र समर्थक: Elon Musk दुनिया भर में प्रजातंत्र की स्थापना का समर्थन करते है। Did Elon Musk buy twitter? ट्वीटर जैसे सोशल मीडिया साइट को खरीदकर वे फ्री स्पीच, लोकतंत्र और लेफ्ट और राइट विचारधारा में संतुलन स्थापित कर सकते है। इस प्रकार Elon Musk दुनिया की राजनीतिक हवा बदलने का भी दमखम रखते है। Elon Musk twitter इसलिए  इन दिनों  चर्चा मेंं हैै।
4. इंटरनेट तक पहुंच: Elon Musk दुनिया भर के वंचित और गरीब आबादी को इंटरनेट तक पहुंच देकर वे दुनिया में संचार और सूचना क्रांति ला सकते है। सूचना क्रांति लोगो के जीवन में क्रांति लाती है। उनकी स्टारलिंक परियोजना इसी लक्ष्य के साथ शुरू की गई है। उपग्रह आधारित इस योजना द्वारा ऐसे क्षेत्रों तक भी इंटरनेट पहुंचाई जा सकती है जहां अभी तक केबल तार नही पहुंच सके।
5. दुनिया के लिए प्रेरणा: bill gates लंबे समय तक दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति रहे बाद में Jeff Bezos लेकिन Elon Musk जितनी प्रेरणा युवाओं को नहीं दे पाए। एलोन से दुनिया के युवा वर्ग में उद्यमशीलता की प्रेरणा जागेगी और पिछड़े देशों में उद्यमशीलता का माहौल बनने पर वहां की गरीबी, बेरोजगारी और उग्रवाद जैसी समस्याओं से निदान मिल सकती है।
6. एकाधिकारवाद: Elon Musk दुनिया के लिए सकारात्मक और नकारात्मक दोनो साबित हो सकते है। सकारात्मक पहलुओं को ऊपर पड़ा लेकिन नकारात्मक पहलुओं को भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता। एकाधिकारवाद पूंजीवाद में एक ऐसी ही बुराई है। जिसमे एक व्यक्ति अपने अधिकारों का गलत फायदा भी उठाने लगता है।
7. लघु उद्यम हतोत्साहित: Elon Musk एक सेट मानक स्थापित कर रहे है। और कई क्षेत्रों में दबदबा कायम कर रहे है ऐसे में दुनिया भर के लघु उद्यम उन क्षेत्रों में काम करने से कराएंगे।
Elon Musk के लिए आने वाले 5 वर्ष बेहद ही नाजुक हो सकते है क्योंकि दुनिया भर में मशहूर होने वाले उद्यमी के खिलाफ अन्य पूंजीपति की साजिशे भी शुरू हो जाती है।

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जवाहर लाल नेहरू का भारतीय विदेश नीति पर प्रभाव? https://nitinbharat.com/jawahar-lal-neharu-ka-videsh-niti/ https://nitinbharat.com/jawahar-lal-neharu-ka-videsh-niti/#respond Sun, 17 Apr 2022 14:13:00 +0000 https://nitinbharat.com/2022/04/17/%e0%a4%9c%e0%a4%b5%e0%a4%be%e0%a4%b9%e0%a4%b0-%e0%a4%b2%e0%a4%be%e0%a4%b2-%e0%a4%a8%e0%a5%87%e0%a4%b9%e0%a4%b0%e0%a5%82-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a4%a4%e0%a5%80%e0%a4%af/ पंडित जवाहर लाल नेहरू भारत के प्रथम प्रधानमंत्री, भारत के भविष्य के स्वप्नदृष्टा और तत्कालीन महान अंतरराष्ट्रीय नेताओं में से एक थे। वें 1946 से लेकर 1962...

