भारत दशक के सबसे बड़े कोयले के संकट से गुजर रहा है। उत्तर भारतीय राज्यों में 6 से लेकर 12 घंटे तक की बिजली कटौती ने लोगों का जीना दुभर कर दिया है। सरकारें और बिजली कंपनी लाचार हो गई है। ट्रेन की पटरियों पर सवारी गाड़ी से ज्यादा कोयले से भरी माल गाडियां दौड़ रही है। कोयले की इस अप्रत्याशित कमी से देश की अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ने वाला है? भारत जैसे भरपूर कोयले वाले देश में, भारत में कोयला संकट कैसे पैदा हुआ? और क्या है इसका समाधान आइए समझते है।
भारत में 2022 की गर्मी उत्तर भारतीय लोगों के लिए अभिशाप बनकर आया। अन्य वर्षों की तुलना में इस वर्ष हिट वेव अधिक विकराल था। लोगों के पास अपनी जान बचाने का एक मात्र सहारा पंखे, कूलर, एसी और रेफ्रिजरेटर जैसे साधन ही बचे थे लेकिन दुर्भाग्य वश इसी समय भारत में उत्पन्न हुई बिजली संकट ने इन मशीनों को बेकार बना दिया। लोगों का गर्मी से बुरा हाल है। तमाम प्रयासों के बौजूद सरकार बिजली संकट से निबटने में असहाय दिखे।
प्रत्येक वर्ष की तरह इस वर्ष भी उत्तर भारत भीषण गर्मी की चपेट में आया। लेकिन गर्मी के साथ साथ हीट वेव का प्रकोप अप्रैल के शुरुआती महीनों में ही देखने मिला जिसके चलते राज्यों की ऊर्जा मांगे अप्रत्याशित रूप से बढ़ गई। बिजली कंपनियों के पास पर्याप्त कोयला स्टॉक नही होने के कारण बिजली की आपूर्ति ठप हो गई परिणाम स्वरूप भारत में बिजली संकट पैदा हो गया।
भारत में कोयला संकट और बिजली संकट के एक नही कई कारण है। पहला, भारत में उच्च कार्बन मात्रा वाली कोयले की कमी के कारण विदेशों से आयात किया जाता है लेकिन रूस-युक्रेन युद्ध के चलते कोयले की कीमतों में 35 से 40% की बढ़ोतरी देखी गई। बिजली कंपनिया अपना घाटा बढ़ जाने के डर से कोयला का आयात नही कर रही। वहीं केंद्र लगातार राज्यों पर दबाव बनाने की कोशिश कर रही है कि कोयले की खरीद राज्य करें। ताकि बढ़ी हुई कीमतों का बोझ केंद्र के राजकोष पर न पड़े।
दूसरा, भारत में डीजल और पेट्रोल की बढ़ती कीमतों के चलते ऊर्जा उत्पादन के लिए इनके स्थान पर कोयले से ही ऊर्जा उत्पादन किया जा रहा है, इससे कोयला संकट और बढ़ा।
तीसरा, राज्य सरकारें कोयले की मांग सालाना आधार पर करती है, जबकि प्रत्येक माह इसकी स्थिति और मांग आपूर्ति में विचलन देखने को मिलता रहता है।
चौथा, बिजली वितरण कंपनियों का घाटे में होना, जिसके चलते उनके पास बढ़ी हुई कीमतों पर कोयला भंडारण करने के लिए पर्याप्त धन नहीं बचा है।
भारत में उच्च गुणवत्ता के कोयले के अभाव के कारण विभिन्न देशों से कोयले का आयात किया जाता है। कुल आयात का लगभग 50 प्रतिशत इंडोनेशिया से, 20 प्रतिशत ऑस्ट्रेलिया, 16% दक्षिण अफ्रीका और 5 प्रतिशत आयात संयुक्त राज्य से करता है।
ऐसा नहीं है कि भारत में कोयले का उत्पादन नहीं होता लेकिन भारत में पाया जाने वाला कोयला निम्नतम गुणवत्ता का होता है। छत्तीसगढ़, ओडिशा और मध्यप्रदेश भारत के शीर्ष कोयला उत्पादक राज्य है जबकि झारखंड ओडिशा और छत्तीसगढ़ भंडारण के मामले में शीर्ष पर है।
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भारत में सर्वाधिक मात्रा में बिट्यूमिनस प्रकार का कोयला पाया जाता है। जम्मू कश्मीर एकमात्र राज्य है जहां एंथ्रासाइट प्रकार का कोयला पाया जाता है। जबकि राजस्थान, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, ओडिसा आदि में बिट्यूमिनस प्रकार का कोयला पाया जाता है। लिमोनाइट और साईडेराइट अन्य दो कोयले के प्रकार है जो भारत में प्रमुखता से मिलती है।
भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा कोयला आयातक देश है। 2019 के आंकड़े के अनुसार भारत 249 मिट्रिक टन कोयले का आयात करता है। जबकि चीन दुनिया का सबसे बड़ा कोयला आयातक देश है यह अपनी जरूरत का 308 मिट्रिक टन कोयला आयात करता है।
ऑस्ट्रेलिया दुनिया का सबसे बड़ा कोयला निर्यातक देश है। दूसरे नंबर पर इंडोनेशिया, तीसरे और चौथे पायदान पर क्रमश रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका है। चूंकि रूस दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कोयला निर्यातक देश हैै इसलिए कोयला आपूर्ति रूस से बाधित होने पूरी दुनिया में कोयले की कमी और कीमतों में वृद्धि हो गई।
भारत के कुल ऊर्जा उत्पादन का लगभग 55% भाग कोयले से होता है। कोयले की कमी से औद्योगिक उत्पादन दर घटेगा, महंगाई बढ़ेगी, बिजली कंपनियों की आमदनी घटेगी तथा उनका राजस्व घाटा बढ़ेगा। इस प्रकार बिजली की कमी से देश की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
कोयले की खरीद और मांग राज्य केंद्र से प्रत्येक तीन माह के अंतराल में करें ताकि राज्य में कोयले की यथास्थिति का ज्ञान हो सके। GST परिषद जैसे एक ऐसे मंच का निर्माण करना जहां पर आकर राज्य एक दूसरे को सीधे कोयले की खरीद बिक्री कर सके। बिजली कंपनियों की भुगतान समस्या का निदान करने के लिए सहयोग तेज करना। नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता बढ़ाना।
भारत में कोयला संकट से उत्पन्न बिजली संकट निश्चित रूप से एक गंभीर विषय है। इसका सीधा संबंध देश की अर्थव्यवस्था और लोगो के जीवन जीने में सहजता से है। अतः केंद्र और राज्य को साथ मिलकर इसका दीर्घकालिक और स्थायी समाधान ढूंढना चाहिए।