प्रशांत किशोर भारतीय राजनीति का एक जाना-माना नाम है। भले ही आज तक उन्होंने सीधे कोई भी चुनाव नही लड़ा लेकिन उनकी चुनावी चाणक्य की भूमिका ने कई नेताओं के भाग्य बदल दिए। 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर 2021 में ममता बनर्जी को चुनाव जिताने वाले प्रशांत किशोर को हर कोई अपने पार्टी में शामिल करने के लिए आतुर दिखता है।
प्रशांत किशोर महज 10 वर्षो में ही देश के सबसे बड़े चुनावी रणनीतिकार उभरकर सामने आए है। आप, टीमसी और भाजपा जैसे देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टियों को उन्होंने कई चुनाव जीताया है। उन्हें राजनीतिक पार्टियों द्वारा कई बड़े राजनीतिक पद और मंत्री पद भी पेशकश की गई लेकिन सबकुछ नकारकर वे अपनी खुद की राजनीतिक पार्टी बनाने की ओर आगे बड़ रहे है। वे भारतीय राजनीति में सबसे बड़े सितारे बनकर उभरने वाले है या धूमकेतु की तरह कुछ समय में ही विलुप्त हो जायेंगे? उनकी राजनीतिक भविष्य कैसा रहने वाला है? क्या है प्रशांत किशोर के सामने मुख्य चुनौतियां? आइए जानते है। लेकिन उससे पहले प्रशांत किशोर के बारे में संक्षेप में।
प्रशांत किशोर भारत के प्रसिद्ध चुनावी रणनीतिकार और है राजनीतिज्ञ है। उनका जन्म बिहार के सासाराम में सन 1977 में हुआ था। बचपन से मेधावी छात्र रहे प्रशांत किशोर ने 10 वर्ष यूएनओ (UNO) में बतौर पब्लिक हेल्थ एक्टिविस्ट का का किया।
एक चुनावी रणनीतिकार के तौर पर उन्होंने सबसे शुरुआती काम गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ गुजरात विधानसभा चुनाव 2012 में किया।
बतौर चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के नाम बड़ी सफलताएं है दर्ज है। 2014 में नरेंद्र मोदी, 2017 में योगी आदित्यनाथ, 2017 में नीतीश कुमार, 2021 में ममता बनर्जी को जीताने में उनकी मुख्य भूमिका रही थी।
प्रशांत किशोर अकेले काम नहीं करते बल्कि उनकी संस्था I-PAC (Indian political action committee) जिसमे सकड़ों क्वालिफाइड आईआईटियन और प्रबंधन में ग्रेजुएट कर्मचारियों के माध्यम से अपना कार्य करते है। इनकी अलग अलग टीम होती है, जैसे सर्वे टीम, IT Cell और रणनीतिक टीम जो किसी भी पार्टी को जीत तक पहुंचाने में अपनी एड़ी चोटी का जोर लगाते है।
प्रशांत किशोर का न तो राजनीतिक विरासत है और न ही स्पष्ट विचारधारा जिसके दम पर वें वोट बैंक बना सके। प्रशांत किशोर राजनीतिक गलियारों में तो जाना माना नाम है लेकिन आम जनों के बीच उनकी लोकप्रियता बहुत कम है और ग्रामीण क्षेत्र में उनके बारे में न के बराबर। प्रशांत किशोर को अपनी शुरुआत शून्य से करनी होगी। वे न तो अरविंद केजरीवाल की तरह आंदोलन से निकले है न ही किसी मुद्दे को लेकर आगे बढ़े है जैसे बीजेपी राष्ट्रवाद का मुद्दा लेकर महज कुछ ही वर्षों में राष्ट्रीय राजनीति में छा गई। इसलिए भारतीय राजनीति में नया सितारा बनना प्रशांत किशोर के लिए मुश्किल दिखता है।
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वैचारिक रूप से वे अपने आप को एक गांधीवादी और समाजवादी समर्थक मानते है। बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था मैं एक लेफ्ट-सेंटर विचारधारा का समर्थक हूं। ये वही विचारधारा है जिसका कांग्रेस ने हमेशा से अनुपालन किया है।
प्रशांत किशोर जो देश का राजनीतिक चाणक्य माना जाता है उन्हे खुद के लिए अब दूसरी राजनीतिक पार्टियों का सहारा लेना पड़ेगा। गठबंधन करना होगा। हाथ मिलाना होगा। शुरुआत यदि वे बिहार से करते है तो उनके लिए रास्ता और भी चुनौतीपूर्ण हो सकता है। क्योंकि संपूर्ण भारत में राजनीति का सबसे कठिन समीकरण बिहार में ही देखेने मिलता है। यहां बीजेपी, कांग्रेस, जेडीयू, आरजेडी, जैसी दर्जनों राजनीतिक दल और उनका निश्चित वोट बैंक है। ऐसे में अपनी पैठ बना पाना उनके लिए बेहद ही कठिन दिखता है। इसलिए उनके लिए सबसे अच्छा मार्ग किसी एक राजनीतिक पार्टियों के साथ जुड़कर या गठबंधन करके आगे बढ़े।
चुनाव की रणनीति बनाना आसान है। लेकिन उसे अमल में लाने के लिए हजारों संगठित कार्यकर्ताओं की जरूरत पड़ती है। अभी तक प्रशांत किशोर ने जिनके लिए कार्य किया उनकी एक स्पष्ट विचारधारा, कार्यशैली, जनाधार, वोटबैंक, छवि और संगठित कार्यकर्ता थे। राजनीतिक दलदल की गहराई कितनी है ये राजनीति में उतरकर 2-3 चुनाव लड़ने के बाद ही समझा जा सकता है। भारतीय राजनीति ने ऐसे कई सितारों को अपने फलक पर धूमकेतु होते देखा है। प्रशांत किशोर का राजनीतिक भविष्य कैसा होगा यह देखना रोचक होगा।