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पंडित जवाहर लाल नेहरू भारत के प्रथम प्रधानमंत्री, भारत के भविष्य के स्वप्नदृष्टा और तत्कालीन महान अंतरराष्ट्रीय नेताओं में से एक थे। वें 1946 से लेकर 1962 तक भारत के प्रधानमंत्री थे। उनकी विदेश नीति के कई मजबूत पक्ष रहे जिसने भारत के अंतरराष्ट्रीय संबंध को नई गति दी, वही कुछ कमजोर पक्ष भी रहे जिसका खामियाजा पूरे देश को भुगतना पड़ा।

जवाहर लाल नेहरू का भारतीय विदेश नीति पर प्रभाव

नेहरू की विदेश नीति की की प्रमुख विशेषताएं और कमियां जानेंगे लेकिन उससे पहले आइए जानते है, तत्कालीन वैश्विक परिदृश्य के बारे में।

स्वतंत्रता के उपरांत भारत की विदेश नीति? (प्रारंभिक भारत की विदेश नीति?)

1945 में द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हुआ। अटलांटिक चार्टर और अमेरिकी शर्तो के अनुसार कई देश स्वतंत्र हुए। अमेरिका और सोवियत संघ शक्ति के दो सबसे बड़े केंद्र बनकर उभरे और वर्चस्व की इस लड़ाई ने पूरी दुनिया को शीत युद्ध की चपेट में ले लिया। नवस्वतंत्र राष्ट्र अमेरिकी और सोवियत संघ के दबाव में आकर अपनी स्वतंत्रता को गिरवी रखने लगे।
पूरी दुनिया पूर्व(समाजवादी) और पश्चिम (पूंजीवादी)में विभाजित होने लगी थी तब भारतीय प्रधानमंत्री ने सूझ-बूझ भरी कूटनीति का परिचय देते हुए गुटनिरपेक्षता को चुना। इस नीति को चुनकर वे दोनो पक्षों से समान दूरी बनाकर लाभ अर्जित करना चाहते थे। भारत ने न केवल खुद गुटनिरपेक्षता चुना बल्कि तृतीय विश्व के देशों को संगठित करके उसका नेता बन गया।

नेहरू की विदेश नीति की मुख्य विशेषताएं?

1) आदर्शवादी विदेश नीति: नेहरू ने गांधीवादी और बुद्धिस्ट नजरिए को विदेश नीति में भी आजमाया और विदेश नीति में पंचशील के सिद्धांत को अपनाया और चीन साथ पंचशील समझौता भी किया, हालांकि चीनी धोखे के बाद इस नीति को नेहरू की भूल माना जाता है।
2) गुटनिरपेक्षता: इसका अर्थ अमेरिकी और सोवियत संघ से समान दूरी बनाकर स्वतंत्र विदेश नीति का अनुसरण किया यह एक सफल नीति रही और आरंभ में अमरीकी और सोवियत संघ दोनो से समान रूप से सहायता प्राप्त की अपने राष्ट्रीय हित की  पूर्ति की।
3) अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं का सम्मान: पंडित नेहरू एक अंतराष्ट्रीय नेता थे इसीलिए वें स्वतंत्रता के बाद सभी वैश्विक संस्थाओं और संगठनों के सदस्य बने। जैसे संयुक्त राष्ट्र संगठन, विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और गेट। लेकिन कश्मीर मामले को संयुक्त राष्ट्र में ले जाना एक भूल मानी जाती है।
4) पड़ोसियों के साथ सहअस्तित्व की नीति का अनुपालन: भारत की सीमा में कई छोटे-छोटे स्वतंत्र राष्ट्र है जिसकी संप्रभुता और स्वतंत्रता का नेहरू ने सम्मान किया उनकी विपत्ति में उन्हें आर्थिक और सैन्य मदद भी दी। न कि कभी उनपर आक्रमण किया।
5) विश्व शांति का समर्थक: प्रधानमंत्री नेहरू ने हमेशा विश्व शांति का समर्थन किया कोरिया संकट, वियतनाम संकट और इजराइल फिलीस्तीन संकट में शांति स्थापित करने में महत्व पूर्ण भूमिका निभाई। यही नही वे परमाणु हथियारों के दौड़ के विरुद्ध थे।

नेहरू की विदेश नीति कितनी सफल रही?

