कन्हैया कुमार ने अंततः कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली। यह सदस्यता उन्होंने राहुल गांधी के मौजूदगी में ग्रहण की जो कि भारतीय राजनीति में उनके कद और महत्व को दर्शाता है। लेकिन कन्हैया कुमार के लिये कांग्रेस पार्टी को नयी ऊर्जा दे पाना क्यों मुश्किल होने वाला है? क्यों कन्हैया कुमार ने कांग्रेस पार्टी ज्वाइन की? और राहुल गांधी के लिये कन्हैया कैसे नयी मुसीबत बन सकते है आइये समझने की कोशिश करते है।
कन्हैया कुमार बिहार के एक छोटे से गांव से ताल्लुक रखते है वो राष्ट्रीय स्तर पर तब सुर्खियों में आ गये जब कश्मीरी अलगाववादी अफजल गुरु के समर्थन में JNU (जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय) में 2016 में नारे लगाये गए थे। इसमें कथित तौर पर कन्हैया कुमार भी शामिल थे जिसकी वजह उन्हें देशद्रोह के आरोप में तिहाड़ जेल भी जाना पड़ा हालांकि जल्दी ही वे जमानत पर बाहर आ गये।
इस वाक्ये ने कन्हैया कुमार को रातों रात देश की सुर्खियों में ला दिया। उनके मुख्य विरोध में BJP पार्टी थी जबकि समर्थन में में कम्युनिस्ट पार्टी। इसीलिये BJP विरोधी दलों की सामान्य सहानुभूति कन्हैया कुमार को मिलने लगी। कन्हैया इसके बाद अपना पक्ष रखने कई टीवी डिबेट्स और इंटरव्यू में भी आने लगे जहाँ उनके वाकपटुता और हाज़िर जवाब के बारे में सभी परिचित हुए। उनके विचार और तर्क युवाओं के बीच काफ़ी वायरल होने लगे।
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उन्हें एक बहुत बड़े नेता के तौर पर मान्यता मिलने ही वाली थी कि 2019 लोकसभा चुनाव में उनकी हार ने ये भ्रम तोड़ दिया कि किसी की सोशल मीडिया की प्रसिद्धि उन्हें चुनाव नहीं जीता सकता। साथ ही कन्हैया जिस पार्टी से आते थे उसकी भी लोकप्रियता धीरे धीरे क्षीण होते जा रही है और अपने अस्तित्व की आखिरी लड़ाई लड़ रही है। ऐसी पार्टी में उनके नेतृत्व कौशल के लिये सीमित अवसर ही थे। यही सब कारण थे जिसकी वजह से कन्हैया ने देश की सबसे पुरानी पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली।
लेकिन कांग्रेस पार्टी में भी कन्हैया का रास्ता आसान नहीं होने वाला है क्योंकि कांग्रेस पार्टी भी अभी नाज़ुक दौर से गुजर रही है। इस पार्टी की सबसे बड़ी समस्या परिवारवाद, मजबूत शीर्ष नेतृत्व का अभाव और पार्टीगत लोकतंत्र का अभाव है। कन्हैया कुमार को इन सबका मुकाबला करना होगा।
वही कांग्रेस पार्टी के लिये भी कन्हैया एक नयी मुसीबत बन सकते है क्योंकि उनके साथ विरासत में कई विवाद भी शामिल हो जायेंगे जैसे “टुकड़े-टुकड़े गैंग” जिसको सुनते ही नये राष्ट्रवादी युवा आबादी के नफ़रत का शिकार कांग्रेस स्वतः ही हो सकती है। इसके अलावा नेतृत्व के स्तर पर भी कांग्रेस पार्टी में कई नेताओं को कन्हैया कुमार पीछे छोड़ देंगे इससे उनके द्वेष का भी शिकार कन्हैया को होना पड़ सकता है।
बहरहाल, कन्हैया के आने से कांग्रेस पार्टी को एक तेजतर्रार वक्ता जरूर मिल जायेगा, जो पार्टी के विचारों और पक्षों को मजबूती से रख सके। आने वाले समय में देखना दिलचस्प होगा कि कन्हैया कुमार के आने से क्या होता है। आप अपनी राय कमेंट बॉक्स में जरूर रखें। यह लेख पसंद आयी हो तो अन्य लोगों से भी साझा करे।