कश्मीर और कश्मीरी पंडितो पर बनी फिल्म द कश्मीर फाइल्स ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। इस मूवी के समाप्त होते ही दर्शक सीधे घर के लिए रवाना न होकर दो मिनट रुककर यह सोचने में लग जाता है कि उन्हें न्याय कैसे मिले? कैसे पलायन कर गए कश्मीरी पंडितो को कश्मीर घाटी में वापस बसाया जाए? कैसे कश्मीर में स्थाई शांति आए? वहीं कुछ दर्शक कश्मीरी बहुसंख्यकों के लिए एक बेशुमार नफरत लिए बाहर निकलते है।
द कश्मीर फाइल्स और कश्मीरी पंडित
‘द कश्मीर फाइल्स‘ मूवी में दिखाए गए कश्मीरी पंडितों के नरसंहार के दृश्य ने पूरे देश को दहला दिया है। इस ‘फिल्म’ को देखने वाला कोई भी दर्शक ऐसा नहीं होगा जो दर्द से न भर गया हो। हालांकि कई विपक्षी राजनीतिक दल इसे आधा सच दिखाने वाला और एक धर्म विशेष के प्रति नफरत को बढ़ावा देकर इसका राजनीतिक लाभ लेने की मंशा से बनाई गई मूवी मान रहे है।
बहरहाल सच जो भी हो इस मूवी ने एक अच्छा काम जरूर किया है वो ये कि कश्मीरी पंडितो के दर्द को देश के आमजनों तक लेकर गई। इस फिल्म ने नई पीढ़ी जिन्होंने इनके नृशंस हत्या के बारे में सुना या पढ़ा था उसे हमेशा के लिए जीवंत कर दिया। आने वाले समय में यही पीढ़ी अपने नेताओं से ये सवाल पूछ सकेंगी कि आपके दल और सरकार ने कश्मीरी पंडितो के पुनर्वास और विकास के लिए क्या किया?
विभाजनकारी विचारधारा, द कश्मीर फाइल्स व कश्मीरी पंडित
ये बात आप बखूबी जानते होंगे कि देश की प्रिंट और डिजिटल मीडिया दोनो ही ‘लेफ्ट’ और ‘राइट’ विचारधारा में बंट चुके है। वही बॉलीवुड के कई निर्माता निर्देशक भी लेफ्ट और राइट विचारधारा में बंट चुके है। इसी प्रकार किसी भी विचार या दुष्प्रचार(Propaganda) को परोसने और फैलाने के लिए सभी राजनीतिक दलों के पास उनकी अपनी-अपनी आईटी (IT Cell) सेल है। ऐसे में मूवी के बारे में कोई क्या कहता है यह मायने ही नही रखता मायने रखता है तो सिर्फ कश्मीरी पंडितों का दर्द, उनका पुनर्वास और घाटी में स्थाई शांति।
सरकार द्वारा उन्हें (कश्मीरी पंडित) पर्याप्त सुरक्षा आश्वासन न दे पाना
यह सच है कि अभी तक कि केंद्र और राज्य सरकारों ने उनके पुनर्वास के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए है। इसमें सबसे बड़ा व्यवधान वहां का स्वतंत्र संविधान और नागरिकता का प्रावधान था। इसे जनसामान्य ‘अनुच्छेद 370’ के नाम से जानती थी। इसे भारतीय संसद ने एक प्रस्ताव के माध्यम से 5 अगस्त 2019 को निरसित कर दिया। दूसरी मुख्य चुनौती कश्मीरी पंडितों की वापस लौटने के प्रति अनिच्छा है, इस अनिच्छा का मुख्य कारण कश्मीर घाटी में पिछले 30 वर्षो में आ चुकी स्थायी जनसांख्यिक बदलाव, सरकार द्वारा उन्हें पर्याप्त सुरक्षा आश्वासन न दे पाना और वे दिल दहलाने वाली यादें है जिसका मंज़र आपने द कश्मीर फाइल्स मूवी में देखा होगा।
‘अनुच्छेद 370’ का सकारात्मक प्रभाव
लेकिन एक बात आप भी स्वीकार करेंगे कि जितनी तेजी से कश्मीर में आतंकवाद, अलगाववाद को समाप्त करने और वहां के हिंदू अल्पसंख्यकों में आत्मविश्वास जगाने जो साहसिक प्रयास अन्य सरकारें नहीं कर पाए वह वर्तमान सरकार ने कर दिखाया। इसमें सबसे अहम ‘अनुच्छेद 370’ हटाने का फैसला था जिसका विपक्षी दलों ने भी स्वागत किया था। लेकिन यह भी सत्य है कि घाटी में स्थायी शांति अभी तक नही आई है और यह बिना कश्मीरी पंडितों के नही आ सकती।
कश्मीरी पंडित घाटी के लिए क्यों अहम है?
कश्मीर के इतिहास को जानने वाले इस बात से वाकिफ होंगे कि घाटी में लंबे समय तक हिंदू आबादी निवास करती थी। जिसमे सर्वाधिक जनसंख्या कश्मीरी पंडितो की थी। इसीलिए घाटी में कभी आतंकवाद पनप नहीं सका था। यहां तक कि भारत-पाकिस्तान के विभाजन के समय जहां पूरा देश जल रहा था, तब भी यह क्षेत्र हिंदू-मुस्लिम दंगो के चपेट में नही आई, बल्कि सबसे ज्यादा हिंसा बंगाल और पंजाब में हुए।
दरअसल, कश्मीरी पंडितों की जब तक घाटी में पर्याप्त आबादी रही, कभी किसी घर में पाकिस्तान समर्थित आतंवादी और अलगाववादियों को छुपने के लिए पनाह नही दिया गया।
लेकिन उनके पलायन और विस्थापन के बाद वहां कई पाकिस्तान समर्थित अलगाववादी और उग्रवादी कश्मीरी नागरिक के भेष में वहां बस गए। यही से शुरू हुआ कश्मीर में आतंकवाद फैलाने का खेल। आज भी कश्मीर में कही भी आतंकी हमला को अंजाम देने के बाद उग्रवादी घाटी में जाकर छुप जाते है। इन्हे पनाह देने वाले कई अलगवादी आज जेल की हवा खा रहे।
इस लेख का उपर्युक्त पैराग्राफ पर्याप्त है यह समझने के लिए कि आखिर क्यों कश्मीरी पंडित पूरे कश्मीर के अमन और चैन के लिए जरूरी है। ‘द कश्मीर फाइल्स‘ मूवी के बाद अब सरकार पर और अधिक दबाव बनेगा कि उनके पुनर्स्थापन के लिए ठोस उपाय करे। क्योंकि इस मूवी ने उनके दर्द को लोगो में जीवंत कर दिया है।
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