नेहरू के विदेश नीति से आरंभिक भारत को अपने राष्ट्रीय हितों को पूरा करने में बहुत मदद मिली। अपनी नाजुक हालत के समय भारत ने चतुराई पूर्ण विदेश नीति का अनुपालन करके अमरीका से पूंजी और तकनीक लिया वही सोवियत संघ से संसाधनों को प्राप्त किया। अपनी निष्पक्ष विदेश नीति के चलते ही भारत को दुनियाभर में सम्मान मिला और इसके प्रवासियों को सभी देशों में स्वीकार्यता मिली.
प्रधानमंत्री मोदी आज जिस भी देश में जाते है वहां के प्रवासियों को संबोधित करते है लेकिन इसकी नीव पंडित नेहरू ने ही रखी थी। यह भी सच है कि उनकी कश्मीर नीति, चीन नीति और शरणार्थी नीति उनकी विफल रही थी जिसकी विदेश नीति विशेषज्ञ आज भी आलोचना करते है।

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वर्तमान भारतीय विदेश नीति की दशा-दिशा और रोचक पहलू https://nitinbharat.com/vartman-bharat-videsh-niti/ https://nitinbharat.com/vartman-bharat-videsh-niti/#respond Thu, 14 Apr 2022 11:30:00 +0000 https://nitinbharat.com/2022/04/14/%e0%a4%b5%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%a4%e0%a4%ae%e0%a4%be%e0%a4%a8-%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a4%a4%e0%a5%80%e0%a4%af-%e0%a4%b5%e0%a4%bf%e0%a4%a6%e0%a5%87%e0%a4%b6-%e0%a4%a8%e0%a5%80%e0%a4%a4/ भारत की विदेश नीति स्वत्रंता के उपरांत से ही कई रोचक मोड़ और उतार-चढ़ाव से गुजरी है। आजादी के सिर्फ 75 वर्ष में ही भारत एक बड़ी...

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भारत की विदेश नीति स्वत्रंता के उपरांत से ही कई रोचक मोड़ और उतार-चढ़ाव से गुजरी है। आजादी के सिर्फ 75 वर्ष में ही भारत एक बड़ी आर्थिक और सैन्य महाशक्ति के रूप ले रहा है। भारत के इस मुकाम तक पहुंचने में उसकी सूझ-बूझ भरी विदेश नीति ने अहम भूमिका निभाई है।

वर्तमान भारतीय विदेश नीति की दशा-दिशा और रोचक पहलू

मोदी सरकार की विदेश नीति की मुख्य विशेषताएं और इसकी दशा और दिशा के बारे में जानेंगे इससे पहले आइए जान लेते है इसका एक संक्षेप इतिहास।

1950 में भारतीय विदेश नीति

भारत 1950 के दशक में नवस्वतंत्र हुए तृतीय विश्व के देशों का नेता था। जिसने लंबे समय तक साम्राज्यवाद का दंश झेला था। स्वतंत्रता के समय दुनिया में शक्ति के दो प्रमुख केंद्र थे, सोवियत संघ और अमेरिका। दुनिया के कई देश जब शीत युद्ध की चपेट में आकर दो गुटों में विभाजित हो गए थे उस समय भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति का अनुसरण किया और दुनिया के नवस्वतंत्र देशों का नेतृत्व किया। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने आदर्शवादी विदेश नीति का अनुसरण किया जिसके कई नकारात्मक परिणाम भी देखने मिले इसका प्रमुख उदाहरण चीन-भारत युद्ध में भारत को हुए नुकसान है।

शास्त्री और इंदिरा काल में भारतीय विदेश नीति

लालबहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी के समय व्यवहारिक विदेश नीति का अनुसरण किया गया। रूस के साथ संबंधों में प्रगाढ़ता पर ध्यान दिया और अमेरिकी मदद को भी स्वीकार किया गया। इसका लाभ हमे भारत-पाकिस्तान युद्ध 1971 में मिला।

राजीव सरकार में भारत की विदेश नीति

राजीव गांधी  सरकार ने भारतीय विदेशी नीति को नई पहचान और दिशा दी। इन्होंने आर्थिक खुलेपन और वैश्वीकरण की शुरूआत की, चीन के साथ संबंधों की पुनर्बहाली की, पाकिस्तान के साथ व्यापारिक समझौते किया और अमेरिका से नई तकनीकों का आयात किया ( जैसे कम्प्यूटर, ऑटोमेशन मशीन ) और उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण (LPG Reforms) की नीव रखी।

