भारत की विदेश नीति स्वत्रंता के उपरांत से ही कई रोचक मोड़ और उतार-चढ़ाव से गुजरी है। आजादी के सिर्फ 75 वर्ष में ही भारत एक बड़ी आर्थिक और सैन्य महाशक्ति के रूप ले रहा है। भारत के इस मुकाम तक पहुंचने में उसकी सूझ-बूझ भरी विदेश नीति ने अहम भूमिका निभाई है।
मोदी सरकार की विदेश नीति की मुख्य विशेषताएं और इसकी दशा और दिशा के बारे में जानेंगे इससे पहले आइए जान लेते है इसका एक संक्षेप इतिहास।
भारत 1950 के दशक में नवस्वतंत्र हुए तृतीय विश्व के देशों का नेता था। जिसने लंबे समय तक साम्राज्यवाद का दंश झेला था। स्वतंत्रता के समय दुनिया में शक्ति के दो प्रमुख केंद्र थे, सोवियत संघ और अमेरिका। दुनिया के कई देश जब शीत युद्ध की चपेट में आकर दो गुटों में विभाजित हो गए थे उस समय भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति का अनुसरण किया और दुनिया के नवस्वतंत्र देशों का नेतृत्व किया। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने आदर्शवादी विदेश नीति का अनुसरण किया जिसके कई नकारात्मक परिणाम भी देखने मिले इसका प्रमुख उदाहरण चीन-भारत युद्ध में भारत को हुए नुकसान है।
लालबहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी के समय व्यवहारिक विदेश नीति का अनुसरण किया गया। रूस के साथ संबंधों में प्रगाढ़ता पर ध्यान दिया और अमेरिकी मदद को भी स्वीकार किया गया। इसका लाभ हमे भारत-पाकिस्तान युद्ध 1971 में मिला।
राजीव गांधी सरकार ने भारतीय विदेशी नीति को नई पहचान और दिशा दी। इन्होंने आर्थिक खुलेपन और वैश्वीकरण की शुरूआत की, चीन के साथ संबंधों की पुनर्बहाली की, पाकिस्तान के साथ व्यापारिक समझौते किया और अमेरिका से नई तकनीकों का आयात किया ( जैसे कम्प्यूटर, ऑटोमेशन मशीन ) और उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण (LPG Reforms) की नीव रखी।
1991 के दौर में भारतीय विदेश नीति के नए अध्याय की शुरुआत हुई, जब भारत अपनी अर्थव्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन करके पूरी दुनिया के साथ एकीकृत होने के लिए निकल पड़ा। अभी तक भारत के बंद अर्थव्यवस्था के चलते भारत से हाथ मिलाने के लिए जिन देशों ने अपने हाथ पीछे खींच रखे थे उन्होंने अब कंधे से कंधा मिलाने के लिए भारत की ओर कदम बढ़ा दिया था।
उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की जो नीति अपनाई गई उसका सर्वाधिक लाभ भारत को ही हुआ, इसका प्रमाण है कि दुनिया भर में भारत के डॉक्टर, इंजीनियर और आईटी प्रोफेशनल फैले हुए है। विश्व बैंक के रिपोर्ट के अनुसार भारत सर्वाधिक रेमिटेंस (विदेशों से भेजा गया पैसा) प्राप्त करने वाला देश है। विश्व बैंक (World Bank) के अनुसार 2021 में विदेशों में बसे प्रवासी भारतीयों ने 87 अरब डॉलर रेमिटेंस के रूप में स्वदेश भेजे।
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अटल जी के सरकार में व्यवहारवादी नीति अपनी चरम पर पहुँची और ‘पोखरण परमाणु विस्फोट’ करके दुनिया को यह संदेश दिया गया की अब भारत एक साधारण देश नही बल्कि एक ‘परमाणु महाशक्ति’ है। और भारत अपने राष्ट्रीय हितों के लिए किसी के समक्ष नही झुकने वाला। यूपीए के सरकार में सभी देशों के साथ संबंधों पर जोर दिया। लेकिन भारतीय विदेश नीति को नया चेहरा दिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने।
1) वे भारतीय प्रवासियों को भारत के सच्चे राजनयिक मानते है, उन्हें भारत की शक्ति और सॉफ्ट पावर मानते है। इसीलिए जिस भी देश में जाते है वहां के प्रवासियों को संबोधित कर ऊर्जा से भर देते है।
2) इस बात पर विश्वास नही करते कि एक देश के साथ संबंध स्थापित करने से दुसरे देश शत्रुता का भाव रखने लगते है। इसीलिए इजराइल से अच्छा संबंध बनाया इस बात कि फिक्र किए बिना कि मुस्लिम देश नाराज हो जायेंगे और ऐसे ही कई देशों से।
3) गुटनिरपेक्षता की जगह सभी गुटों में सक्रिय भागीदारी जैसे RIC, BRICS, और SCO में सक्रिय होकर रूस और चीन के साथ संबंध बनाए वही क्वाड, जैसे संगठन में सक्रिय होकर अमरीका, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से भी निकटता बढ़ा रहा है।
4) UNO, UNSC, WHO जैसे कई संयुक्त राष्ट्र के संगठन में सक्रिय भागीदारी और भारत के पदाधिकारियों के नियुक्ति करना भारत की अंतराष्ट्रीय धमक को दिखाता है।
5) “वसुधैव कुटुंबकम्” का ध्येय वाक्य प्रचलित करते हुए पर्यावरण सक्रियता हेतुु “वन वर्ल्ड वन ग्रिड” और “इंटरनेशनल सोलर अलायन्स” जैसे नए पहल के माध्यम से भारत को एक जिम्मेदार राष्ट्र के रूप में प्रतिष्ठित करना।
6) दुनिया को भारत के आकर्षक व्यापार माहौल और बाजार के बारे में प्रचारित करना, “सवा सौ करोड़ भारतवासी” कहकर वे ये बताना चाहते है की भारत कितना बड़ा बाजार है।
7) “स्ट्रेटेजिक ऑटोनोमी” (रणनीतिक स्वायत्ता) पर जोर देना और तनावों (रूस-अमेरिका संघर्ष, अमेरिका-चीन संघर्ष) के बीच अपने राष्ट्रीय हितों की प्राप्ति के प्रयास करना इस सरकार की एक प्रमुख विशेषता है।