“किसी भी देश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की जिम्मेदारी वहां के बहुसंख्यकों की होती है। चाहे वह भाषाई अल्पसंख्यक हो, नृजातीय अल्पसंख्यक हो या फिर धार्मिक अल्पसंख्यक।” किसी भी प्रजातांत्रिक व्यवस्था के सफल संचालन के लिए इस स्वर्णिम नियम (Golden Rule) का अनुपालन बहुत आवश्यक होता है। इसका अनुपालन बहुलतावादी संस्कृति में अति आवश्यक होता है। नही तो उस देश में अशांति को घर करते देर नही लगती।
वर्तमान में सांप्रदायिक उन्माद गृह-युद्ध की संभावना कितनी?
अमेरिका में नृजातीय अल्पसंख्यकों की सुरक्षा करने में बहुसंख्यक जब तक विफल रहे थे तब तक वहां गोरे और कालों (श्वेत बनाम अश्वेत) की लड़ाई चलती रही। पूरा देश गृह युद्ध से जूझ रहा था। और लंबे समय तक वहां शांति दुभर थी। श्रीलंका में भी यही संकट देखने मिला, यहां भाषाई अल्पसंख्यक तमिल बनाम सिंहली की लड़ाई देखने मिला। श्रीलंका भी लंबे समय तक गृहयुद्ध की चपेट में रहा। अल्पसंख्यकों ऐसे ही अशांति के कई उदाहरण दुनिया भर में मौजूद रहे है। जैसे-रूस में चेचन्या, पाकिस्तान में बलूची, नेपाल में मधेसी, म्यांमार में रोहिंग्या आदि।
भारत जैसे बहुलतावादी संस्कृति अभी तक अशांत क्यों नहीं हुई?
भारत के संविधान निर्माता बहुत ही बुद्धिमान थे। उन्होंने भारतीय संविधान में ऐसे प्रावधान पहले से ही कर दिए है। जिनके लिए कई देशों में अल्पसंख्यकों को सदियों और दशकों तक संघर्ष करना पड़ा, जैसे- भाषाई अधिकार, जातीय अधिकार, धार्मिक अधिकार आदि। इसीलिए दुनिया की सर्वाधिक बहुलता वादी संस्कृति आज भी दुनिया में सीना ताने चल रहा है। भारत वही देश है जिसके बारे में ब्रिटिश प्रधानमंत्री ‘विंस्टन चर्चिल’ ने कहा था “भारत जैसे बहुलता वादी देश का एक राष्ट्र के रूप में संगठित होना असम्भव है, यह देश बन भी गया तो लंगड़ा-लंगड़ा कर चलेगा।“
क्या भारत में गृह युद्ध की संभावना है?
गृह युद्ध एक ऐसी हिंसक लड़ाई होती है जो अपने ही देश के नागरिकों के विरुद्ध छेड़ी जाती है, यह तब तक चलती है जब तक की उन्हें पर्याप्त अधिकार नही दे दिया जाता। संभावना किसी भी चीज की बनी ही रहती है तभी उसपर चर्चाएं होती है। भारत में सोशल मीडिया के इस युग में छोटी से अफवाह कब बड़ा रूप ले-ले इसका कोई अंदाजा भी नहीं लगा सकता।
भारत में हिन्दू-मुस्लिम दंगे आय दिन होते ही रहते है। दोनो तरफ के सांप्रदायिक तत्व सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ने की कोशिश में लगे रहते है। लेकिन आज तक यह कभी गृह युद्ध का रूप नही ले सका है। क्योंकि सोसल मीडिया और अफवाहों द्वारा पैदा की गई झगड़ों की उम्र ज्यादा नही होती। हालांकि बलवे या दंगे भी सामाजिक सौहार्द के लिए एक चुनौती है। यह लंबे समय तक नफरत को स्थाई बना देती।
भारत में अभी तक गृह युद्ध के हालात पैदा क्यों नही हुए?
1. भारत में मजबूत संवैधानिक संस्थान है जो अल्पसंख्यकों की हितों की रक्षा करती है। जैसे-स्वतंत्र सर्वोच्च न्यायालय, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग, राष्ट्रीय भाषाई अल्पसंख्यक आयोग आदि।
2. भारत में धार्मिक उन्माद का माहौल मुख्यतः टीवी चैनलों और सोशल मीडिया द्वारा पैदा की जाती है। जिससे अधिकतर मजदूर और किसान वर्ग सरोकार नहीं रखते। यह तथ्य है कि जब तक समाज का निचला वर्ग भागीदारी नही करता कोई भी प्रयास सफल नहीं होते।
3. भारतीय संविधान अल्पसंख्यकों को उनके पक्ष पोषण के लिए सभी अधिकार उपलब्ध कराती है।
4. “हिंदू धर्म एक सर्वसमावेशी धर्म है जिसका ऐतिहासिक चरित्र रहा है, सहिष्णुता, बंधुत्व और प्रेम का। ” इसलिए यहां अल्पसंख्यक सुरक्षित महसूस करते है। 1893 में महान दार्शनिक स्वामी विवेकानन्द ने शिकागो विश्व धर्म सम्मेलन में यही बात कही थी।
5. भारत में हिन्दू और मुस्लिम दोनो ही धर्म में असंख्य ऐसे लोग है जो शांति, आपसी भाई चारे और सौहार्द के लिए काम करते है। जैसे- साहित्यकार, कलाकार, बुद्धिजीवी, और नेता आदि।
बहरहाल, एक सर्वहितैषी संविधानधारित भारत में ऐसी कोई संभावना नहीं दिखती कि वर्तमान सांप्रदायिक उन्माद गृह-युद्ध में बदल सके और कभी ऐसा होना भी नहीं चाहिए क्योंकि नकारात्मक नतीजा सभी पक्षों को भुगतना पड़ता है। हम सभी का कर्तव्य है कि सामाजिक सौहार्द का ध्यान रख देशहित में कार्य करते हुए एक-दूसरे से मिल-जुलकर रहें।