1991 में भारतीय विदेश नीति

1991 के दौर में भारतीय विदेश नीति के नए अध्याय की शुरुआत हुई, जब भारत अपनी अर्थव्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन करके पूरी दुनिया के साथ एकीकृत होने के लिए निकल पड़ा। अभी तक भारत के बंद अर्थव्यवस्था के चलते भारत से हाथ मिलाने के लिए जिन देशों ने अपने हाथ पीछे खींच रखे थे उन्होंने अब कंधे से कंधा मिलाने के लिए भारत की ओर कदम बढ़ा दिया था।
उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की जो नीति अपनाई गई उसका सर्वाधिक लाभ भारत को ही हुआ, इसका प्रमाण है कि दुनिया भर में भारत के डॉक्टर, इंजीनियर और आईटी प्रोफेशनल फैले हुए है। विश्व बैंक के रिपोर्ट के अनुसार भारत सर्वाधिक रेमिटेंस (विदेशों से भेजा गया पैसा) प्राप्त करने वाला देश है। विश्व बैंक (World Bank) के अनुसार 2021 में विदेशों में बसे प्रवासी भारतीयों ने 87 अरब डॉलर रेमिटेंस के रूप में स्वदेश भेजे।

अटल सरकार में भारतीय विदेश नीति

अटल जी के सरकार में व्यवहारवादी नीति अपनी चरम पर पहुँची और ‘पोखरण परमाणु विस्फोट’ करके दुनिया को यह संदेश दिया गया की अब भारत एक साधारण देश नही बल्कि एक ‘परमाणु महाशक्ति’ है। और भारत अपने राष्ट्रीय हितों के लिए किसी के समक्ष नही झुकने वाला। यूपीए के सरकार में सभी देशों के साथ संबंधों पर जोर दिया। लेकिन भारतीय विदेश नीति को नया चेहरा दिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने।

प्रधानमंत्री मोदी की विदेश नीति की महत्वपूर्ण विशेषताएं

1)  वे भारतीय प्रवासियों को भारत के सच्चे राजनयिक मानते है, उन्हें भारत की शक्ति और सॉफ्ट पावर मानते है। इसीलिए जिस भी देश में जाते है वहां के प्रवासियों को संबोधित कर ऊर्जा से भर देते है।
2) इस बात पर विश्वास नही करते कि एक देश के साथ संबंध स्थापित करने से दुसरे देश शत्रुता का भाव रखने लगते है। इसीलिए इजराइल से अच्छा संबंध बनाया इस बात कि फिक्र किए बिना कि मुस्लिम देश नाराज हो जायेंगे और ऐसे ही कई देशों से।
3) गुटनिरपेक्षता की जगह सभी गुटों में सक्रिय भागीदारी जैसे RIC, BRICS, और SCO में सक्रिय होकर रूस और चीन के साथ संबंध बनाए वही क्वाड, जैसे संगठन में सक्रिय होकर अमरीका, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से भी निकटता बढ़ा रहा है।
4) UNO, UNSC, WHO जैसे कई संयुक्त राष्ट्र के संगठन में सक्रिय भागीदारी और भारत के पदाधिकारियों के नियुक्ति करना भारत की अंतराष्ट्रीय धमक को दिखाता है।
5) “वसुधैव कुटुंबकम्” का ध्येय वाक्य प्रचलित करते हुए पर्यावरण सक्रियता हेतुु  “वन वर्ल्ड वन ग्रिड” और “इंटरनेशनल सोलर अलायन्स” जैसे नए पहल के माध्यम से भारत को एक जिम्मेदार राष्ट्र के रूप में प्रतिष्ठित करना।
6) दुनिया को भारत के आकर्षक व्यापार माहौल और बाजार के बारे में प्रचारित करना, “सवा सौ करोड़ भारतवासी” कहकर वे ये बताना चाहते है की भारत कितना बड़ा बाजार है।
7) “स्ट्रेटेजिक ऑटोनोमी” (रणनीतिक स्वायत्ता) पर जोर देना और तनावों (रूस-अमेरिका संघर्ष, अमेरिका-चीन संघर्ष) के बीच अपने राष्ट्रीय हितों की प्राप्ति के प्रयास करना इस सरकार की एक प्रमुख विशेषता है।

