एक महान वैज्ञानिक ने कहा था “अंटार्कटिका की पिघलती बर्फ के साथ दुनिया की उल्टी गिनती शुरू हो गई है।” वही एक जर्मन शोधकर्ता ने तो यहां तक कह दिया था कि “यदि इसी तरह अंटार्कटिका पिघलता रहा तो आने वाले 300 सालों में पृथ्वी पूरी तरह डूब जायेगी।”
अंटार्कटिका संधि क्या है?
अंटार्कटिका दुनिया के अस्तित्व के लिए किस हद तक जरूरी है इसका एहसास आपको इस आलेख को पड़कर होने वाला है। दुनिया ने इसे बचाने के लिए क्या-क्या कदम उठाएं है? भारत ने अंटार्कटिका को बचाने में अपना कितना योगदान दिया है? अंटार्कटिका संधि क्या है? कब तक डूब जायेगी धरती? सबकुछ जानेंगे लेकिन है सबसे पहले अंटार्कटिका के बारे में कुछ रोचक जानकारी।
अंटार्कटिका क्या है?
अंटार्कटिका दुनिया के 7 महाद्वीपों में से एक महाद्वीप है। जिसका 90 प्रतिशत भाग बर्फ की चादरों से ढका है। इसका क्षेत्रफल 14.4 मिलियन स्क्वायर किलोमीटर है। अंटार्कटिका दुनिया का सबसे ठंडा, सबसे ऊंचा और सबसे सूखा शीत मरुस्थल है।
अंटार्कटिका के बारे में रोचक तथ्य?
- अंटार्कटिका दुनिया का एकमात्र महाद्वीप है जिसका अपना टाइम जोन नही है।
- अंटार्कटिका दुनिया में एक मात्र ऐसी जगह है जहां से हर रास्ता उत्तर दिशा की ओर ही जाता है।
- अंटार्कटिका के इतने ठंडे होने के बाउजूद यहां कई सक्रिय ज्वालामुखी स्थल मिलते है।
अंटार्कटिका इतना जरूरी क्यों है?
दुनिया के 70% ताजे पानी का भंडार अंटार्कटिका में ही है। दुनिया की 90% बर्फ की चादरें यही पाई जाती है। जो दुनिया के तापमान को नियंत्रित करके रखता है। यह दुनिया का सबसे बड़ा शीत मरुस्थल है। जहां मानव जीवन संभव तो नही लेकिन इसके बिना मानव का जीवन संभव भी नही।
अंटार्कटिका संधि क्या है?
अंटार्कटिका को भविष्य में सैन्य गतिविधियों से दूर रखने के लिए और पूर्ण रूप से वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए संरक्षित करने के लिए 1 दिसंबर 1959 को इस संधि पर हस्ताक्षर किया गया था। इस संधि में मूलतः 12 देश शामिल थे। जो अंटार्कटिका के नजदीकी थे। जैसे- ऑस्ट्रेलिया, चिली, न्यूजीलैंड, दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन आदि। इस संधि को वाशिंगटन में हस्ताक्षरित किया गया था। जो कि 1961 में लागू हुआ
अंटार्कटिका पर बढ़ते ग्लोबल वार्मिंग और शोध के नाम पर सैन्यीकरण का खतरा मंडरा रहा है। यह पूरी धरती का सबसे संवेदनशील महाद्वीप है जो पूरी पृथ्वी की जलवायु, वर्षा, तापमान और समुद्री जलस्तर के नजरिए से बेहद ही महत्वपूर्ण हो जाता है। इस संधि में 2021 में अपने 60 वर्ष पूरे कर लिए। इसलिए यह पुनः चर्चा में आ गया है कि क्या यह संधि सचमुच अपने लक्ष्यों के अनुकूल आगे सिद्ध हुई या नहीं।
अंटार्कटिका संधि के मुख्य मुख्य प्रावधान?
इसके प्रमुख प्रावधानों में पहला, अंटार्कटिका में वैज्ञानिक अनुसंधान की स्वतंत्रता को बढ़ावा देना। दूसरा, अंटार्कटिका का उपयोग शांतिपूर्ण शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए किया जायेगा। तीसरा, कोई भी देश इसपर अपनी दावेदारी प्रस्तुत नही करेगा। चौथा, किसी भी प्रकार की सैन्य गतिविधि को रोकना।
अंटार्कटिका संधि में कितने देश है?
वर्तमान में 2019 तक अंटार्कटिका संधि में 54 देश शामिल हो चुके है। जिसमे से केवल 12 मूलत: देश है जिनके पास मतदान का अधिकार है।
क्या भारत अंटार्कटिका संधि का हस्ताक्षरकर्ता है?
भारत अंटार्कटिका संधि के 54 हस्ताक्षरकर्ता देशों में से एक है। चूंकि भारत प्रारंभिक हस्ताक्षरकर्ता देशों में से एक नही है इसलिए भारत को वोटिंग अधिकार प्राप्त नहीं है। इसके बाऊजूद भारत ने इस संधि के लक्ष्यों को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत समय ने अंटार्कटिका की सुरक्षा में बेहतर तरीके से योगदान देने के लिए कई शोध संस्थान भी स्थापित किए है।
भारत का अंटार्कटिका कार्यक्रम ?
भारत ने अपने अंटार्कटिका अभियान की शुरुआत 1981 में की। जब नेशनल सेंटर फॉर अंटार्कटिका एंड ओसियन रिसर्च (NCAOR) के तत्वाधान में प्रयास शुरू किए। यह अंटार्कटिका में शोध हेतु नोडल एजेंसी है।
भारत ने दक्षिण गंगोत्री, मैत्री और भारती नामक तीन अंटार्कटिका शोध केंद्र स्थापित किए है। दक्षिण गंगोत्री वर्तमान में क्षतिग्रस्त हो चुका है। इसके बाद मैत्री को 1989 में स्थापित किया गया था। तत्पश्चात 2012 में भारती नामक नवीन संचालन केंद्र की स्थापना की गई। जो वर्तमान में कार्यरत है। साथ ही अंटार्कटिका पर शोध के लिए भारत ने 2008 में एक “शोध निधि” की भी स्थापना की है।
भारत हमेशा से ही अंटार्कटिक और आर्कटिक दोनो ध्रुवों पर शांति और सुरक्षा के लिए मुखबिरी करता आया है। विश्व के देशों को पर्यावरण संबंधी समझौतों को गंभीरता से अनुपालन पर जोर देना चाहिए। ताकि अंटार्कटिका संधि के लक्ष्यों को हासिल किया जा सके। अन्यथा वो दिन दूर नही जब यह कथन सत्य हो जायेगा।
“यदि इसी तरह अंटार्कटिका पिघलता रहा तो आने वाले 300 सालों में पृथ्वी पूरी तरह डूब जायेगी।”
-हंस क्लूक, जर्मन भूविज्ञानी
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