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वर्तमान लोकतांत्रिक स्वरूपों में अमेरिका दुनिया का पहला लोकतांत्रिक राष्ट्र माना जाता है। इसलिए वह स्वयं को लोकतंत्र का जनक मानता है। इसलिए दुनिया में कही भी लोकतंत्र पर हमला होने पर वह हस्तक्षेप करके वहां लोकतंत्र की बहाली करता है। जैसे की विगत कई दशकों में देखा गया। चाहे वह इराक हो या लीबिया या सीरिया। यहां तक के अफगानिस्तान-तालिबान संघर्ष में भी अमेरिका ने मानवता की रक्षा के नाते दखल दिया था।
लेकिन यूक्रेन पर जब रूस एक के बाद एक कर रहा है और जब यूक्रेन की हालत इतनी नाजुक हो गई है तब हमले के जवाब में सीधा प्रतिक्रिया देने के बदले वह अंतरराष्ट्रीय समुदाय में समर्थन और निंदा अभियान में क्यों जुट गया है? क्यों वह यूक्रेन के निर्दोष लोगो की रक्षा के लिए सामने आने से बच रहा? क्या अमेरिका अब विश्व की महाशक्ति नहीं रहा? आइए इन्ही सवालों का जवाब संक्षेप में जानते है।

इसलिए अमेरिका नही कर रहा यूक्रेन की मदद?

अमेरिका के बारे में थोड़ी भी जानकारी रखने वाले लोग यह जानते है कि वह अपने ‘राष्ट्रहित’ को सबसे ऊपर रखता है। इसलिए प्रारंभ से वह केवल उन्हीं देशों की रक्षा में सामने आता है जहां उसके सीधे व्यापारिक और कूटनीतिक हित जुड़े होते है।
जैसे कि अफगानिस्तान के माध्यम से वह मध्य एशिया में अपना ‘व्यापारिक और सैन्य  दबदबा’ कायम करना चाहता था। लेकिन अमेरिका का यूक्रेन में कोई सीधा राष्ट्रीय हित नहीं जुड़ा है। जहां तक रूस को प्रतिसंतुलित करने का सवाल है तो अमेरिका रूस से सटे देशों जैसे एस्टोनिया, लाटिविया, लिथुवानिया को नाटो का सदस्य बनाकर पहले ही अपने हित साध चुका है।

अमेरिकी दखल का मतलब सीधा तीसरे विश्व युद्ध

वही रूस एक परमाणु संपन्न और दुनिया की एक सैन्य महाशक्ति है। कोई मामूली देश नही जिसे छोटे मोटे हमले से डराकर शांत किया जा सके। अमेरिकी दखल का मतलब सीधा तीसरे विश्व युद्ध में कूदना होगा। एक सवाल यहां ये भी उठता है कि अप्रत्यक्ष मदद से भी अमेरिका क्यों अपना हाथ पीछे खींचा हुआ है?
विदेश मामलों के जानकारों के अनुसार इसका जवाब वैश्विक महामारी के चलते क्षीण होती अमेरिकी आर्थिक शक्ति है। अमेरिका अप्रत्यक्ष रुप से मदद करता भी है तो वह महाशक्ति के रूप में अपनी वर्तमान स्थिति को गवां देगा। क्योंकि चीन उसे विस्थापित करने के लिए तेजी से आगे बड़ रहा है।

शायद अमेरिका को यूक्रेन में अपना हित न दिख रहा हो

रूस-यूक्रेन संघर्ष से अमेरिका असली चेहरा एकबार फिर पूरी दुनिया के सामने उजागर हुआ कि वह लोकतंत्र और मानवता को महज एक बहाने के तौर पर उपयोग करता है। जहां उसका सीधा हित दिखा वह वहां कूद जाता है और जहां उसका हित नहीं दिखता वह लोगों को उनके किस्मत के भरोसे छोड़ आता है।
जैसे पिछले दिनों सूडान और अफगानिस्तान में दिखा और आज पूरी दुनिया यूक्रेन में देख रही है। आने वाले समय में क्या घटित होने वाला है यह तो समय के गर्त में है लेकिन अभी तक तो यही विश्लेषण ही उचित प्रतीत हो रहा है।

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